Wednesday, November 19, 2014

फिरोज खान से प्रेम विवाह के बाद इंदिरा नेहरू ऐसे बनी इंदिरा गांधी

नोट: इस पोस्ट को सोशल साइट्स पर शेयर/ ईमेल करने के लिए इस पोस्ट के नीचे दिए गए बटन प्रयोग करें। 
आयरन लेडी के नाम से मशहूर इंदिरा गांधी के पॉलिटिकल डिसीजन से हर कोई प्रभावित है। बांग्लादेश से युद्ध हो, पोखरन समझौता हो, ब्लू स्टार हो या फिर बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो, उनके हर फैसले दूरगामी सिद्ध हुए। भारतीय राजनीतिक इतिहास में वे एक ऐसी महिला हैं, जिनकी शान में विपक्षी भी कसीदे पढ़ते थे। इंदिरा गांधी के बारे में तो काफी लोग जानते होंगे, लेकिन उनके पर्सनल लाइफ के बारे में कई चीजें लोगों को नहीं मालूम। आइए क्रमवार जानते हैं 'इंदिरा प्रियदर्शिनी' महात्मा गांधी के एक फैसले से कैसे 'इंदिरा गांधी' बन गई। 
1930 में राजनीति में उतरे फिरोज: साल 1930 में फिरोज राजनीति में उतर आए और युवाओं का नेतृत्व किया।
इसी दौरान उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू से हुई। आजादी की लड़ाई में इंदिरा की मां कमला नेहरू एक कॉलेज के सामने धरना देने के दौरान बेहोश हो गई थीं। उस समय फिरोज गांधी ने उनकी बहुत देखभाल की। कमला नेहरू का हालचाल जानने के लिए फिरोज हमेशा उनके घर आया-जाया करते थे। 
दोनोंं एक साथ हुए गिरफ्तार: घर आते जाते फिरोज नेहरू परिवार के करीब आते चले गए। इसी दौरान उनकी और इंदिरा गांधी के बीच नजदीकियां बढ़ीं। 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी को गिरफ्तार किया गया और वे एक साथ जेल में डाल दिया गया था। 
नेहरू को आया था गुस्सा: कुछ समय बाद जब फिरोज और इंदिरा के प्रेम प्रसंग की जानकारी कमला नेहरू को हुई तो वे बहुत गुस्सा हुईं। दोनोंं के अलग-अलग धर्मों के होने की वजह से भारतीय राजनीति में खलबली मचने का डर जवाहरलाल नेहरू को भी सताने लगा था। इसीलिए उन्होंने यह बात महात्मा गांधी से बताई और सलाह मांगी। 
गांधी जी ने दिया सरनेम: लोगों का मानना है कि र्सिफ हिन्दू कट्टरपंथी ही नहीं, नेहरु भी इस शादी के खिलाफ थे। नेहरू ने अपनी एक किताब में लिखा है कि फिरोज़ को वो बेहद पसंद करते थे और उन्हें इस शादी से नहीं, बल्कि लोगों के विद्रोह से परेशानी थी। इसका अंदाजा उन्हें और गांधीजी को पहले से था। इसके बाद महात्मा गांधी ने बीच का रास्ता निकालने के लिए फिरोज को 'गांधी' सरनेम की उपाधि दे दी और इस तरह फिरोज खान, फिरोज गांधी बन गए और इंदिरा नेहरू 'इंदिरा गांधी' बन गईं। 1942 में दोनोंं की शादी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई। पूरे देश की तरह शायद गांधीजी भी यही मानते थे कि आजादी की लड़ाई में सबसे ज्यादा योगदान उन्हीं का है और इसलिए वो नहीं चाहते थे कि गांधी नाम की विरासत उनके साथ ही खत्म को जाए, वो चाहते थे कि उनका नाम सियासी गलियारों में हमेशा गूंजता रहे, लेकिन खुद को किसी पद से जोड़ के महानता का चोगा त्यागे बिना। उन्हें ये मौका इंदिरा की शादी से मिला, गांधी जी का एक और गुण भी था उनकी दूरर्दर्शिता, इंदिरा में नेतृत्व के गुण वो पहले ही देख चुके थे, वो जानते थे कि इंदिरा से परम्परागत राजनीति की शुरुआत होगी और इसीलिए उन्होंने फिरोज़ को गोद लिया और उसे अपना नाम दिया।
ज्यादा दिन नहीं चला संबंध: इंदिरा और फिरोज की जिद से शादी हो तो गई, लेकिन इनके वैवाहिक संबंध ज्यादा दिन टिक नहीं सके। दोनोंं के बीच काफी झगड़े होने लगे और 1949 में इंदिरा दोनोंं बच्चों (राजीव और संजय गांधी) के साथ अपने पिता के घर चली गईं। 
दोनों परिवार में हुआ विवाद: यहीं से फिरोज गांधी और नेहरू परिवार के बीच का विवाद खुलकर सामने आ गया। इतना ही नहीं, फिरोज ने नेहरू सरकार के खिलाफ आंदोलन भी छेड़ दिया और इस दौरान उनके शासनकाल में हुए कई बड़े घोटालों को भी उजागर किया। इसके पांच साल बाद ही फिरोज का स्वास्थ्य खराब रहने लगा और 8 सितंबर, 1960 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। हालांकि फिरोज के अंतिम समय में इंदिरा गांधी उनके साथ ही रहीं।
साभार: भास्कर समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE . Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.