Friday, May 27, 2016

मुद्दा गम्भीर है: जो कभी फेल ही नहीं हुए, वो पास कैसे हों?

आठवीं कक्षा तक बच्चों को फेल नहीं करने की पॉलिसी रिजल्ट पर भारी पड़ने लगी है। पांच-छह वर्ष भी नहीं बीते कि खराब परिणाम सामने आने लगे हैं। 12 महीने बाद स्कूलों में जब वार्षिक परीक्षा ली गई तो 25-35 फीसद बच्चे ही उत्तीर्ण होने लायक थे। स्कूल की बदनामी के डर से शिक्षकों 70-80 फीसद विद्यार्थियों को जैसे
तैसे पास कर दिए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कमजोर शैक्षणिक बुनियाद वाले बच्चे दसवीं कक्षा में जाकर गणित, विज्ञान व अंग्रेजी जैसे विषयों में फेल कर गए। शिक्षाविद् राम सिंह का कहना है कि आरटीई में नो डिटेंशन पॉलिसी अपेक्षाओं पर कारगर साबित नहीं हुई। पॉलिसी बनाने से पहले उस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। भविष्य में उसका क्या असर पड़ेगा नीति निर्माता इसे लागू करने से पहले मंथन कर लें तो परीक्षाओं के रिजल्ट में यह स्थिति नहीं होगी।
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साभारजागरण समाचार 
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