एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
महाराष्ट्र से शुरू हुई किसानों की हड़ताल ने मध्यप्रदेश को भी अपनी जद में ले लिया है और मंगलवार को पुलिस गोलीबारी के दौरान पांच किसानों की मौत हो गई। मैंने इस हड़ताल के दौरान सब्जी बेचने वालों में एक तरह की
एकता देखी है। मंगलवार रात मेरे ध्यान में आया कि कुछ सब्जी उगाने वाले किसान कुछ कमाने के इरादे से स्वत: तुरंत एकत्र हो गए, ताकि अगर जरूरत पड़े तो अपने आंदोलन को कुछ और समय के लिए आगे बढ़ा सकें। वे एक पॉश कॉलोनी के किनारे बैठ गए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हड़ताल पर नज़र रख रहे किसानों के आंदोलन से यह जगह सात सौ मीटर की दूरी पर थी। ये लोग स्ट्रीट लाइट की रोशनी में सब्जियां बेचने लगे। इन लोगों की जिस चीज ने मेरा ध्यान खींचा वो था एक व्हाइट बोर्ड। आइडिया शायद किसी सोशल सर्विस एक्टिविस्ट का था। इस बोर्ड पर सब्जियों की कीमत लिखी जा सकती थी। कोई भी किसी से बात नहीं कर रहा था। लोग बोर्ड पर लिखी सब्जी की कीमत देखते। आधा या एक किलो सब्जी मांगते। कीमत चुकाते और चले जाते। सब कुछ ऐसे हो रहा था जैसे कोरियोग्राफ्ड डान्स सिक्वेंस हो। मैं जानता हूं कि यह कोई फ्लैश डान्स जैसा नहीं था, जिसमें लोग एक-दूसरे को पहचानते नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि जिस व्यक्ति ने बोर्ड पर कीमत लिखी थी उसकी तस्वीर बोर्ड के एक कोने में लगी थी।
बोर्ड पर सब्जियों के नाम उनकी कीमत की तुलना में बहुत छोटे अक्षरों में लिखे थे। अगर कोई सब्जी बेचे जाने की शिकायत करता तो जिस व्यक्ति का फोटो बोर्ड पर लगा था वो लिखे हुए अक्षरों को तुरंत मिटा देता। यूं भी सब्जियों के नाम मंद रोशनी की वजह से बहुत छोटे नज़र रहे थे। लिखने की इस स्टाइल ने देशभर के रेलवे स्टेशनों पर लगे उन बड़े पीले बोर्ड की याद दिला दी, जिन पर स्थानीय भाषाओं में शहरों का नाम बड़े काले अक्षरों में लिखा होता है। आपमें से कई लोगों ने ये बोर्ड देखें होंगे, लेकिन इसके नीचे छोटे अक्षरों में लिखे आंकड़ों पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो। यह आंकड़े खासतौर पर समुद्र तट के नज़दीक के रेलवे स्टेशनों के बोर्ड पर लिखे होते हैं। असल में ये अंक बताते हैं कि समुद्र तट से इस स्थान की ऊंचाई कितनी है। रेलवे बोर्ड पर इस तरह समुद्र तल से स्टेशन की ऊंचाई लिखने की परंपरा 170 साल पहले रेलवे के शुरुआती दिनों से है।
छोटे आकार में लिखे ये आंकड़े समुद्र की ऊपरी सतह का औसत स्तर होते हैं, जहां से निर्माण की खड़ी ऊंचाई को मापा जा सके। रेलवे के लिए ये महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि भारी बारिश के दौरान ट्रैक पानी में डूबना नहीं चाहिए। और पानी निकलते रहना चाहिए। आज के दिनों मेंं आधुनिक मशीने ये काम मिनटों में कर देती हैं, लेकिन उन दिनों समुद्र के स्तर का पहले से हिसाब लगाया जाता था। पहले अधिकतर रेलवे स्टेशन शहर के केंद्र में होते थे या शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके से होकर गुजरते थे। यह अंक सोच समझकर स्टेशन बोर्ड पर दर्ज किए जाते थे, ताकि रेलवे के सिविल इंजीनियर्स को विकास कार्यों में मदद मिले। साथ ही ये जानकारी उस शहर के सीविल कंस्ट्रक्शन एजेंसीज़ के भी काम आती थी, ताकि वे अपनी प्रॉपर्टी समुद्र सतह को ध्यान में रखकर बना सकें और शहर में बाढ़ की स्थिति से निपट सके। समय के साथ कुछ स्टेशन पर ये अंक लिखने बंद कर दिए गए। इसी तरह क्लॉक टावर बनाने और यूनिवर्सिटी या रेलवे स्टेशनों पर घंटे बजाने वाली घड़ी लगाना भी लोगों को घर बैठे समय की जानकारी देने की सुविधा देना ही था। याद रखिए रिस्ट वॉच और दीवार घड़ी खरीदना सौ साल पहले सुपर लग्ज़री होता था।
फंडा यह है कि आपकिसी भी समुदाय या वर्ग के हों, समाज सेवा में उन कामों को प्राथमिकता दें जो शहर या समाज के बड़े हिस्से पर असर डालें।
छोटे आकार में लिखे ये आंकड़े समुद्र की ऊपरी सतह का औसत स्तर होते हैं, जहां से निर्माण की खड़ी ऊंचाई को मापा जा सके। रेलवे के लिए ये महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि भारी बारिश के दौरान ट्रैक पानी में डूबना नहीं चाहिए। और पानी निकलते रहना चाहिए। आज के दिनों मेंं आधुनिक मशीने ये काम मिनटों में कर देती हैं, लेकिन उन दिनों समुद्र के स्तर का पहले से हिसाब लगाया जाता था। पहले अधिकतर रेलवे स्टेशन शहर के केंद्र में होते थे या शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके से होकर गुजरते थे। यह अंक सोच समझकर स्टेशन बोर्ड पर दर्ज किए जाते थे, ताकि रेलवे के सिविल इंजीनियर्स को विकास कार्यों में मदद मिले। साथ ही ये जानकारी उस शहर के सीविल कंस्ट्रक्शन एजेंसीज़ के भी काम आती थी, ताकि वे अपनी प्रॉपर्टी समुद्र सतह को ध्यान में रखकर बना सकें और शहर में बाढ़ की स्थिति से निपट सके। समय के साथ कुछ स्टेशन पर ये अंक लिखने बंद कर दिए गए। इसी तरह क्लॉक टावर बनाने और यूनिवर्सिटी या रेलवे स्टेशनों पर घंटे बजाने वाली घड़ी लगाना भी लोगों को घर बैठे समय की जानकारी देने की सुविधा देना ही था। याद रखिए रिस्ट वॉच और दीवार घड़ी खरीदना सौ साल पहले सुपर लग्ज़री होता था।
फंडा यह है कि आपकिसी भी समुदाय या वर्ग के हों, समाज सेवा में उन कामों को प्राथमिकता दें जो शहर या समाज के बड़े हिस्से पर असर डालें।
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साभार: भास्कर समाचार
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