Monday, August 29, 2016

अच्छी पहल सिर्फ शुरू करनी होती है, रफ़्तार वह खुद पकड़ लेती है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: ब्रिटेन की राजधानी लंदन से 200 मील दूर छोटा-सा गांव है एश्टन हैज़। अत्यधिक कम आबादी और व्यावहारिक स्तर पर नगण्य सरकारी सहायता के बावजूद यह गांव दुनिया के सबसे ज्वलंत मुद्दे अपनी तरह से सुलझाने में अग्रणी बन गया है। दस साल पहले पूर्व पत्रकार गैरी चारनॉक ब्रिटेन के ही वैल्स में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित व्याख्यान सुनकर आए। उन्होंने 600 की आबादी वाले अपने गांव के लोगों से कहा कि यदि वे भविष्य में दुनिया को हरा-भरा देखना चाहते हैं तो जीवनशैली और रोजमर्रा जीवन की आदतों में बदलाव महत्वपूर्ण है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। आधे से भी कम लोग उनसे सहमत हुए, लेकिन वे हताश नहीं हुए। उन्होंने सहमति रखने वाले लोगों के साथ मिलकर धीरे-धीरे जीवनशैली में बदलाव लाने की शुरुआत की। धीरे-धीरे उन्होंने उन मशीनों को अपनी जिंदगी से विदा कर दिया, जो उनके जीवन पर हावी हो गई थीं। परिवहन का जरिया बदला। उन्होंने प्रकृति का श्रेष्ठतम तरीके से उपयोग करना सीखा। उनकी मेहनत और लगन रंग लाई और दूसरे भी उनका अनुसरण करने लगे। 
ठीक दस वर्ष बाद आज गांव के सारे 1000 लोग ड्रायर का इस्तेमाल करने की बजाय रस्सी बांधकर उस पर धुले कपड़े सुखाने लगे। बिजली के लिए उन्होंने सोलर पैनल लगाए और उनका इस्तेमाल शुरू किया। चूंकि ब्रिटेन एक ठंडा देश है, इसलिए ठंड से बचने के लिए हीटर का इस्तेमाल करने की बजाय उन्होंने मकानों को इंसूलेट करना शुरू किया। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि पिछले दस वर्षों में गांव से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा 24 फीसदी कम हो गई। गांव के सारे लोगों ने इसके अलावा भी बहुत से उपाय किए और वह भी बिना किसी सरकारी मदद के, सिर्फ अपने बलबूते पर। 
एश्टन हैज़ में कोई भी मकान बनाता है तो वह मकान हमेशा 'एनर्जी एफििशएंट होम' यानी ऊर्जा का किफायती इस्तेमाल करने वाला मकान ही होता है। वे आने-जाने के िलए बिजली से चलने वाली कारें साइकिलें इस्तेमाल करते हैं और अधिक पर्यावरण अनुकूल संसाधनों का इस्तेमाल कर प्रकृति के नज़दीक रहकर जीवन जीते हैं। इतना ही नहीं यह छोटा गांव अब 200 कस्बो, शहरों, महानगरों और देशों के लिए एक उदाहरण बन गया है, जिनके प्रतिनिधि यहां आकर कार्बन उत्सर्जनहीन जीवनशैली के सबक लेते हैं। कनाडा के ओंटेरियो का गांव एडन मिल्स भी इसी राह पर चल पड़ा है। एश्टन हैज़ से सबक लेने के बाद कनाडा के गांव ने कार्बन उत्सर्जन में 14 फीसदी कमी ला दी है। 
स्टोरी 2: वेमुंबई में दफ्तर जाने वाले हर व्यक्ति को लंच की डिलीवरी करते हैं और इसके प्रबंधन के लिए दुनियाभर में ख्यात हैं। खासतौर पर 'बिना गलती वाली' उनकी डिलीवरी बहुत ही प्रसिद्ध है। काम बहुत बड़े पैमाने पर होता है। ये 5000 लोग रोज 25 लाख से ज्यादा लोगों को ताज़ा भोजन पहुंचाते हैं। पूरी दुनिया उनके इस कमाल से वाकिफ है, लेकिन दुनिया को इस बारे में बहुत कम मालूम है कि इन 5000 लोगों में कोई 300 डबावाले एक अलग ही किस्म का ओवरटाइम करते हैं। 
अपने कड़ी मेहनत के काम के बाद वे घर जाते हैं और बचा हुआ भोजन एकत्रित करने की कवायद करने के लिए खुद को तरोताज़ा करते हैं। यह भोजन एकत्रित करने के बाद वे उसे जरूरतमंदों को वितरीत करने निकलते हैं। उनकी इस सेवा का फायदा लेने वाले झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले गरीब लोग होते हैं, देश के विभिन्न भागों से कैंसर रोगियों के इलाज के लिए आए उनके परिजन होते हैं और बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जो दो वक्त की रोटी का प्रबंध नहीं कर पाते। उन्होंने अपने इस काम को 'रोटी बैंक' का नाम दिया है। यह योजना 'मुम्बई जीवन डबे वाहतुक मंडल' के प्रवक्ता सुभाष तलेकर के दिमाग की उपज है। 
रोटी बैंक बहुत कामयाब हुई है, क्योंकि मुंबई दुनिया की ऐसी महानगरी है, जहां आलीशान, गंगनचुंबी टॉवरों के साथ सबसे ज्यादा झुग्गी-बस्तियां भी मौजूद हैं। यह नफे-नुकसान से अलग हटकर किया जाना वाला काम संपन्न अभावग्रस्त तबकों को अनोखे ढंग से जोड़ता है। अब बचे हुए भोजन को एकत्रित करने के लिए डबेवालों को फोन लगाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस कामयाबी ने गोदरेज जैसी कंपनी आगे आने के लिए प्रोत्साहित हुई है। उसने उन्हें विशेष साइकिले दी हैं, जिसमें छोटे रेफ्रिजरेटर गे हैं ताकि भोजन खराब हो सके। अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी रोटी बैंक में मदद करने के तरीके खोजने में लगी हैं। काम सिर्फ आगे बढ़े रहा है बल्कि उसमें नफासत रही है। 
फंडा यह है कि अच्छीपहल शुरू करने भर की जरूरत होती है। बाद में उससे जुड़ी चीजें अपने आप अपनी जगह लेने लगती है, क्योंकि ऐसी पहल का मूल चरित्र होता है 'अच्छाई।' 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभार: भास्कर समाचार 
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