हरियाणा पंचायत राज संशोधन कानून की वैधानिकता पर सवाल उठाने वाली याचिकाएं विचार के लिए संविधान पीठ को भेजी जाएं। अब पीठ ही इस मामले की सुनवाई कर सकती है, क्योंकि इसमें संविधान के विभिन्न प्रावधानों की व्याख्या शामिल है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से ये मांग याचिकाकर्ताओं ने की।याचिकाकर्ता की वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि इस मामले में संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधानों की व्याख्या की
जरूरत है। ऐसे में मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। अनुच्छेद 145 के मुताबिक जिन याचिकाओं में संविधान के प्रावधानों की व्याख्या का मसला शामिल होता है, उस पर कम से कम पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को ही सुनवाई करनी चाहिए। हालांकि न्यायाधीश जे. चेल्मेश्वर व न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे की पीठ ने कहा कि वे हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने वालों की मांग पर मामला संविधान पीठ को नहीं भेज सकते। बड़ी पीठ (तीन न्यायाधीशों की पीठ) को भेजने पर विचार कर सकते हैं। इस पर लेकिन जयसिंह ने कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 326 व 243 के प्रावधानों की व्याख्या किये जाने की जरूरत है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सामाजिक और आर्थिक न्याय पर तो कोर्ट ने कई बार विचार किया है लेकिन अब राजनैतिक न्याय पर भी विचार करने की जरूरत है। चुनाव लड़ने का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं बल्कि विधायी अधिकार है लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि ये अधिकार मूलता संविधान से निकल कर आया है। संविधान में मतदाता बनने की योग्यताएं बताई गई हैं। और चुनाव लड़ने के लिए मतदाता सूची में नाम होना जरूरी है ऐसे में चुनाव लड़ने का अधिकार भी संविधान से ही आता है। उधर, कोर्ट ने अटार्नी जनरल से पूछा कि वे बताएं कि योग्यता और अयोग्यता में क्या अंतर है। मामले पर अब मंगलवार को सुनवाई होगी।
जरूरत है। ऐसे में मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। अनुच्छेद 145 के मुताबिक जिन याचिकाओं में संविधान के प्रावधानों की व्याख्या का मसला शामिल होता है, उस पर कम से कम पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को ही सुनवाई करनी चाहिए। हालांकि न्यायाधीश जे. चेल्मेश्वर व न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे की पीठ ने कहा कि वे हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने वालों की मांग पर मामला संविधान पीठ को नहीं भेज सकते। बड़ी पीठ (तीन न्यायाधीशों की पीठ) को भेजने पर विचार कर सकते हैं। इस पर लेकिन जयसिंह ने कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 326 व 243 के प्रावधानों की व्याख्या किये जाने की जरूरत है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सामाजिक और आर्थिक न्याय पर तो कोर्ट ने कई बार विचार किया है लेकिन अब राजनैतिक न्याय पर भी विचार करने की जरूरत है। चुनाव लड़ने का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं बल्कि विधायी अधिकार है लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि ये अधिकार मूलता संविधान से निकल कर आया है। संविधान में मतदाता बनने की योग्यताएं बताई गई हैं। और चुनाव लड़ने के लिए मतदाता सूची में नाम होना जरूरी है ऐसे में चुनाव लड़ने का अधिकार भी संविधान से ही आता है। उधर, कोर्ट ने अटार्नी जनरल से पूछा कि वे बताएं कि योग्यता और अयोग्यता में क्या अंतर है। मामले पर अब मंगलवार को सुनवाई होगी।
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साभार: जागरण समाचार
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