Friday, May 27, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: बदलती दुनिया के लिए नई पीढ़ी को तैयार करें

एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: गुरुवार को मैं इस अखबार द्वारा आयोजित एक कॅरिअर सेमिनार के लिए आगरा रोड से जयपुर से अलवर की यात्रा कर रहा था। 60 किलोमीटर की दूरी पर दौसा था। रास्ते में मैंने सिर्फ चार पंक्चर ठीक करने वाले देखे। किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए एक भी मैकेनिक नहीं है। छह परिवारों को रास्ते में जहां-तहां फंसे देखा, क्योंकि उनकी कारें बंद पड़ गई थीं। आसपास कोई मैकेनिक भी नहीं था। इस वजह से सभी को जयपुर से इंतजाम करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। जब मैंने विस्तार से पूछताछ की तो पता चला कि यहां भी हर हाईवे जैसी ही कहानी है और पूरे राजस्थान में रोड नेटवर्क पर लोगों को मैकेनिकों की कमी का सामना करना पड़ता है। यही हाल अन्य राज्यों में भी हो सकता है। इस कमी के कई कारण हो सकते हैं। पहला तो यह कि अधिकांश कार मालिक सोचते हैं कि कार तो फैमेली (नियमित) मैकेनिक से ही ठीक करानी चाहिए। दूसरा यह कि पुरानी कार बेचना और किस्तों पर नई खरीदना आसान हो गया है। तीसरा यह कि रोड किनारे के मैकेनिक पूरी तरह वहां से गुजरने वाले वाहनों में आने वाली समस्याओं पर ही निर्भर रहते हैं। कारों में इस तरह की समस्याएं अब कम हो गई हैं, इसलिए इन लोगों ने जीविका के लिए अपना व्यवसाय बदल लिया है। इस डेमोग्राफिक परिवर्तन का सीधा असर यह हुआ है कि अब वही कार मालिक अपने वाहन अच्छे से चला सकते हैं, जिन्हें बेसिक मैकेनिक नॉलेज है। 
स्टोरी 2: हैदराबाद में माइक्रोसॉफ्ट में सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अंजलिका का 12 साल का बेटा कुणाल मित्रा बहुत अच्छा डिनर तैयार कर लेता है। कई बार मां के ऑफिस से घर लौटने से पहले ही डिनर तैयार कर वह अपनी मां को चौंका देता है। इसमें यह भी अहम बात है कि मां कभी उसे खाना बनाने के लिए नहीं कहतीं, लेकिन कुणाल में फूड के लिए पैशन है और वह परिवार के साथ मास्टर शेफ ऑस्ट्रेलिया या यूएस जैसे प्रोग्राम टीवी पर देखता है। यह सिर्फ कुणाल की ही बात नहीं है, मैं उसी की उम्र के और भी ऐसे बच्चों को जानता हूं, जो कुकिंग के अपने हुनर को तराश रहे हैं, क्योंकि उनके माता-पिता जानते हैं कि बच्चों को संभवत: वयस्क होने से पहले ही पढ़ाई पूरी करने के लिए घर छोड़कर कहीं जाना पड़े। दिलचस्प बात यह है कि इन दिनों कुकिंग ऐसी समर वेकेशन एक्टिविटी है, जिसे अधिक से अधिक संख्या में लोग करना पसंद कर रहे हैं। इन दिनों माता-पिता अधिक व्यावहारिक होते जा रहे हैं। डेमोग्राफिक चेंज के साथ माता-पिता को बिल्कुल अंदाजा नहीं होता कि बच्चा पढ़ाई या काम के लिए दुनिया के किस हिस्से में जाएगा, इसलिए बहुत-सी मदद के बीच पलना-बड़ा होना भविष्य के लिए जोखिमभरा हो सकता है। बच्चों को अपने लिए खुद ही तैयारी करनी होती है, इसलिए अंजलिका जैसे माता-पिता अपने बच्चों को जरूरी बुनियादी हुनर सिखा देना चाहते हैं, जो भविष्य में संकट के समय उनके काम आए। तथ्य तो यह भी है कि इस साल गर्मियों की छुट्‌टियों में पाक कला की क्लासेस स्कूल जाने वाले बच्चों से भरी हुई हैं। ये बच्चे सब्जी काटना, मसाले पहचानना, बर्तनों का उपयोग, चम्मचों के माप और सादे भोजन को सजाना सिख रहे हैं। ये ऐसा भोजन बनाना सीख रहे हैं, जो रोजाना कम समय में तैयार किया जा सके। 
स्टोरी 3: हाल ही में जारी सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम डेटा के अनुसार भारत में फर्टिलिटी रेट तेजी से गिर रही है। यह प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या की स्टडी है। भारत में यह औसत 2.3 बच्चे प्रति महिला है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह और कम 1.8 है, जो अमेरिका और ब्रिटेन से भी कम है। वहां यह औसत 2.1 है। दक्षिणी और पूर्वी राज्यों में तो यह और कम 1.7 और 1.6 ही है। चूंकि परिवारों में बच्चों की संख्या कम होती जा रही है, इसलिए परंपरागत बिज़नेस से लोग हटते जा रहे हैं। लोग नए और स्थायी व्यवसायों की ओर देख रहे हैं और इसलिए नई जनरेशन को काफी कुछ खुद ही करना होगा। 
फंडा यह है कि नई पीढ़ी को अच्छे जीवन के लिए तैयार कीजिए, जिसमें वह बहुत-सा काम खुद करें, क्योंकि आबादी का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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