एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
2 अप्रैल 2013: मुंबई स्थित अंधेरी इलाके के उनके सेठ एमएस हाई स्कूल की 10वीं की तीन छात्राएं उनसे मिलीं और अलजेब्रा के सहायक शिक्षक योगेश यादव की यौन उत्पीड़न के लिए शिकायत की। तीनों ने अनुरोध किया कि उनका नाम उजागर नहीं हो, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे उनका एकेडमिक और निजी जीवन प्रभावित होगा। उन्होंने अनुरोध किया कि प्रिंसिपल होने के नाते यादव पर नजर रखें। समाज के कमजोर तबके के लिए बने इस स्कूल में फीस नहीं ली जाती और वह हमेशा भरा रहता है, जिसमें छात्राओं की संख्या ज्यादा है। उसी साल 10वीं की 40 और छात्राओं ने यही शिकायत लिखित में की। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस शिकायत से लैस होकर उन्होंने पुलिस में शिकायत की और पोस्को (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल अफेन्स एक्ट) के तहत एफआईआर दर्ज की। वे सरकार की ओर से पोस्को के तहत ट्रेंड टीचर थीं। पुलिस ने प्रबंधन को बुलाया, लेकिन मामला उनके ही खिलाफ हो गया। आरोप लगा कि प्रबंधन को अंधेरे में रखा गया। मैंनेजमेंट ने दावा किया कि वे अन्य शिक्षकों को धमका रही हैं कि उनकी बात मानें या फिर बीज गणित के शिक्षक की तरह परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें। उन्हें 2014 में नौकरी से निकाल दिया गया, जबकि आरोपी पुरुष टीचर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन पर एफआईआर दर्ज करने में नौ माह की देरी करने का आरोप लगाया गया। उन्होंने स्कूल ट्रिब्यूनल में अपील की, जिसने स्कूल प्रबंधन के खिलाफ फैसला सुनाया, लेकिन प्रबंधन ने हाई कोर्ट में अपील कर दी। तब तक उनके पास पैसों की कमी हो गई। अपनी 78 वर्षीय मां की देखभाल के लिए उन्होंने विवाह नहीं किया था और इसलिए परिवार में कोई मददगार भी नहीं था। कोर्ट में केस चलने के कारण वे कहीं और काम भी नहीं कर सकती थीं। सारी बचत वकीलों पर खर्च हो गई थी।
मुंबई जैसे शहर में बीते दो साल में उन्होंने ऐसे दिन भी बिताए जब बिना कुछ खाए ही सोना पड़ा। ज्यादा उम्र के कारण मां घर में भी ज्यादा चलती-फिरती नहीं हैं। धमकी भरे फोन आते थे और उनकी अनुपस्थिति में मां को भी कहा जाता था कि बेटी की जिंदगी खतरे में है। ये सारी कोशिशें इसलिए थीं कि वे कमजोर पड़ जाएं और केस वापस ले लें। नौकरी से निकाले जाने के बाद वे किसी तरह गरीबी में जिंदगी गुजार रही थीं। जीवन उलट-पुलट हो गया था, लेकिन वे दृढ़-संकल्प के साथ बच्चों, अपनी सत्यनिष्ठा और जिसे वो सच मानती थी, उसे बचाने के लिए पूरी तरह कमर कस चुकी थीं। उनका आत्म सम्मान इतना बड़ा था कि उन्होंने खुद को कॉलेज के वॉट्सएप ग्रुप से भी अलग कर लिया, जिसमें सफल आंत्रप्रेन्योर और टॉप कॉर्पोरेट प्रोफाइल वाले लोग थे, इसलिए कोई नहीं जान पाया कि वे किस मुश्किल समय से गुजर रही हैं, जबकि उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से ह्यूमन रिर्सोसेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी और वहां निकले सभी लोगों को जानती थीं।
चूंकि उनके पास वकीलों को देने के लिए पैसे नहीं थे तो केस खुद ही लड़ने लगीं। एक दोस्त उन्हें हाईकोर्ट छोड़ देता था। वे पूरा समय वहीं बिताती, ताकि केस को मजबूत बना सकें। उनके साहस से प्रभावित होकर सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील आए और उनका मार्गदर्शन किया कि कैसे इस केस को संभालें। मिलिए शेरिल पॉल से जिनकी प्रार्थनाएं आखिर सुन ली गई हैं। बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें फिर बहाल करने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस रमेश धानुका ने पाया कि शेरिल पॉल के प्रयासों की सराहना के स्थान पर स्कूल प्रबंधन ने उनके खिलाफ कठोर कदम उठाया। इधर शेरिल अब एक और लड़ाई के लिए तैयार हैं और वो है - आरोपी को दोषी साबित करना।
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साभार: भास्कर समाचार
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