प्रदेश सरकार बेशक खेल और खिलाड़ियों के प्रोत्साहन का दावा कर रही है, लेकिन प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे करीब नौ लाख बच्चों के लिए कोई खेल नीति नहीं है। इन विद्यालयों में होने वाली खेल गतिविधियां तक खेलों के स्कूल कैलेंडर में शामिल नहीं हैं। बजट की बात की जाए तो सरकार की ओर से केवल
दो रुपये खेल नीति के रूप में विद्यालयों को दिए जा रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इन दो रुपये में एक बच्चे का पूरे वर्ष का खेल का सामान और विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए आने-जाने का खर्च तक शामिल है। वर्ष 2009 में जब शिक्षा का अधिकार (आरटीई) एक्ट लागू हुआ था, तब से बच्चों से किसी प्रकार का फंड एकत्र नहीं किया जाता। शिक्षा विभाग स्वयं ही फंड की राशि विद्यालय के खाते में भेजता है, जो सालाना 36 रुपये है। इसमें पांच रुपये भवन निधि, पांच रुपये परीक्षा निधि, दो रुपये खेल निधि, 24 रुपये चाइल्ड वेलफेयर निधि होती है। खेल निधि का सात फीसद शेयर वापस शिक्षा विभाग में जमा कराना होता है। ऐसे में शेष राशि से ही खेलकूद करवाने पड़ते हैं। वर्ष 2006 के बाद विद्यालयों में किसी भी प्रकार की खेल सामग्री नहीं आई है। खेल कैलेंडर में शामिल नहीं होने के कारण इन खेलों को कराने की कोई निश्चित तारीख भी नहीं है, जिस कारण खेलों में खानापूर्ति की जा रही है। विद्यालयों में खेल प्रतियोगिताएं कराने के नाम पर सिर्फ वही खेल कराने की औपचारिकता निभाई जा रही है, जिनके आयोजन में कोई राशि खर्च नहीं होती। शिक्षक खुद व्यक्तिगत रुचि लेकर इन खेलों का आयोजन करा लेते हैं। ब्लॉक और जिला स्तर पर किसी भी प्रकार के इनाम का प्रावधान इन खिलाड़ियों के लिए नहीं है। ब्लाक स्तर पर तो रिफ्रेंशमेंट का भी इंतजाम नहीं किया जाता। राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष विनोद ठाकरान, महासचिव दीपक गोस्वामी, शिक्षक विनोद चौहान और तरुण सुहाग का कहना है कि प्राथमिक स्कूलों के खेलों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। बच्चों को उनका हक मिलना चाहिए। हरियाणा शारीरिक शिक्षा अध्यापक संघ के प्रधान राजेश ढांडा का कहना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों के समक्ष कई बार अनुरोध किया गया, मगर विभाग गंभीर नहीं हुआ है। दूसरी तरफ, शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा का कहना है कि पूरे मामले में विभागीय अधिकारियों से बातचीत कर उचित व्यवस्था की जाएगी।
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साभार: जागरण समाचार
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