एन रघुरामन
वह नागपुरके निकट अजनी में एच/1/बी/18रेलवे क्वाटर्स था। 1968 की बात है, जब मैं उस घर में प्रवेश करने ही वाला था। तब यह मेरे पिता के सेंट्रल रेलवे में सहकर्मी कुप्पास्वामी के पास था। उनकी पत्नी मेरी टीचर थीं। अचानक एक जोर की आवाज ने मुझे रोका, 'ए लड़के'। पोस्टमैन ने मुझे 12-14 लेटर दिए और कहा यह अंदर ले जाओ। मैं चकित था कि कैसे इन अंकल को 12-14 लेटर हर रोज मिलते हैं, जबकि हमारे यहां तो पूरे महीने में 12-14 पत्र आते हैं! यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मैंने पत्र ले लिए और मेरी पहली टीचर सरस्वती कुप्पास्वामी से मिलने के लिए घर में प्रवेश किया। मुझे याद है पहली बार मैं किस तरह उनसे सरस्वती विद्यालय नागपुर में मिला था। वे मेरे पिता से क्लास के बाहर कुछ सेकंड के लिए मिलीं थीं और उन्होंने मेरी जिम्मेदारी ले ली, संभवत: जीवनभर के लिए। मुझे क्लास में ले गईं। मैंने नम आंखों से मुड़कर पिता की तरफ देखा, लेकिन उन्होंने मेरी तरफ पीठकर ली थी। शायद वे मुझे रोता देखकर असहज हो गए थे। फिर मैंने टीचर की आंखों में देखा और वह भरोसा, प्यार और केयर देखी, जिसकी मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी। उसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अनजाने में मैं जीवन का पहला पाठ सीख रहा था कि जब किसी को आपकी जरूरत हो तो दृढ़ता के साथ उसके लिए खड़े रहो।
मुझे पत्रों का बंडल लेकर घर में प्रवेश करते देखकर उन्होंने इशारे से कहा कि उन्हें बाहर के कमरे में टेबल पर रख दो और इंतजार करो। अचानक सांवले रंग के करीब 20 लड़कों ने जोर से दरवाजे की कुंडी बजाई। उन दिनों डोर बेल नहीं हुआ करती थी। गीला हाथ साड़ी के पल्लू से पोछते हुए टीचर हॉल में आईं और उन सभी को अंदर बुलाया। वे सर्कस के प्राणियों की तरह कतार में अंदर आए, जैसे रिंग मास्टर का आदेश मान रहे हों और जमीन पर हाथ बांधकर बैठ गए। उन्होंने उन पत्रों को देखा और पत्रों पर लिखे पते के नाम पढ़े। चार लोगों के नाम उस दिन गांव से कोई खत नहीं आया था। वे तुरंत वहां से चले गए। मुझे पता चला कि टीचर के घर का पता सभी गैंग-मैन इस्तेमाल कर रहे थे। वे लोग नागपुर रेलवे डिविजन में ट्रेक के दोहरीकरण के लिए दक्षिण भारत के अलग-अलग हिस्सों से यहां आए थे। तब डाक ही संचार का बड़ा माध्यम था। ये निरक्षर गैंग-मैन टीचर का इंतजार कर रहे थे कि वे उनके पत्रों को पढ़कर सुनाएं और साथ ही जवाब देने में भी उनकी मदद करें। हर रोज दो घंटे इन लोगों के लिए समय देना उनके परमार्थ का तरीका था।
टीचर धैर्य से सभी के पत्रों का जवाब लिख रही थीं। पहला पत्र मजेदार था। गैंगमैन तमिल में लिखवा रहा था और वे अपने तरीके से उसकी बात समझकर लिख रहीं थीं। पत्र उम्मीद से शुरू हुआ था, 'आशा है घर पर सब ठीक होंगे, खासतौर पर लक्ष्मी'। पहले कुछ पैरे उसी को समर्पित थे। मुझे लगा वह शायद उसकी बेटी है। जब उसने कहा कि उसके पीछे वाले पैर पर अच्छे से मालिश करना, तो टीचर ने मेरे जिज्ञासा से भरे चेहरे पर नजर डाली और कहा कि इनके अंकल इनकी गाय लक्ष्मी की देखभाल करते हैं। उसके साथ दुर्घटना हो गई है! गरीब बच्चों को फ्री ट्यूशन, अनाथ बच्चों की स्कूल की फीस भरना, जो तब 3 रुपए से कम हुआ करती थी, उन कई कामों में से थे जो वे करती थीं। उन अच्छाइयों की याद में मैंने एक किताब लिखी है और वह इसी साल 20 अगस्त को उसी स्कूल में लॉन्च हुई है, जहां वे हमें पढ़ाती थीं। लेकिन खेद है कि किताब के विमोचन के पहले ही 16 अगस्त को 83 साल की उम्र में हार्टअटैक से उनका निधन हो गया और इंसानियत की उनकी सीखों के लिए आभार जताने का मौका मेरे हाथ से निकल गया।
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साभार: भास्कर समाचार
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