Thursday, June 22, 2017

बात क़ानून की: जानकारी जरूरी है - दहेज में कीमती भेंट और अपराध के खिलाफ मजिस्ट्रेट का दायित्व

नंदिता झा (हाईकोर्ट एडवोकेट, नई दिल्ली)
सब जानते हैं कि दहेज लेना और देना दोनों अपराध हैं। लेकिन क्या ये जानते हैं जहां बेहिसाब पैसा और कीमती उपहार दिया जा रहा हो, वहां मजिस्ट्रेट का दायित्व है कि इस प्रकार की शिकायत को इनकम टैक्स के संज्ञान में
लाए। इससे धन के स्रोत का पता चलेगा तथा आरोप की सत्यता की पुष्टि हो सकेगी। दहेज लेना और देना, दोनों ही अपराध है। सभी जानते भी हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दहेज निषेध कानून 1961 के सेक्शन 3 में यह व्यवस्था दी गई है, जिसका रेफरेंस इंद्रसेन बनाम सिन्ते 1988, क्रिमिनल लॉ जर्नल 1116 में है। इस कानून के सेक्शन 4 में विवाह के लिए दहेज मांगना या विवाह के बाद दहेज वसूलना दंडनीय अपराध है। कानून तो बने हैं पर कानून चलकर लोगों तक नहीं पहुंचता। लोगों को आगे बढ़ना होता है। 
फिर भी दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि दहेज देने वाले परिवार के खिलाफ मुकदमा लगाया जाए। यह एक दुर्लभ आदेश था। सामान्य तौर पर दहेज देने वाले पर बहुत ही कम मामले दायर होते हैं। 2010 में दिल्ली की रोहिणी जिला अदालत ने कहा कि दहेज के मामले में वर पक्ष की तरह दुल्हन के परिजनों पर भी मुकदमा दायर होना चाहिए, तभी यह सामाजिक बुराई समाप्त होगी। इसके साथ ही दहेज देने वालों की कमाई के स्रोतों की जांच होनी चाहिए। 
दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस एसएन ढींगरा ने नीरजा सिंह बनाम राज्य (गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी) और अन्य 138 (2007) में कहा कि कानून के अंतर्गत दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध है। दहेज लेने और देने दोनों मामले की जांच होनी चाहिए। जहां बेहिसाब पैसा और कीमती उपहार दिया जा रहा हो, वहां मजिस्ट्रेट का दायित्व है कि इस प्रकार की शिकायत को इनकम टैक्स विभाग के संज्ञान में लाए। इससे धन के स्रोत का पता चलेगा तथा आरोप की सत्यता की पुष्टि हो सकेगी। 
कुछ राज्यों ने भी अपने यहां सख्ती से दहेज निषेध कानून को लागू करने के लिए कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने इस हेतु दहेज प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किए हैं। सभी बाल विकास परियोजना अधिकारियों को दहेज प्रतिबंध अधिकारी घोषित किया है। इनको दायित्व दिया है कि इस कानून की जानकारी जनता को दें। साथ ही दहेज में दिए गए पैसे, जेवरात और सामान की सूची विवाह के उपरांत बनवाएं। अगर दहेज की घोषणा सूची में कोई दोष हो तो उसकी जांच करवाएं। अपने स्तर पर राज्य ने ये कार्यवाही की है। 
दहेज प्रथा के कुप्रभाव को रोकने के लिए 1961 में दहेज प्रतिषेध कानून बनाया गया, जो अनेक संशोधनों के साथ अभी लागू है। इसके सेक्शन 2 में दहेज को परिभाषित किया गया है। दहेज वह धन या मूल्यवान संपत्ति माना गया है, जो विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात विवाह के एक पक्षकार द्वारा विवाह के दूसरे पक्षकार को दिया गया हो। इसके दोषी व्यक्ति को पांच वर्ष का कारावास और पंद्रह हजार रु. का जुर्माना भरने की सजा है। सेक्शन 4 में दहेज मांगने के लिए विज्ञापन देने को भी अपराध माना गया है। ऐसे दोषी को 6 माह से पांच साल तक की सजा दी जा सकती है। 
आपने विवाह में दहेज की वकालत करने वाले कई विज्ञापन देखे होंगे। इनमें से एक विज्ञापन एक बड़ी सरकारी कंपनी का है, जिसमें मेहमान लड़की की मां को बधाई देता है कि शर्माजी (पिता) की मृत्यु के बाद भी उसने बेटी का विवाह बड़े धूमधाम से किया। तो बेटी की मां कहती है शर्माजी ने अपने जीते जी सारे काम कर दिए थे। उनकी जमा रकम से बेटी के विवाह का सारा खर्च निकला। 
यहां ये समझ लें कि विवाह में दिया गया उपहार दंडनीय नहीं है। नियमों के अनुसार उपहारों को एक सूची में दर्ज कर लेना चाहिए। दहेज लेने या देने के लिए किया गया कोई भी समझौता या करार अवैध है। शादी के समय दिया गया उपहार वधु की संपत्ति होना चाहिए। अगर वधु को दहेज सौंपा जाए तो दोषी को 6 माह से लेकर दो वर्ष तक जेल भेजा जा सकता है। साथ ही पांच हजार से दस हजार तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।
दहेज अपराध के मामले शहरों में महानगर मजिस्ट्रेट के पास जाता है अन्यथा प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास जाता है। न्यायिक प्रक्रिया अपराध घटित होने के बाद सूचना प्राप्त होने पर शुरू होती है। जज को जानकारी मिलने े बाद पुलिस के चालान पेश करने पर पीड़ित या उसके रिश्तेदार द्वारा निजी शिकायत या सामाजिक संस्था द्वारा की गई शिकायत पर कार्रवाई शुरू होती है। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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