फिनलैंड वह देश है जहां शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर बनाए रखने के लिए कुछ कुछ नया होते रहता है। शायद इसी कारण अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में वहां के बच्चे अक्सर शीर्ष पर होते हैं। फिनलैंड में अब डिजिटल युग की पढ़ाई
पर विचार किया जा रहा है, जिसमें विषय की जगह अब प्रतिभा को महत्व दिया जा रहा है। हालांकि, कुछ लोगों को आशंका है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। देश के दक्षिणी क्षेत्र हाउहो में 230 बच्चों वाला एक स्कूल है, जहां टीचर बच्चों को वीडियो दिखाकर पढ़ाते हैं। वहां कक्षा में परंपरागत बोर्ड की जगह स्मार्ट बोर्ड है, जिसमें इटली स्थित माउंट वसुवियस में ज्वालामुखी फटने से पुराने रोम शहर पोम्पेइ को तबाह होते दिखाया जाता है। बच्चे लैपटॉप पर जानकारी समझते हैं। होमवर्क की जगह उन्हें टास्क में प्राचीन रोम की तुलना फिनलैंड से करने के लिए कहा जाता है। औसत 12 वर्ष उम्र वाले बच्चों का एक समूह रोमन जीवनशैली की तुलना आज से करता है, तो दूसरा इटली के कॉलेज़ियम की तुलना आज के स्टेडियम से करता है। - फिनलैंड में पढ़ाई के नए-नए प्रयोग तरीके आजमाए जाते हैं, इसलिए डिजिटल युग में बच्चे नॉलेज के लिए पुस्तकों और कक्षा पर निर्भर नहीं है।
- फिनलैंड की छवि दुनिया की श्रेष्ठ शिक्षा प्रणाली के तौर पर है, 15 वर्ष तो लगातार उसने बाजी मारी है। टीचर बच्चों को कक्षा में मोबाइल फोन रखने देते हैं, वहां उसका इस्तेमाल रिसर्च टूल के तौर पर होता है, कि दोस्तों से बतियाने में।
- सबसे अधिक सम्मान वाला पेशा वहां टीचिंग ही है। परीक्षा उनकी होती है, जो लगातार 18 वर्ष की उम्र तक पढ़ते हैं। स्कूलों में बच्चों की औसत संख्या 195 है, जबकि कक्षाओं में 19 औसत बच्चे होते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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