Tuesday, May 30, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: शुरुआती सफलता अथवा गरीबी को हावी होने दें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)   
रविवार को दोपहर से लेकर सोमवार सुबह के अखबारों तक नोएड की लड़की रक्षा गोपाल के ही बारे में सभी लोग पढ़ रहे थे। सेलफोन डिस्कशन में भी वही छाई थी। आश्चर्य है कि उसकी चर्चा इसलिए नहीं हो रही थी कि
सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में उसने सर्वाधिक 99.6 प्रतिशत अंक हासिल किए, बल्कि कुछ पैरेंट्स को यह दुख था कि वह 100 प्रतिशत अंक हासिल करने से सिर्फ 0.4 प्रतिशत दूर रह गई। यह हद हो गई। अंतहीन महत्वाकांक्षा रखने वाले पैरेंट्स पहले ही 85 प्रतिशत क्लब, 90 प्रतिशत क्लब और 95 प्रतिशत क्लब हाल ही के वर्षों में बना चुके हैं। अब मुझे चिंता है कि कहीं हम बच्चों को 100 प्रतिशत की महत्वाकांक्षा की ओर धकेल दें, जिसमें इस साल के आरंभ में उदयपुर के कल्पित वीरवाल शामिल हो चुके हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। डिस्लेक्सिया, ऑटिज्म और अन्य दिव्यांग छात्र, जिन्होंने 90 प्रतिशत के क्लब में जगह बनाई, प्रशंसनीय हैं। लेकिन दो फिजिकली-परफेक्ट छात्रों ने अलग कारणों से मेरा ध्यान खींचा- अर्श ज्ञानी 92.4 प्रतिशत और मनीष राम ने 83.8 फीसदी अंक हासिल किए। एक ने कई फिल्मों में काम किया है, जो आपने और मैंने देखी हैं और दूसरा 5x5 स्क्वेयर फीट की छोटी-सी झोपड़ी में अपने छह भाई-बहनों के साथ रहता है। उसके पिता चर्मकार हैं। इन दो छात्रों ने मुझे एक सबक सिखाया कि पहले मिली सफलताओं से आपको आत्मसंतुष्ट नहीं बनना चाहिए। जीवन को सही राह पर ले जाने के लिए आपको पढ़ाई में अच्छा करना होता है। गरीबी आपको पीछे नहीं खींच सकती और आपको ऐसा कुछ करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती, जो स्लम में रहने वाले अधिकतर बच्चे करते हैं, इसलिए नहीं कि ये उनकी पसंद होता है, बल्कि इसलिए कि गरीबी उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करती है। 
अर्श ने 10 साल की उम्र से ही कई विज्ञापनों में काम किया और कैमरे को लेकर उसमें कोई हिचक नहीं है। 2015 में आई फिल्म 'ब्रदर्स' में उसने अक्षय कुमार के बचपन का किरदार निभाया। उसकी दूसरी फिल्म 'टेनिस बडीज़' अगले दो सप्ताह में रीलिज होने वाली है। परीक्षा के दौरान ही उसने दूसरी फिल्म में अभिनय किया और कुछ विज्ञापनों के लिए भी चुना गया। उसने इस स्टारडम को अपने दिमाग में जगह नहीं बनाने दी और पढ़ाई के दौरान क्लास में अपने साथी छात्रों से होड़ में बना रहा। हालांकि फिल्मी दुनिया में उसकी अपनी पहचान है और उसने सिनेमेटोग्राफी को कॅरिअर के रूप में चुना है, लेकिन इनसे वह आसमान में उड़ने नहीं लगा है और क्लास और कॉलोनी में बच्चों और छात्रों के साथ वह सामान्य बच्चों की तरह रहता है। उसका फोकस अपने अंकों पर था, जो उसने रविवार को हासिल किए। अर्श के जीवन से उलट दूसरी तरफ मनीष राम है, जिसने अपना पूरा जीवन, कम से कम अब तक, स्ट्रीट लाइट के नीचे गुजारा है। 
अंग्रेजी बोलने की शानदार क्षमता के साथ (स्लम के बच्चों में यह दुर्लभ होती है) केंद्रीय विद्यालय मुंबई के ह्यूमेनिटीज़ के इस छात्र ने सिर्फ क्लास में टॉप किया बल्कि यूपीएससी की परीक्षा क्रेक कर वह किसी सरकारी संस्थान में शीर्ष अधिकारी बनना चाहता है। अपनी झोपड़ी के हालात ने ही उसके दिल में प्रेरणा के बीच बोए। उसकी झोपड़ी मुंबई के कोलाबा में है। यह आर्थिक राजधानी का सबसे समृद्ध इलाका है, जहां अमीर और प्रभावशाली लोग रहते हैं। हाल ही में प्रतिबंध लगने से पहले उसने कई लाल और नीली बत्तियों को अपने झोपड़ी के आगे से निकलते देखा है। और वह हमेशा इनमें से एक बनना चाहता था। साथ ही वह यह भी जानता था कि इसका रास्ता पढ़ाई से ही होकर गुजरता है। 

फंडा यह है कि शुरुआतीसफलता के कारण फोकस खोएं और गरीबी को अपनी फाइटिंग स्पिरिट में बाधा बनने देना चाहिए। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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