Wednesday, August 31, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: जो कर सकते हैं उससे अलग करने की सोचिये

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)

हाल हीमें नवी मुंबई में मैं एक विदेशी पर्यटक के साथ था। अचानक उनका जूता टूट गया। दोनों तरफ समाधान मौजूद था। एक तरफ ठीक करने के लिए चर्मकार था और दूसरी तरफ जूते की दुकान थी। विदेशी पर्यटक ने नए जूते खरीदने को प्राथमिकता दी, क्योंकि जूते दो साल पुराने थे। उन्होंने पुराने जूते दुकानदार से रख लेने का कहा, लेकिन उसने इंकार करते हुए कचरापेटी में डालने की सलाह दी। पर्यटक ने ऐसा करने की बजाए चर्मकार को देने या किसी जरूरतमंद को देने का फैसला किया, क्योंकि उन्हें पता था कि जूते प्राकृतिक तरीके से नष्ट नहीं होंगे। दुकानदार ने मदद करते हुए शू डोनेशन बॉक्स का पता बता दिया, जो पास ही था। प्राकृतिक तरीके से नष्ट होने वाले करीब 35 करोड़ जोड़ी जूते हर साल दुनियाभर में कूड़ेदान में डाल दिए जाते हैं, जबकि करीब 1.5 अरब लोगों के पास पहनने के लिए जूते नहीं है। इनमें से लाखों लोग नंगे पैर रहने के कारण बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। हालांकि हमें देरी हो रही थी, लेकिन मेरी विदेशी मित्र पर्यावरण के प्रति सजग थीं, इसलिए जो उचित था वही करने का फैसला किया।
नवी मुंबई में ग्रीनसोल नामक मैन्यूफेक्चरिंग यूनिट है, जहां पुराने जूते लिए जाते हैं। स्टाफ इन्हें धोकर सोल और ऊपरी हिस्से को अलग-अलग कर देता है। जूते को गलाने के स्थान पर सोल को काटा जाता है और इससे स्लीपर का बेस बनाकर नया रूप दे दिया जाता है। ऊपरी हिस्से से उसके स्ट्रैप्स बनाए जाते हैं और लेस का उपयोग पैकेजिंग में किया जाता है। कंपनी का मानना है कि इससे कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलती है। अगर जूते और चल सकते हैं तो उसे मजबूत किया जाता है और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया को भेज दिया जाता है, जहां इन्हें नए खिलाड़ियों को उनके पुराने जूतों के बदले डोनेट कर दिया जाता है। 2013 में प्रोफेशनल एथलीट्स श्रेयांश भंडारी और रमेश धामी ने ग्रीनसोल शुरू की थी और आज 17 कॉर्पोरेट पार्टनर इस पहल में मददगार हैं। ये कंपनियां अपने ऑफिसों में जूते एकत्र करने के अभियान भी चलाती है और इन्हें ग्रीनसोल को नया बनाने के लिए डोनेट कर दिया जाता है। ये जूते बाद में गांवों में बांट दिए जाते हैं। इसके अलावा कंपनी देशभर के शहरों और गांवों में अपने स्तर पर भी जूते एकत्र करती है। सार्वजनिक बाग-बागीचों में भी ड्रॉप बॉक्स लगाए गए हैं।
21 साल के श्रेयांश ने अमेरिका से आंत्रप्रेन्योरशिप में मास्टर्स की डिग्री ली है। कंपनी के को-फाउंडर रमेश से वे एक राष्ट्रीय स्तर के मैराथन इवेंट में मिले। वे उत्तराखंड से आए थे। मैराथन रनिंग सेशन के बाद जब उन्होंने अपने जूते फेंके तो यह खयाल आया। उन्होंने यह काम अपने-अपने कॉलेज से मिली इनाम की 5 लाख रुपए की राशि से शुरू किया। अब दोनों के पास अपने डिजाइन और आइडिया के लिए इंडस्ट्रियल पेटेंट है। इनकी कोर टीम में करीब 10 लोग हैं और इसके अलावा संख्या और जरूरत के अनुसार कामगारों की तादाद बदलती रहती है। अब तक ग्रीनसोल महाराष्ट्र और गुजरात के गांवों में दस हजार लोगों को जूते बांट चुका है। बच्चों के जूते छोड़कर वे हर तरह के जूते स्वीकार करते हैं और उन्हें कूड़ाघरों में जाने से बचाते हैं और इस तरह पर्यावरण की रक्षा में मदद हो रही है। ग्रीनसोल की एकमात्र एक्टिविटी पुराने जूतों को आरामदायक और ट्रेंडी लुक में नया करके उन बच्चों तक पहुंचाना है जो बिना जूतों के ही स्कूल जाते हैं। बजट में आने योग्य बनाने के लिए ग्रीनसोल ने सस्ते दर पर नया रूप दिए गए जूते बेचने की शुरूआत भी की है। लोग उनकी मदद जूते खरीदकर फंड जुटाने में कर सकते हैं या जूते खरीदकर खुद भी डोनेट कर सकते हैं। उन्होंने एनजीओ से भी टाइ-अप किए हैं और संभावित लाभार्थियों के साथ जानकारी साझा की जाती है। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।