घरेलू वस्तुओं से लेकर बड़े-बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस में उपयोग होने वाली वस्तुओं को बनाने में प्लास्टिक का उपयोग होता है। रोजमर्रा उपयोग होने वाली अधिकांश वस्तुएं प्लास्टिक से बनी होती हैं। इसकी उपयोगिता बढ़ने से प्लास्टिक इंडस्ट्री को बढ़ावा मिला, लेकिन इसमें काम करने वाले प्रोफेशनल की कमी बनी हुई
है। इंजीनियरिंग में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए यह क्षेत्र भी कॅरिअर का अच्छा विकल्प हो सकता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। देशभर में प्लास्टिक प्रोसेस करने वाली 30 हजार प्रोसेसिंग यूनिट हैं, जिसमें 40 लाख एंप्लॉई काम करते हैं। इनमें 85 से 90 फीसदी प्रोसेसिंग यूनिट छोटे और मध्यम स्तर की हैं। एक अनुमान के अनुसार देशभर में करीब 10 लाख प्लास्टिक इंजीनियरों की कमी है। इसी को ध्यान में रखते हुए हाल ही में दो नए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी सेंटर शुरू करने का फैसला किया गया है।
प्लास्टिक इंडस्ट्री का देश में तेजी से बढ़ने का सबसे बड़ा कारण इसकी खपत बढ़ना है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 के अंत तक देश में प्लास्टिक की खपत लगभग 2 करोड़ मीट्रिक टन के करीब हो जाएगी। देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ी है। भारत प्लास्टिक प्रोडक्ट के बड़े निर्यातकों में से एक है। 2015-16 में भारत ने 7.64 अरब डॉलर के प्लास्टिक उत्पादों का निर्यात किया था। अमेरिका, यूरोप और मध्यपूर्व के देशों में भारत में बने प्लास्टिक की मांग तेजी से बढ़ रही है। प्लास्टिक इंजीनियर की बड़ी संख्या में कमी होने के कारण प्लास्टिक इंजीनियरिंग या प्लास्टिक टेक्नोलॉजी में जॉब की अच्छी संभावनाएं हैं।
प्लास्टिक उत्पादों को बनाने में प्लास्टिक टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है। यह टेक्नोलॉजी की वह ब्रांच है, जिसमें प्लास्टिक उत्पादों की प्रोसेसिंग, डिजाइन, डेवलपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग शामिल है। इसमें बताया जाता है कि कैसे मूल सिद्धांतों का उपयोग कर प्लास्टिक प्रोडक्ट का उत्पादन किया जाता है। इसके अलावा अन्य प्रोफेशनल या इंजीनियर को कैसे गाइड करना है इसकी जानकारी दी जाती है। देश मंे 50 से भी ज्यादा अलग-अलग तरीकों के प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है।
12वीं के बाद ले सकते हैं प्रवेश: प्लास्टिक इंजीनियरिंग के बैचलर डिग्री कोर्स में प्रवेश के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स विषयों के साथ 12वीं पास करना जरूरी है। बारहवीं के बाद छात्र इसके बीई या बीटेक कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। बीई या बीटेक कोर्स में प्रवेश जेईई मेन के वैलिड स्कोर के आधार पर मिलता है। कुछ संस्थान खुद का एंट्रेंस टेस्ट भी आयोजित करते हैं। इसके बाद छात्र इसके एमटेक कोर्स में भी प्रवेश ले सकते हैं। कई संस्थानों में एमटेक कोर्स में प्रवेश के लिए गेट का वैलिड स्कोर आवश्यक होता है। मास्टर डिग्री कोर्स के बाद रिसर्च के क्षेत्र में काम करने के लिए छात्र पीएचडी कोर्स का भी चुनाव कर सकते हैं। इसके अलावा छात्र प्लास्टिक इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स में भी प्रवेश ले सकते हैं। केमिकल इंजीनियरिंग या इससे संबंधित कोर्स करने वाले छात्रों के लिए भी इस क्षेत्र में कॅरिअर की बेहतर संभावनाएं हैं।
विभिन्न संस्थाओं में हैं नौकरियों के अवसर: प्लास्टिक इंजीनियर या प्लास्टिक टेक्नोलॉजिस्ट पब्लिक सेक्टर कंपनियों या संस्थाओं जैसे कि ऑइल एंड नैचुरल गैस कॉर्पोरेशन, ऑइल इंडिया लिमिटेड, विभिन्न पॉलीमर कॉर्पोेरेशन, पेट्रोकेमिकल रिसर्च लैबोरेटरीज़ और मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम एंड केमिकल्स में विभिन्न पदों पर जॉब कर सकते हैं। इसके अलावा ये प्रोफेशनल बड़े पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग प्लांट और प्लास्टिक कमोडिटी से जुड़ी विभिन्न प्राइवेट कंपनियों में जॉब कर सकते हैं। प्लास्टिक प्रोडक्ट मैन्युफैक्चर करने वाली कंपनियों में भी जॉब के कई अवसर मौजूद हैं।
20 हजार रुपए प्रति माह का शुरुआती पैकेज: इसक्षेत्र में ट्रेंड प्रोफेशनल की कमी होने के कारण शुरुआती औसत पैकेज 20 हजार रुपए प्रति माह हो सकता है। कुछ वर्ष के अनुभव के बाद पैकेज 30 से 40 हजार रुपए प्रति माह मिलने की संभावना होती है। हालांकि कई प्राइवेट कंपनियों और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में सैलरी पैकेज औसत से ज्यादा भी हो सकता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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