एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: अरुणाचल प्रदेश के ठेठ पूर्वी छोर पर दिबांग नदी के किनारे घाटी में बसा है सुंदर दृश्यों वाला कस्बा रोइंग। बर्फ से ढंके पहाड़ों वाला जिला उत्तर की तरफ पहाड़ी और दक्षिण की तरफ समतल है। कई धाराओं,
नदियों और छोटी नदियों में यह बंटा है, जो पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां इदू मिशनी नामक जनजाति रहती है। ये लोग तिब्बती और बर्मी की मिली-जुली भाषा बोलते हैं। इस भाषा में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें वेस्ट के लिए कोई शब्द नहीं है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसलिए वे नहीं जानते कि बेकार हुए पोलिथीन बैग्स, स्टेरोफोम प्लेट्स, पीईटी बॉटल्स और पेपर सहित अन्य वेस्ट चीजों के साथ क्या किया जाए। उदयपुर में इको-हट नाम का डिजाइन स्टोर चलाने वाले विशाल सिंह के साथ सॉलिड वेस्ट इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट में विशेषज्ञता रखने वाली इंडो-जर्मन कंपनी के विश्वास विद्यानाथ, फर्दर एंड बियोंड एनजीओ के मर्विन कटिन्हो, राजीव राठोड़, फ्रीलॉन्स राइटर श्वेता डागा जैसे कुछ नेक दिल लोग यहां पहुंचे और इस पहाड़ी क्षेत्र से सारा कूड़ा एकत्र किया। उन्होंने स्थानीय लोगों से बात की और उन्हें उनके शब्दकोष के लिए एक नया शब्द दिया वेस्ट। उन्हें बताया कि वेस्ट को सुरक्षित तरीके से एकत्र और नष्ट करें।
आठ दिन के काम के बाद उन्हें अचानक एडिशनल डिप्टी कमिश्नर श्रेष्ठ यादव का पत्र मिला कि हम आपको यहां से जल्दी नहीं जाने देंगे। आप यहां जमीनी काम कर रहे हैं, जो सरकार को करना चाहिए। आप तब तक यहां से नहीं जा सकते जब तक रोइंग में वेस्ट मैनेजमेंट के लिए एक ब्लू प्रिंट तैयार नहीं कर देते। यह खूबसूरत हिल स्टेशन देश के अन्य पहाड़ी इलाकों की तरह ही है। शहरीकरण और पर्यटन यहां के प्राचीन स्वरूप और वातावरण को बदल रहा है। पिछले दशक में यहां सर्वाधिक प्लास्टिक, कॉन्क्रीट, कारें, बैटरी, पेस्टिसाइड आए हैं। इसने संवेदनशील रोइंग के पर्यावरण-तंत्र को खतरे में डाल दिया है। यहां की नदियों, धाराओं, हवा को प्रदूषित किया है और जंगलों, वनस्पति और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचाया है। यह कस्बा आज हर दिन 5.6 टन वेस्ट पैदा करता है। इन लोगों ने यहां के लिए पूरा वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम बनाने का प्लान तैयार किया। हालांकि सभी लोग अपने-अपने स्थानों पर लौट गए, लेकिन वे नियमित रूप से स्थानीय लोगों के संपर्क में रहते हैं। इन्हें पूरा भरोसा है कि इस साल के अंत तक यह शहर वेस्ट की अपनी समस्या का समाधान कर लेगा। साथ ही अपनी भाषा में वेस्ट के लिए एक शब्द भी तलाश लेगा।
स्टोरी 2: भुवनेश्वर के अभय कुमार मोहंता, कृष्ण चंद्र त्रिपाठी, निहार रंजनदास, भवानी शंकर पारिदा सभी अपने-अपने कॅरिअर में अच्छा कर रहे हैं। इन्होंने अपनी कंपनी वी4यू के माध्यम से दृष्टिहीन छात्रों की मदद के लिए ऑडियो बुक्स तैयार की हैं। उन्हें अहसास हुआ कि देश में 1.20 करोड़ दृष्टिहीन छात्र हैं, जिसमें से सिर्फ आेडिशा में ही 25 हजार हैं और देश में मात्र 10 ब्रेल प्रेस यूनिट्स हैं। समस्या के अहसास के बाद ये सभी साथ आए और 70 कार्यकर्ताओं की एक टीम तैयार करके कक्षा 7 से लेकर पीएचडी तक की कक्षाओं की किताबों की रिकॉर्डिंग शुरू की। छह वर्षों में वे 15 हजार छात्रों को उनकी कक्षाओं की ऑडियो बुक्स दे चुके हैं। इनकी मदद से ये छात्र हर साल अच्छे अंक ला पा रहे हैं। एक माइक्रोफोन, एक एम्प्लिफायर और एक एयर फिल्टर के छोटे-से सेट की मदद से सीडी और डीवीडी के रूप में ऑडियो फाइल बनाई जा रही है। दूरस्थ इलाकों के छात्रों को यह फाइल सेलफोन में भी उपलब्ध कराई जा सकती हैं। जब पैसों की कमी हो जाती है तो वे कॉर्पोरेट इवेेंट का आयोजन करते हैं।
फंडा यह है कि समाजने जो दिया है उसके बदले में लौटाना कला है, जो दिल से आती है। नेक दिल लोग हमेशा ऐसा अलग तरीके से करते हैं।
फंडा यह है कि समाजने जो दिया है उसके बदले में लौटाना कला है, जो दिल से आती है। नेक दिल लोग हमेशा ऐसा अलग तरीके से करते हैं।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.