रेवाड़ी जिले के गांव पातुहेड़ा की 50 से ज्यादा लड़कियों ने 12 साल पहले छेड़खानी से परेशान होकर पड़ोसी गांव के स्कूल जाना बंद कर दिया था। छात्राओं की संख्या घटी तो शिक्षा विभाग ने इसकी वजह तलाशे बिना ही
बनीपुर के इस स्कूल को बंद करने की तैयारी कर ली। पर सतबीर ढिल्लो की एक पहल ने ऐसा होने से बचा लिया। उनकी बदौलत सिर्फ स्कूल बंद होने से बचा, बल्कि 400 से अधिक लड़कियों ने पढ़ाई भी जारी रखी। दरअसल, पातुहेड़ा गांव में सीनियर सेकेंडरी स्कूल नहीं है। इसलिए यहां की लड़कियां 11-12वीं की पढ़ाई के लिए ढाई किलोमीटर दूर बनीपुर गांव जाती हैं। 12 साल पहले जब पातुहेड़ा की लड़कियों ने स्कूल जाना बंद किया। उसी समय सतबीर ढिल्लो रोडवेज विभाग के सब इंस्पेक्टर के पद से रिटायर होकर बनीपुर गांव लौटे थे। उन्हें जब सारी बात पता चली तो वे पंचायत और स्कूल प्रबंधन को लेकर पातुहेड़ा में लड़कियों के माता-पिता से मिले। भरोसा दिलाया कि वे खुद बेटियों को स्कूल लेकर जाएंगे और छोड़ेंगे। चार-पांच लोगों को छोड़कर बाकी लोगों ने लड़कियों को स्कूल भेजने से मना कर दिया। पर सतबीर ने नियम बना लिया। वे रोज सुबह पातुहेड़ा मोड़ पर स्कूल के समय से आधा घंटे पहले खड़े हो जाते और लड़कियों को स्कूल ले जाते। दो-चार दिन बाद रास्ते में मनचले लड़कों ने उन्हें घेर लिया। धमकाया। पर सतबीर बिना डरे अपने मिशन में लगे रहे। उन्हें ऐसा करते हुए 12 साल हो गए हैं। अब पातुहेड़ा के लोग इस 72 साल के बाबा के भरोसे करीब 45 लड़कियों को स्कूल भेजते हैं। जो स्कूल कभी बंद होने वाला था। अब उसमें विद्यार्थियों की संख्या 300 पार कर गई है। खुद ढिल्लो की चारों बेटियां, पोते-पोतियां इसी स्कूल से पढ़े हैं। पातहेड़ा की सरपंच सरला देवी कहती हैं, 'अगर बाबा नहीं हाेते हम बेटियों को स्कूल नहीं भेजते।' स्कूल प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार के लिए बाबा हमारे स्कूल के संरक्षक हैं। Disclaimer: हमारे इस वेबपेज पर सभी समाचार विश्वसनीय स्रोतों से लेकर प्रकाशित किए जाते हैं। परन्तु फिर भी किसी गलत सूचना के लिए हम उत्तरदायी नहीं हैं। पाठकगण समाचारों व सूचनाओं की पुष्टि अपने स्तर पर कर लें।