Thursday, June 1, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: मुक्त होने के लिए वह करें जो ठीक समझते हैं

स्टोरी 1: प्रवचन के दौरान, जहां मैं कभी-कभी जाता हूं, मैंने सुना कि गीता में श्रीकृष्ण मोक्ष के लिए तीन तरह के योग बतातेे हैं- कर्म, भक्ति और ज्ञान लेकिन, गोपियों ने प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कोई मार्ग नहीं अपनाया, फिर
भी उन्हें मुक्ति मिली। ऐसा उनके श्रीकृष्ण के प्रति गहरे प्रेम के कारण हुआ। भगवान ने उनके तीन योगों का हिसाब नहीं देखा, बल्कि वे अपने प्रति उनके लगाव से प्रभावित हुए। उपदेश में आगे कहा गया कि तीन मार्ग हैं, जिनसे हम ईश्वर की सेवा कर सकते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हम शरीर के माध्यम से सेवा कर सकते हैं, जिसे काया सेवा कहते हैं। हम शब्दों के माध्यम से सेवा कर सकते हैं- जिसे वाचा सेवा कहते हैं। विचारों से सेवा कर सकते हैं- जिसे मानस सेवा कहते हैं। इस कथन ने मुझे एक लेख की याद दिला दी। यह अन्नम्मा स्पूडिच के बारे में था, जिन्होंने मॉलिक्यूलर बायोलॉजी का अपना सम्मानजक कॅरिअर केरल स्थित कोट्‌टयम के मसालों को खोजने, काली मिर्च, इलायची और अदरक को समझने के लिए छोड़ दिया। 
लेकिन वे जिस राह पर 19 साल से चल रही हैं, उस पर आईं कैसे? एक दिन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में भारत के औषधीय पौधों पर मध्यकालीन यूरोप की एक किताब पढ़ने का उन्हें मौका मिला। किताब में कहा गया है- 15वीं सदी में जो यूरोपियन भारत आए उन्होंने यहां के मेडिकल नॉलेज को समझा और पाया कि भारतीयों के पास लंबे जीवन के लिए अपना औषधीय ज्ञान है। उन्हें लगा कि भारत की ज्ञान प्रणाली, विशेष रूप से परम्परागत औषधीय प्रणाली आधुनिक इलाज के स्तरों में कहीं खो गई है और कोई भी इसे आगे नहीं बढ़ा रहा है। उन्होंने अपनी आरामदायक नौकरी छोड़ दी और भारतीय औषधीय व्यवस्था को वेदों, पौधों, पत्तियों के माध्यम से समझने के काम में लग गईं। इनसे तब की सारी बीमारियों का इलाज होता था। तब से अन्नम्मा भारत के परम्परागत चिकित्सकीय ज्ञान से हैरान हैं और हाल ही में उन्होंने बेंगलुरू के नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस में अपनी रिसर्च के आधार पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। 
इस प्रदर्शनी में अन्नम्मा ने 'द फिलोसॉफिकल ट्रांजेक्शंस ऑफ रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन' में प्रकाशित छह शोधपत्र पेश किए। यह दुनिया की शुरुआती साइस जर्नल्स में िगनी जाती है। ये शोधपत्र 17वीं सदी में मद्रास के एक ब्रिटिश फिजिशियन ने भेजे थे। उन्होंने पाया कि ब्रिटिश और अमेरिकी दवाओं में भारत से मंगाई गई सामग्री का उपयोग होता था। साथ ही 19वीं सदी के मध्य तक 50 प्रतिशत से ज्यादा ब्रिटिश दवाओं में भारतीय बॉटनिकल मसालों का उपयोग होता था। यह ज्ञान वैद्यों के पास था। उनके शैक्षणिक प्रशिक्षण ने भारतीय औषधीय पौधों के पीछे के विज्ञान को समझने में मदद की। उन्होंने पाया कि कई सिंगल मॉलिक्यूल ड्रग जैसे एस्पिरिन प्लांट से ही निकली है। 
स्टोरी 2: पंचकुला में 22 अप्रैल को सुबह 9.30 बजे के करीब पीयूष बथूरा (24) और राजसिंह (30) इंडस्ट्रियल एरिया के फेज 2 के सेक्टर 12ए में रोड डिवाइडर से टकराए और मोटरसाइकिल से गिरकर घायल हो गए। स्थानीय उद्योगपति प्रवीण गोयल (58) अपने बेटे सचिन गोयल के साथ फैक्ट्री से घर जा रहे थे तब उन्होंने भीड़ देखी। लोग पुलिस और एम्बुलेंस का नंबर ढूंढ़ रहे थे। दोनों ने तुरंत घायलों को सेक्टर 6 के सिविल अस्पताल ले जाने का फैसला किया। जब जरूरत हो तब क्या जरूरी है जीवन बचाना या आने वाली परिस्थतियों के बारे में सोचना, विशेष रूप से तब जब पुलिस का मामला हो। उन्होंने पहले विकल्प को चुना। उनकी तेजी से की गई प्रतिक्रिया अहम साबित हुई और पीड़तों की जान बच गई। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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