Saturday, May 21, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: गरिमा ही गरीब की सबसे बड़ी सम्पत्ति है, उसे सम्मान दीजिए

एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
केरल के कोजीकोड में जाकर किसी से भी पूछें 'ऑपरेशन सुलेमानी' के काउंटर कहां हैं? लोग आपको आसानी से रास्ता बता देंगे, क्योंकि वे शहर में हर जगह फैले हुए हैं। उस काउंटर पर जाएं और कहें, 'मुझे एक फूड कूपन चाहिए।' वहां मौजूद व्यक्ति आपको देखकर मुस्कराएगा और चुपचाप आपको एक कूपन दे देगा। वह कूपन
लेकर शहर के अधिकृत 125 रेस्तरां में से किसी में भी जाएं और कूपन देकर पेटभर कर भोजन कर लीजिए। आपके लिए संकोच की कोई स्थिति। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
इस पूरी प्रक्रिया में कोई आपसे सवाल नहीं पूछेगा। यह योजना जून 2015 में शुरू हुई थी और योजना का एक साल पूरा होने के पहले ही इसके तहत 9 हजार लोग खाना खा चुके थे। किसी को पता नहीं कि किसने वह भोजन किया है, क्योंकि इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखता और इसकी जरूरत है। किंतु कलेक्टर ऑफिस से सतर्क आंखों की एक जोड़ी यह सुनिश्चित करती हैं कि इस सुविधा का दुरुपयोग हो, चूंकि यह योजना ही कलेक्टर एन. प्रशांत के दिमाग की उपज है। उन्होंने इसे केरल होटल एंड रेस्तरां एसोसिएशन के साथ मिलकर लॉन्च किया था। पूरे शहर को इस 'ऑपरेशन सुलेमानी' पर गर्व है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति या संगठन की ओर से किया गया धर्मार्थ कार्य नहीं बल्कि लोगों द्वारा एक-दूसरे के लिए ली गई सामूहिक जिम्मेदारी है। यह सामूहिक भावना वाकई बहुत प्रभावशाली सिद्ध हुई है और योजना को अब तक कभी पैसे की कमी महसूस नहीं हुई। यही वजह है कि कलेक्टर किसी संगठन से दान-राशि लेने को तैयार नहीं होते, जबकि उनमें से कुछ तो 1 करोड़ रुपए तक की राशि देने की पेशकश कर चुके हैं। 
यह सब होता कैसे है? इन रेस्तरांओं पर बक्से रखे रहते हैं और दान सीधे उसमें डाला जा सकता है। यदि आप थोक में कूपन खरीदकर वितरीत करना चाहते हैं तो आप कलेक्टर ऑफिस से संपर्क कर सकते हैं। विवाह, जन्मदिन, वर्षगांठ जैसे अवसरों पर आप कोई योगदान देना चाहते हैं तो कलेक्टर ऑफिस या केएचआरए के सचिव से संपर्क कर सकते हैं। कूपन देते समय व्यक्ति का नाम-पता दर्ज कर लिया जाएगा ताकि कूपन का दुरुपयोग हो। प्रोजेक्ट के लिए कोई फंड कलेक्शन नहीं होता और पूरा प्रोजेक्ट व्यक्तिगत दान से ही चलता है। शहर को भरोसा है कि वहां इतने उदार दयालु लोग हैं कि प्रोजेक्ट चलता रहेगा। इसे राजनीतिक, सामाजिक, सिनेमा जैसे समाज के सारे क्षेत्रों से मदद मिल रही है। ऑपरेशन सुलेमानी पश्चिमी देशों में मौजूद कॉफी-ऑन-वाल और फूड-ऑन-वाल जैसी पहल पर आधारित है। वास्तव में यह मलयालम फिल्म 'उस्ताद होटल' से प्रेरित है, जिसमें मुख्य पात्र, जो कोजीकोड का होटल मालिक है, अपनी आय का एक हिस्सा भूखों को खाना खिलाने के लिए अलग रखता है। जाहिर है फिल्मों से भी सकारात्मक कार्यों की प्रेरणा मिल सकती है। 
प्रोजेक्ट का एकमात्र उद्‌देश्य दो वक्त की रोटी जुटा पाने वालों के लिए गरिमा के साथ भोजन उपलब्ध कराना हैै। यह प्रोजेक्ट दान देने वालों और भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर लोगों के बीच मध्यस्थ का काम करता है। फूड कूपन गांव के तालुका ऑफिस और रेलवे स्टेशन बस स्टैंड के पास के चुने हुए होटलों में दिए जाते हैं। यदि आप किसी होटल में परिवार के साथ खाना खा रहे हैं और आपको लगता है कि आप कम से कम एक व्यक्ति को खाना खिला सकते हैं, तो आप होटल में रखे बक्से में एक व्यक्ति के भोजन की कीमत बराबर रुपए उसमें डाल सकते हैं। यह एक अच्छी कल्पनाशीलता है, क्योंकि होटल में पैसा खर्च करने वाले परिवार के लिए यह मुश्किल नहीं है। प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि किसी भूखे पेट को आवश्यक भोजन मिल जाए। भरोसा कीजिए कि यह व्यवस्था अच्छी तरह चल रही है, क्योंकि इसे समाज के सभी वर्गों का सहयोग और समर्थन मिल रहा है। 
फंडा यह है कि यदिआपने किसी की मदद की है तो किसी को मत बताइए कि आपने किसकी मदद की, क्योंकि उस बेचारे गरीब व्यक्ति के पास एक ही संपत्ति है- उसकी गरिमा। कृपया हर कीमत पर इसका सम्मान कीजिए। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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