तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपना पैंतरा बदल लिया है। इस प्रथा को मुस्लिमों की आस्था का विषय बता चुके बोर्ड ने अब कहा है कि शरीयत में तीन तलाक
अवांछनीय परम्परा है। एक साथ कहा तीन तलाक अमान्य है। ऐसा करने वाले मुस्लिम समुदाय के लिए मुसीबत बन रहे हैं। इनका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। बोर्ड ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा दाखिल किया है, जो पिछले दिनों दी गई दलीलों से थोड़ा हटकर है। बोर्ड ने कहा कि महिलाओं को तीन तलाक नहीं मानने का अधिकार दिया जाएगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसके लिए दुल्हन निकाहनामे में शर्त जुड़वा सकेगी। बेवजह तीन तलाक का इस्तेमाल रोकने के लिए लोगों को जागरूक करेंगे। तीन तलाक का सही तरीका समझाएंगे। मौलवियों और काजियों को एडवाइजरी जारी होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने तीन तलाक पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 18 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह हलफनामा भी इसी बेंच के पास जाएगा। हलफनामे में बताया गया कि तीन तलाक के मुद्दे पर बोर्ड की बैठक में नए दिशा-निर्देश तय किए गए हैं।
तीन कदम... ताकि तीन तलाक का हो न गलत इस्तेमाल:
1. काजी दूल्हा-दुल्हन को समझाएगा कि एक साथ तीन तलाक कहने की शर्त निकाहनामे में शामिल करें। सभी इमामों, काजियों को सर्कुलर जारी करेंगे।
2. तीन तलाक का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए जागरूकता मुहिम चलाएंगे। अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया सहित सभी माध्यमों का इस्तेमाल करेंगे।
3. तीन तलाक पर तय नए दिशा-निर्देश लोगों में प्रसारित किए जाएंगे। इन्हें गरीब तबके के मुस्लिमों और धर्म के अन्य लोगों तक पहुंचाया जाएगा।
3. तीन तलाक पर तय नए दिशा-निर्देश लोगों में प्रसारित किए जाएंगे। इन्हें गरीब तबके के मुस्लिमों और धर्म के अन्य लोगों तक पहुंचाया जाएगा।
तीन नियम... ताकि शरीयत के नियमों से ही खत्म हो शादी: बोर्ड ने कहा कि तलाक अंतिम विकल्प है। मुस्लिम दंपति को तलाक से पहले समझौते के तीन चरण पूरे करने ही होंगे।
1. अच्छाई और बुराई हर किसी में होती है। ऐसे में पति-पत्नी को आपसी बातचीत से विवाद का निपटारा करना चाहिए।
2. अगर पति-पत्नी का विवाद नहीं निपटता है तो दोनों के परिवारों के मुखिया आपस में बैठकर विवाद को निपटाने का प्रयास करेंगे।
3. विवाद फिर भी बना रहे तो उनकी मदद के लिए बोर्ड की मदद से आर्बिट्रेटर नियुक्त होगा। तब भी बात बने तो तलाक दे सकते हैं।
2. अगर पति-पत्नी का विवाद नहीं निपटता है तो दोनों के परिवारों के मुखिया आपस में बैठकर विवाद को निपटाने का प्रयास करेंगे।
3. विवाद फिर भी बना रहे तो उनकी मदद के लिए बोर्ड की मदद से आर्बिट्रेटर नियुक्त होगा। तब भी बात बने तो तलाक दे सकते हैं।
तलाक का अधिकार सिर्फ पति को बोर्डने कहा कि तलाक का अधिकार सिर्फ पति को होगा। महिला अगर अलग होना चाहती है तो वह मुस्लिमों में प्रचलित खुला विकल्प इस्तेमाल कर सकती है।
यह तरीका भी सही: पत्नी के साथ विवाद सुलझे तो पति उसे हर महीने एक तलाक दे सकता है। तीसरा तलाक देने से पहले समझौता हो जाए तो पति तलाक वापस ले लेगा। विवाद नहीं निपटा तो तीसरे महीने में तीसरे तलाक के साथ ही दोनों कानूनी रूप से अलग होकर स्वतंत्र रूप से जी सकते हैं।
बोर्ड ने कहा कि शरीयत के अनुसार एक साथ तीन तलाक कहना गलत है। यह अमान्य है। सही तरीका लोगों को समझाएंगे। एक बार तलाक बोलने के बाद तीन महीने तक पति अगर इसे वापस नहीं लेता तो यह एक तलाक भी कानूनी रूप से वैध होगा। पति-पत्नी तीन महीने बाद अलग हो सकते हैं। तलाक बोलने के समय पत्नी गर्भवती है तो तलाक की अवधि बढ़कर डिलीवरी तक रहेगी। इस दौरान सुलह हो जाए तो पति तलाक वापस ले सकता है। डिलीवरी का खर्च भी पति ही उठाएगा।
बोर्ड ने कहा कि शरीयत के अनुसार एक साथ तीन तलाक कहना गलत है। यह अमान्य है। सही तरीका लोगों को समझाएंगे। एक बार तलाक बोलने के बाद तीन महीने तक पति अगर इसे वापस नहीं लेता तो यह एक तलाक भी कानूनी रूप से वैध होगा। पति-पत्नी तीन महीने बाद अलग हो सकते हैं। तलाक बोलने के समय पत्नी गर्भवती है तो तलाक की अवधि बढ़कर डिलीवरी तक रहेगी। इस दौरान सुलह हो जाए तो पति तलाक वापस ले सकता है। डिलीवरी का खर्च भी पति ही उठाएगा।
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साभार: भास्कर समाचार
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