पं. विजयशंकर मेहता (जीने की राह)
बड़े सपने देखे जाएं, विशाल अभियान हाथ में लिए जाएं, लक्ष्य छोटे हों। ऐसी बातें आजकल युवा पीढ़ी को सिखाई जाती हैं। उन्हें दक्ष किया जाता है कि छोटा मत सोचो, बड़ा ही बनना है। आसमान के तारे से नीचे की
बात करो। तारे तोड़ने का इरादा रखोगे तो भले ही हाथ कुछ लगे, कम से कम कीचड़ में सनने से तो बच जाएंगे। उड़ान ऐसी हो कि आसमान भेद दो। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कम से कम धरती की धूल गंदा तो नहीं कर पाएगी। ऐसे सारे सूत्र आधुनिक प्रबंधन में सिखाए जाते हैं। ये सब बहुत अच्छा है। ऐसा होना भी चाहिए लेकिन, इसे थोड़ा आध्यात्मिक दृष्टि से भी देखा जाए। अध्यात्म कहता है लक्ष्य बड़े हों तो हृदय भी बड़ा होना चाहिए। दिल बड़ा हो तो बड़े लक्ष्य प्राप्त करने में दिक्कत नहीं होती, क्योंकि बड़े दिल में चारों दुर्गुण (काम, क्रोध, अहंकार और लोभ) अपने अच्छे और बुरे दोनों रूप में रहते हैं। काम अपने आपमें एक ऊर्जा है और विलास भी। जिसका हृदय बड़ा होता है वह ऊर्जा के सदुपयोग और भोग-विलास की मस्ती दोनों का संतुलन बैठा लेता है। क्रोध की उत्तेजना स्वयं को और दूसरों को अनुशासन सिखा सकती है और इसकी कमी आपको कमजोर प्रशासक बना सकती है। बड़े दिल वाला संतुलन करके चलता है। अहंकार से आप प्रभावशाली भी हो सकते हैं और इसके कारण अकेले भी हो सकते हैं। बड़े दिल वाला अहंकार को नियंत्रित करके चलता है। चौथा दुर्गुण है लोभ। आपकी इस वृत्ति में अनेक लोग समा जाएं तो सबका भला हो जाएगा, वरना यह वृत्ति आपको मृत्यु तक ले जाएगी। दुर्गुण सभी में होते हैं पर उनमें से सदगुण निकाल लेना और सदगुण को दुर्गुणों से बचा लेना बड़े दिल वालों की विशेषता होती है, इसलिए जिनके लक्ष्य बड़े हों वे हृदय जरूर बड़ा रखें।
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साभार: भास्कर समाचार
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