अतिथि अपनी मर्जी से नहीं आए, उन्हें बुलाया गया था। न तो साक्षात्कार हुआ न
ही लिखित परीक्षा। गांवों के सरकारी स्कूलों से दसवीं और बारहवीं पास करने
वालों को अतिरिक्त अंक भी दिए गए। नियुक्ति सिर्फ एक वर्ष के लिए थी। मगर
31 मार्च आने पर अवधि जितनी भी हुई हो, सेवाएं खत्म हो जानी थी। सरकारी
स्कूलों में शिक्षकों का 2005-06 में भारी टोटा था। शिक्षा व्यवस्था पटरी
से उतरी हुई थी। Post published at www.nareshjangra.blogspot.com नौकरी जाते देख 31 मार्च 2006 से पहले ही सेवारत गेस्ट
हाईकोर्ट पहुंच गए। सरकार
ने कोई विरोध नहीं किया और हाईकोर्ट ने भी स्थायी
भर्ती होने तक सेवाएं जारी रखने की व्यवस्था दे दी। यहीं से गेस्ट टीचर्स
के संघर्ष की नींव पड़ी। गेस्ट को बाहर का रास्ता दिखाने की पृष्ठभूमि
पूर्व हुड्डा सरकार के समय ही तैयार हो गई थी। तत्कालीन प्रधान सचिव सुरीना
राजन ने स्थायी भर्ती होते ही गेस्ट को हटाने का हल्फनामा सुप्रीम कोर्ट
और हाईकोर्ट में 2011-12 में दे दिया था। बावजूद इसके इन्हें निकालने की
कार्रवाई शुरू नहीं हुई। जंतर-मंतर पर चल रहा आमरण अनशन खत्म कराने के लिए
पूर्व सरकार ने गेस्ट को नियमितीकरण नीति बनाने की घुट्टी पिलाई। सरकार को
जाते-जाते अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए 3 व 10 वर्षीय
नियमितीकरण पॉलिसी बनानी पड़ी। गेस्ट को दस साल वाली पालिसी में रखा गया।
भाजपा सरकार को सत्ता में आने के बाद गेस्ट को हटाने में कोई दिक्कत नहीं
आती, मगर चुनावी बेला में भाजपा नेताओं ने भी गेस्ट टीचर्स के नाम पर खूब
राजनीतिक रोटियां सेंकी थीं। गेस्ट सरकार के गले की फांस बने हुए हैं। 4073
सरप्लस गेस्ट टीचर्स को हटाने के लिए सरकार को एडी चोटी का जोर लगाना पड़
रहा है। हाईकोर्ट के आदेश अनुसार हटाने के लिए नोटिस तो भेजे गए, लेकिन
अमल करना मुश्किल हो गया। छात्र, अभिभावक और स्कूल मैनेजमेंट समितियां पूरे
प्रदेश में सडक पर उतर आईं और स्कूलों के गेट पर ताले जड दिए। गेस्ट अभी
बरकरार हैं और नौकरी किसी सूरत में छोडने को तैयार नहीं। वे नियमित करने की
मांग कर रहे हैं। मामला अब भी हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं और गेस्ट सडकों
पर। उनके सामने इसलिए भी कोई रास्ता नहीं बचा है, चूंकि पंद्रह हजार टीचर्स
में से 70 फीसद सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने की आयु पार कर चुके हैं।
आधे अतिथि हरियाणा अध्यापक पात्रता परीक्षा पास हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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