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सदियों से अपनाए जाने वाले पारंपरिक हर्बल ज्ञान पर भरोसा किया जाए और
सही तरह की वनस्पतियों को सही तरीके से अपनाया जाए, तो बेहद कारगर असर
देखा जा सकता है। शरीर जब आग से झुलस जाए या किसी तरह के घाव बन जाएं तो
इसे ठीक करने के लिए एक बेल जिसे समुद्रशोख कहा जाता है, बेहद कारगर साबित
होती है। यह बेल अक्सर वनों, गांवों के नजदीक और घर-आंगनों में दिखाई देती
है। गुलाबी रंगों के फूल लिए ये बेल औषधीय गुणों का खजाना है। समुद्रशोख
का वानस्पतिक नाम अर्जिरिया नर्वोसा है और इसे पारंपरिक हर्बल जानकार सदियों से कई तरह के पारंपरिक नुस्खों के तौर पर अपनाए हुए हैं। आज भी ग्रामीण अंचलों में शरीर के जल जाने पर प्राथमिक उपचार के लिए सबसे पहले इसी पौधे की पत्तियों का उपयोग किया जाता है। चलिए, आज समुद्रशोख के बारे में जानते हैं।
का वानस्पतिक नाम अर्जिरिया नर्वोसा है और इसे पारंपरिक हर्बल जानकार सदियों से कई तरह के पारंपरिक नुस्खों के तौर पर अपनाए हुए हैं। आज भी ग्रामीण अंचलों में शरीर के जल जाने पर प्राथमिक उपचार के लिए सबसे पहले इसी पौधे की पत्तियों का उपयोग किया जाता है। चलिए, आज समुद्रशोख के बारे में जानते हैं।
- समुद्रशोख के प्राकृतिक गुण: फोड़े-फुंसियों हो जाने पर समुद्रशोख की पत्तियों को पानी में उबाल कर और उबले पानी के ठंडा होने पर उससे फोड़ों और फुंसियों वाले अंगों को धोने से काफी आराम मिलता है। एक सप्ताह तक दिन में कम से कम 2 बार ऐसा करने से पुराने फोड़े-फुंसियां सूख जाती हैं।
- घाव होने पर: घावों को पकाने के लिए भी आदिवासी समुद्रशोख की पत्तियों को घाव पर चिपका देते हैं। इसकी पत्तियों को घावों पर लगाकर पत्तियों की ऊपरी सतह पर नारियल का तेल लगा दिया जाता है। माना जाता है कि घाव के पक जाने पर कुछ समय में यह फूट जाता है और धीरे-धीरे सूखने लगता है।
- जलने पर समुद्रशोख का पेस्ट लगाएं: शरीर के अंगों के जलने पर समुद्रशोख की ताजी हरी पत्तियों को जले हुए हिस्से पर चिपका दिया जाए तो तुरंत ठंडक मिल जाती है और जले हुए अंग पर बैक्टीरियल संक्रमण भी नहीं होता है। आदिवासियों के अनुसार, समुद्रशोख की ताजी पत्ती को घाव पर कम से कम 2 घंटे तक लगे रहने दिया जाना चाहिए। इस पौधे की पत्तियों के एंटी-बैक्टीरियल गुणों को आधुनिक विज्ञान भी मानता है।
- शरीर में दाद-खाज होने पर: इसकी पत्तियों को कुचलकर दाद-खाज से ग्रस्त अंगों पर लगाया जाए तो जल्द आराम मिलने लगता है। आधुनिक शोधों से जानकारी मिलती है कि त्वचा पर संक्रमण करने वाले अनेक सूक्ष्मजीवों के नाश के लिए इसकी पत्तियां बेहद कारगर होती हैं।
- हर्बल चूर्ण: शरीर में ताकत और ऊर्जा के लिए समुद्रशोख की जड़ों का चूर्ण बनाया जाए और इसकी 3-4 ग्राम मात्रा को शहद के साथ प्रतिदिन दो बार लिया जाए तो काफी असरकारक होता है।
- नपुंसकता में लाभकारी: आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार, जड़ों का चूर्ण शहद के साथ लेने से नपुंसकता को भी दूर करता है और शुक्राणुओं की कमी होने की दशा में 5 ग्राम चूर्ण असरकारक होता है।
- जोड़ों के दर्द के लिए: जोड़ दर्द और आर्थराइटिस होने पर जड़ों को तिल के तेल में फ्राय कर और छानकर तेल को दर्द वाले हिस्सों पर लगाया जाए तो दर्द में तेजी से राहत मिलती है। घुटनों में सूजन होने पर समुद्रशोख की जड़ों के चूर्ण और चावल की मांड का मिश्रण घुटनों पर लगाया जाए और दो घंटे बाद धो लिया जाए, तो आराम मिलने लगता है।
- हाथीपाँव: जड़ों का चूर्ण बनाकार पके हुए चावल के साथ लेने से हाथीपांव रोग में राहत मिलती है। माना जाता है कि यह मिश्रण सूजन मिटाने में सहायक होता है। इसकी जड़ों में टैनिन, एर्गोलाईन एल्केलॉयड्स, अम्ल और कई तरह के खनिज पाए जाते हैं। इसकी जड़ों को कुचलकर घावों पर लगाया जाए तो घाव सूखने लगते हैं। जिन्हें अक्सर जोड़ दर्द और हाथ-पैरों में सूजन की शिकायत रहती है, वे इसकी पत्तियों पर सरसों का तेल लगाकर तवे पर हल्का गर्म करके इन पत्तियों से सेंकाई करें तो सूजन में राहत मिलती है और दर्द भी आहिस्ता-आहिस्ता कम हो जाता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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