Friday, January 2, 2015

मिताहार: कम खाने का अर्थ लम्बा जीवन जीना

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वर्तमान समय में इंसान के जीवन में परेशानियों की एक बड़ी वजह है, अनियमित खान पान व दिनचर्या। सेहत पर खानपान का बहुत गहरा असर पड़ता है। जो हमेशा सेहतमंद बने रहना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले अपनी जीवन शैली और खानपान मेंं सुधार करना चाहिए। यहां तक कि हमारे धर्म ग्रंथों में अच्छा या बुरा खान-पान तो सही और गलत सोच बताने वाला कहा गया है। ज्यादा खाना जहां दरिद्रता बढ़ाने वाला माना गया है। वहीं, कम खाना सेहत और भाग्य दोनों के लिए बेहतर
माना गया है: 
  1. पहला फायदा: भूख से थोड़ा सा कम खाने से सेहत बरकरार रहती है। शरीर भी ताकतवर बनता है। साथ ही, हमेशा स्फूर्ति बनी रहती है।  
  2. दूसरा फायदा: कम खाने से व्यक्ति रोगी नहीं होता। जबकि ज्यादा खाना पाचन में गड़बड़ी से कई बीमारियों की वजह बनता है। कम खाने से इनसे बचाव होता है।  
  3. तीसरा फायदा: जब व्यक्ति खान-पान नियंत्रित रख निरोगी रहता है तो जाहिर है कि उसकी उम्र बढ़ती है यानी लंबे वक्त तक स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है।
हमारे ग्रंथों के अनुसार कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वभाव का अनुमान लगाया जा सकता है: 
  • सात्विक भोजन: ताजा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा और स्वादिष्ट भोजन सात्विक होता है। यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को शांत रखता है। सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है। सात्विक भोजन पसंद करने वालों को गुस्सा कम आता है। मन में संतोष रहता है और ये हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढने वाले होते हैं।
  • राजसिक भोजन: राजसिक आहार भारी होता है। इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किए गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं। राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है। यह सामान्यत: कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चटपटा और सूखा होता है।  पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज स्वाद वाले मसाले, मिठाइयां दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन में आते हैं।  
  • राजसिक स्वभाव: राजसिक भोजन पसंद करने वालों का स्वभाव कामुक होता है। ऐसे लोग रशक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता की चाह रखने वाले होते हैं। इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है। राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं। 
  • तामसिक भोजन: तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह गया हो। जरूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बासी या खाना योग्य न हो ऐसे पदार्थ, प्रोसेस्ड फूड यानी ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद फूड आदि आते हैं। जरूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, चाट और ज्यादातर फास्ट फूड कहे जाने वाले पदार्थ इसमें आते हैं। मांस, मछली और अन्य सी-फूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं। तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के होते हैं। उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं और भोग की इच्छा हावी हो जाती है। जिसके कारण ऐसे लोग दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते। इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है यानी की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं। इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण आने लगते हैं।  
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
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