मधुपम कृष्णा (सदस्य,फाइनेंशियल प्लानर्स गिल्ड ऑफ इंडिया)
निवेशकों की मेहनत का पैसा कंपनियां ले भागती हैं। यह भी देखने में आया है कि ज्यादा ब्याज के लालच में बुजुर्ग इस तरह की कंपनियों की चपेट में ज्यादा आते हैं। वे जीवनभर की पूंजी लगा देते हैं और ठगा जाते हैं।
क्या इस तरह की कंपनियों को पहचानने का कोई तरीका है। यदि है तो क्या-
कुछ समय पहले शारदा घोटाला हुआ। शारदा ग्रुप ऑफ कंपनीज में नेताओं और निवेशकों का भारी-भरकम पैसा लगा हुआ था। कुछ समय बाद कंपनी ने छोटे निवेशकों को पैसा देना बंद कर दिया था। अब इस चिटफंड का मामला अदालतों में है। निवेशकों को पैसा वापस मिलने में काफी समय लग सकता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। एक खराब फैसला या सलाह या चयन गलत परिणाम दे देता है। ये तथाकथित निवेशक अवैध नामों से कानूनी ढांचे के भीतर काम करते हैं। सामूहिक निवेश योजनाएं चिट फंड के नाम से चलती हैं। इसके अलावा मल्टीलेवल मार्केटिंग या डिपॉजिट रेजिंग कंपनियां होती हैं। कई कंपनियों ने आम आदमी की मेहनत का पैसा चट कर लिया है।
पैसा क्यों नहीं चुका सके:
कंपनियां दो प्रकार की होती हैं-
- ऐसी कंपनियां लोगों को धोखा देने के लिए ही बनाई जाती हैं। लोगों से पैसा लेकर दूसरे लोगों को चुकाया जाता है। कंपनी शुरू करने वालों के पास कोई बिजनेस प्लान नहीं रहता। वे जानते हैं कि यदि वे जाली बिजनेस प्लान बताएंगे तो निवेशक दौड़े चले आएंगे। निवेशकों के आते ही वे नकदी लेकर गायब हो जाएंगे।
- कंपनी ने एक योजना शुरू की। लेकिन पूरी प्लानिंग चौपट हो गई। प्रमोटर विफलता को स्वीकार नहीं कर रहे थे। वे अपने ब्रैंड या विश्वसनीयता की वजह से कामकाज समेट नहीं पा रहे थे। दूसरे कारण में यह आसानी से समझ में आता है कि स्थापित कंपनी विफल हो गई। इस तरह की कंपनियों की जानकारी तेजी से इसलिए फैली, क्योंकि ये जानी-मानी थीं।
अब इन्हें पहचानेंगे कैसे: यह बहुत कठिन है कि पहले प्रकार की कंपनी को समझ लिया जाए। यह कठिन जरूर है, लेकिन फिर भी कुछ तरीके हैं, जिससे इनको पकड़ा जा सकता है। इससे समझें-
ये कंपनियां बाजार की धारा से अधिक रिटर्न देने की बात करती है। रिटर्न के जरिए ही ये लालच जगाती हैं। ये रिटर्न बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट से मिलने वाले रिटर्न से 4 से 5 गुना होता है। रिटायर या पेंशनधारक आकर्षित होते हैं, क्योंकि वे समझते हैं कि कम से कम समय में यदि कोई 20 फीसदी तक का रिटर्न दे रहा है तो इसमें फायदा होगा।
ये कंपनियां बाजार की धारा से अधिक रिटर्न देने की बात करती है। रिटर्न के जरिए ही ये लालच जगाती हैं। ये रिटर्न बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट से मिलने वाले रिटर्न से 4 से 5 गुना होता है। रिटायर या पेंशनधारक आकर्षित होते हैं, क्योंकि वे समझते हैं कि कम से कम समय में यदि कोई 20 फीसदी तक का रिटर्न दे रहा है तो इसमें फायदा होगा।
निवेशक क्या करें: हमेशा एक सवाल अपने आप से पूछना चाहिए कि बैंकों में अथाह पैसा है तो ये कंपनियां निवेशकों को भारी रिटर्न देकर पैसा क्यों ले रही हैं, सस्ती दर पर कर्ज लेकर काम क्यों नहीं करती? दरअसल बैंकों में इन कंपनियों की वित्तीय जानकारियां और साख के बारे में पूछा जाता है। ये कंपनियां ऐसा नहीं चाहती, क्योंकि वे जानती हैं कि निवेशकों की जोखिम वहन करने की ताकत अधिक है।
बिचौलिए का कमीशन- ये कंपनियां टारगेट पूरा करने पर अपने एजेंटों को 6 फीसदी तक का कमीशन देती हैं। इसके साथ ही एजेंट को रिसॉर्ट में छुटि्टयां मनाने की सुविधा, वाहन, गैजेट्स आदि गिफ्ट देती हैं। भारी-भरकम पार्टियां और बॉलीवुड के छोटे अदाकारों से पुरस्कार दिलाए जाते हैं। गांवों में ग्राम प्रमुख को एजेंट बना देते हैं।
बिजनेस प्लान: ऐसी कंपनियां आमतौर पर कोई बिज़नेस प्लान नहीं रखती। इनकी एक या दो यूनिट ही पूरा बिज़नेस होता है।
काम करने का तरीका: कामकाज की शुरूआत खूब धूमधाम से होती है। महंगे ब्रोशर छपाते हैं, वेबसाइट्स, कर्मचारी आदि सब ऐसा रहता है कि चकाचौंध से निवेशक प्रभावित हो जाता है। शुरुआत में निवेशकों और एजेंट को खूब पुरस्कार बांटे जाते हैं। ब्याज और कमीशन के भारी-भरकम चेक मीडिया के समक्ष दिए जाते हैं। बड़े-बड़े विज्ञापन दिए जाते हैं। जिसमें एजेंट आदि को नियुक्त करने की बात होती है। जब निवेशक कंपनी के कार्यालय के बारे में पूछते हैं तो जवाब मिलता है कि हर बड़े शहर में ऑफिस हैं। कुछ दिनों तक तो ठीक चलता है। फिर अचानक कंपनी के चेक अनादरित होने लगते हैं। मीडिया और निवेशक के विरोध करने से पहले ही इन कंपनियों के मालिक देश छोड़कर भाग चुके होते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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