Sunday, May 22, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: दयालुता और मानवता को नापा नहीं जा सकता

एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
गर्मियों के महीनों में हमारे सारे उपनगरों में ज्यादातर इमारतें कई तरह की गतिविधियों से गुलजार रहती हैं, टेनिस कोर्ट में खासतौर पर रौनक रहती है। कुछ सोसायटी तो ऐसे रिश्तेदारों के लिए प्रति माह अतिरिक्त शुल्क वसूलती हैं और सदस्य अनिच्छा से ही सही यह शुल्क चुकाते हैं क्योंकि बच्चों बुजुर्गों के अलग से पार्क, स्विमिंग पूल, टेनिस स्क्वैश कोर्ट उनके गांवों में अनोखी चीज हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस साल दस दिन पहले हमारी इमारत के रहवासी का रिश्तेदार महाराष्ट्र के रत्नागिरी का युवा साथी शिवाजी तोड़कर आया और सोसायटी के कुछ सेवानिवृत्त सदस्यों के साथ मिटिंग करने लगा। मुझे याद आया कि पिछले साल मैंने उसे बिल्डिंग में देखा था। जिस चीज ने मुझे उसकी ओर आकर्षित किया, वह थी इस युवा उम्र में खुद पर लतीफे गढ़ने की उसकी काबिलियत, जिससे पता लगता था कि वह जिंदादिल शख्स है। वह टेनिस का अच्छा खिलाड़ी भी था, जो मुझे बहुत पसंद है हालांकि मैं कोई टेनिस का महान खिलाड़ी नहीं हूं। वह कॉलोनी में छुटि्टयों का मजा लेने लगा, लेकिन जैसे-जैसे परीक्षा का रिजल्ट आने का वक्त नज़दीक आने लगा, उसकी प्रसन्नता धीरे-धीरे काफूर होने लगी और उसकी जगह रिजल्ट की चिंता ने ले ली। 
परीक्षा परिणाम हमारी उपलब्धि की दिशा में एक कदम होता है। यह हमारे आत्मविश्वास पर असर डालता है। हममें से अधिकतर इस बात की भी चिंता करते हैं कि हमारे रिजल्ट पर अन्य लोग, खासतौर पर परिवार नजदीकी सदस्य कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। अच्छा परिणाम मित्रों रिश्तेदारों में डींगें हाकने की चीज हो जाती है। रिजल्ट खराब हो तो लगता है कि अकादमिक कॅरिअर का अंत ही हो गया। 
मुझे अच्छी तरह वे शब्द याद हैं, जो उसने हमारे पड़ोसी से कहे थे,'अंकल यह अग्निपरीक्षा है। इनमें पास होना या फेल होना हम छात्रों को खुद के बारे में सकारात्मक या नकारात्मक अहसास कराता है। रिजल्ट आने के दो दिन पहले तो उसने कई गतिविधियों से खुद को अलग कर लिया। अकेला घूमने लगा, हमने लतीफे भी सुनाए तो उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं आती।' 
उसके इस रवैये ने हममें से कुछ लोगों को सतर्क कर दिया और हमने सामूहिक रूप से तय किया कि इस युवा और उसके जैसे अन्य लड़कों को अकेला नहीं छोड़ेंगे, जिनके परीक्षा परिणाम शीघ्र आने वाले हैं। हमने इन बच्चों को मॉल, सिनेमा हॉल या वॉटर पार्क ले जाने पर कुछ पैसा खर्च करने का फैसला किया, जो वाजिब खर्च था और हमने ऐसा किया भी। 
जैसी की आशंका थी रिजल्ट के दिन तोडकर की हालत बहुत खराब हो गई। उसे हायर सेकंडरी परीक्षा में 62 फीसदी अंक आए, जिससे उनके पालकों को बहुत दुख हुआ। सोसायटी के बुजुर्गों को उन्हें यह यकीन दिलाने में तीन दिन लग गए कि अंक उतने खराब नहीं है, जितने वे सोच रहे हैं। तोडकर आज पुणे के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में अपने चुने हुए विषय में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। बुजुर्गों ने उसे और उसके परिवार को हेनरी फोर्ड, बिल गेट्स, वाल्ट डिज़्नी, अल्बर्ट आइंस्टीन, थॉमस एडिसन अौर सचिन तेंडुलकर की कहानियां सुनाकर यकीन दिलाया। इन सबको अपने पढ़ाई के दिनों में ऐसी ही कठिन स्थिति से गुजरना पड़ा था। इसके बाद भी वे अपने दृढ़ संकल्प और अपनी काबिलियत पर भरोसे के बल पर सफलता हासिल की। 
इस साल तोडकर फिर से हमारे कॉलोनी में आया और कुछ सेवानिवृत्त बुजुर्गों से एक हफ्ते के लिए उसके गांव में चलने का अनुरोध करने लगा ताकि रिजल्ट आने के पहले या बाद में कोई विद्यार्थी अतिवादी कदम उठा ले। कल मैंने उन बुजुर्गों को खुशी से दमकते देखा। वे बता रहे थे कि वे अदल-बदलकर गांव जाते हैं और कैसे वे उस गांव में युवाओं की जिंदगी में फर्क पैदा कर रहे हैं। मैं उनके काम की गुणवत्ता के बारे में पूछने की हिम्मत नहीं कर सका, क्योंकि मुझे मालूम है कि मानवता को गणतीय गणनाअों से नहीं आका जा सकता। 
फंडा यह है कि मानवता और दयालुता को नापा नहीं जा सकता, क्योंकि यह बिज़नेस नहीं है। उन्हें तो बस महसूस करके साकार करना पड़ता है।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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