Friday, May 27, 2016

गिरता शिक्षा स्तर: सरकारी नीतियों का ठीकरा शिक्षकों के सर पर क्यों

सुधीर तंवर, कैथल
अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार न होना गंभीर चिंता का विषय है। खराब परीक्षा परिणाम के लिए शिक्षा मंत्री से लेकर अध्यापकों तक की जवाबदेही तय होनी चाहिए। शिक्षा नीति पर फिर से विचार करते हुए पूरी व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है। राजकीय विद्यालयों में
शैक्षिक स्तर सुधारना है तो सर्वप्रथम इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की तर्ज पर राज्य में भी नियम बनाना होगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सरकारी अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों व जनप्रतिनिधियों तक के लिए बच्चों का राजकीय विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करना सुनिश्चित किया जाए। जब नीति नियंताओं के बच्चे इन स्कूलों में पढ़ेंगे तो निश्चित रूप से आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी और शैक्षणिक माहौल बनेगा। साथ ही वर्तमान सिस्टम को दुरुस्त करना होगा। आरटीई के प्रावधानों में सुधार करने की जरूरत है क्योंकि आठवीं कक्षा तक किसी भी बच्चे को असफल नहीं घोषित करने के फैसले से स्थिति और बिगड़ी है। रही-सही कसर ग्रेडिंग प्रणाली ने पूरी कर दी। इस व्यवस्था के कारण जहां प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को झटका लगा वहीं पढ़ाई में कमजोर व औसत दर्जे के विद्यार्थी निश्चिन्त हो गए क्योंकि उन्हें तो पता है कि वे अगली कक्षा में चले ही जाएंगे। इससे छात्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त होती चली गई जबकि यह भावना किसी भी देश की उन्नति के लिए बेहद जरूरी है। इसी तरह उम्र के मुताबिक कक्षा में प्रवेश के फैसले पर भी विचार किया जाए। एक बार फिर से पांचवीं और आठवीं में बोर्ड परीक्षा शुरू की जानी चाहिए ताकि विद्यार्थी पढ़ाई के लिए प्रेरित हों।
दूसरी सबसे बड़ी समस्या अध्यापकों को गैर शैक्षिक कार्यों में लगाना है। उन्हें ज्यादातर कभी बीएलओ ड्यूटी तो कभी कोई सर्वे या फिर किसी अन्य कार्य में व्यस्त रखा जाता है। इससे पढ़ाई का माहौल नहीं बन पाता। रेशनेलाइजेशन पॉलिसी में खामियों ने स्थिति को और गंभीर कर दिया है। कहीं पर जरूरत से अधिक स्टाफ है तो कहीं दो-दो अध्यापकों के सहारे पूरा स्कूल चल रहा है। बीच सत्र में अध्यापकों के तबादलों कोढ़ में खाज का काम करते हैं।
अगर हकीकत में शैक्षिक स्तर सुधारना है तो रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए। शिक्षक हो या प्रधानाध्यापक या फिर निदेशालय और मंत्री, हर स्तर पर जवाबदेही तय कर निश्चित रूप से हालात में सुधार लाया जा सकता है। 
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साभारजागरण समाचार 
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