कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा देने के मामले में जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय न्यायलय ने पाकिस्तान के सारे तर्को को खारिज किया है और भारत के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है, उसका असर पाकिस्तान के अंदर
भी दिखाई देने लगा है। खास तौर पर इससे पाकिस्तानी सेना और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई नवाज शरीफ सरकार के बीच तनाव के और बढ़ने के आसार हैं। पाक सेना और शरीफ के बीच पहले से ही यह लड़ाई जारी है कि भारत को लेकर नीति बनाने में अंतिम फैसला किसका होगा। कई जानकार मानते हैं कि पाक सेना ने जाधव मामले के जरिये भारत के साथ रिश्ते सुधारने के प्रयासों पर पानी फेरने की कोशिश की है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो पाक सेना की तैयारी जाधव को दी गई फांसी की सजा को अमल में लाने की थी। ऐसी खुफिया सूचना मिलने के बाद ही आनन-फानन में भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में गुहार लगाई थी। जाधव के मामले में जिस तरह से सैन्य कोर्ट में मामला चला कर फांसी की सजा दी गई है, उससे शरीफ सरकार बहुत खुश नहीं है। यह इस बात से भी पता चलता है कि शरीफ के कैबिनेट के किसी वरिष्ठ सदस्य ने जाधव को लेकर कोई तल्ख टिप्पणी नहीं की है। शरीफ को यह मालूम है कि इस तरह के कदम से जहां भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की सारी उम्मीदें खत्म हो जाएंगी, वहीं अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में उसे और ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। सनद रहे कि दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव के बावजूद इस तरह की खबरें सामने आ रही हैं कि किसी न किसी स्तर पर बैक चैनल डिप्लोमैसी भी चल रही है।
पाक सेना और शरीफ के बीच रिश्ते लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। कुछ महीने पहले शरीफ कैबिनेट के कुछ वरिष्ठ सदस्यों और पाक सेना के बीच बैठक की कुछ बेहद गोपनीय जानकारी बाहर आने के मुद्दे पर दोनों में तनाव काफी बढ़ गया है। पाकिस्तान के डान समाचारपत्र ने प्रमुखता से यह खबर प्रकाशित की थी जिसमें कैबिनेट के लोगों के हवाले से कहा गया था कि अगर पाक सेना ने आतंकियों के खिलाफ कदम नहीं उठाए तो पाकिस्तान को अलग-थलग होना पड़ेगा।
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साभार: जागरण समाचार
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