Sunday, June 25, 2017

छह देशों की 90% मीडिया पर सऊदी शाही परिवार का कब्जा, सिर्फ कतर के अलजजीरा पर चलती: इसलिए रखी बंद करने की शर्त

सऊदी अरब समेत छह गल्फ देशों ने कतर से संबंध बहाल करने के लिए 13 शर्तें रखी हैं। उनमें एक प्रमुख शर्त अल जजीरा मीडिया नेटवर्क को बंद करने की भी है। इसके पीछे गल्फ देशों का तर्क है कि यह चैनल आतंकी
संगठन अलकायदा और मुस्लिम ब्रदरहुड का भोंपू है। सऊदी अरब, मिस्र, बहरीन और जॉर्डन ने अपने-अपने यहां अल-जजीरा के ब्यूरो बंद कर दिए हैं। चैनल के पत्रकारों को जेल भी भेज चुके हैं। हालांकि अल जजीरा के शुरू होने की कहानी बेहद दिलचस्प है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 1990 के दशक सऊदी शाही परिवार ने अरबी भाषा के अखबारों को खरीदना शुरू किया। उन्होंने अपना रेडियो स्टेशन भी बनाया। चैनल के लिए सैटेलाइट भी लांच किया। इन अखबारों से अरब मुल्कों में काफी लोग प्रभावित होने लगे। खाड़ी के छह देशों की 90 फीसदी मीडिया पर सऊदी शाही परिवार का कब्जा है। ऐसे में कतर के अमीर शेख हमद बिन खलीफा अल-थानी को लगा कि उनकी जनता सऊदी मीडिया से इसी तरह प्रभावित होती रही तो उनकी अपने लोगों पर पकड़ कमजोर पड़ जाएगी। इसी डर से थानी ने 1996 में अल-जजीरा चैनल शुरू किया। अरबी में इसका अर्थ 'द्वीप' होता है। इसमें 885 करोड़ रुपए का निवेश किया। थानी ने लोगों के बीच इसे लोकप्रिय बनाने के लिए अखबार को अलग नजरिया देना शुरू किया। ताकि लोगों पर से सऊदी मीडिया का प्रभाव कम किया जा सके। यही वजह है कि चैनल ने जनता से जुड़े मुद्दे छूना शुरू किया। अल-जजीरा कई मौकों पर अरब मुल्कों की नीतियों और शाही परिवार की आलोचना करने से भी नहीं चूकता। पिछले काफी समय से यह मीडिया नेटवर्क यमन को भी काफी कवरेज दे रहा है, जहां सऊदी शिया हूती विद्रोहियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई कर रहा है। इसके अलावा चैनल खुलकर मिस्र के इस्लामिक संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन भी करता है। यह चैनल संगठन से जुड़े राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को हटाए जाने को तख्तापलट बताता रहा है। इस कार्रवाई के विरोध में कई सीरिज चला चुका है। यही वजह है कि उसका दर्शक वर्ग और लोकप्रयता बढ़ती चली गई और सऊदी अरब, मिस्र, बहरीन और जॉर्डन जैसे उसे दुश्मन भी मिले। 2008 के गाजा युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा अल-जजीरा के पत्रकार इसे कवर कर रहे थे। यह इकलौता टीवी स्टेशन था, जो युद्ध का लाइव कवरेज दिखा रहा था। अभी चैनल का 'शरिया और लाइफ' प्रोग्राम काफी लोकप्रिय है। इसे एक करोड़ लोग देखते हैं। इसमें दर्शक फोन कर इस्लाम से जुड़े सवाल करते हैं और मिस्र के एक इमाम उनके जवाब देते हैं। यह इमाम मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े हैं। दर्शक कई तरह के सवाल पूछते हैं, मसलन: रमजान के दौरान सिगरेट पी सकते हैं? क्या फिलिस्तीन की एक महिला को आत्मघाती हमला करते समय भी हिजाब पहनना चाहिए? अल-जजीरा से पहले अरब में इस तरह के किसी कार्यक्रम की कल्पना करना भी मुश्किल था। अल-जजीरा विरोधी विचारधारा का नजरिया भी अपने दर्शकों के सामने पेश करता था, जो कि अरब मुल्कों के हिसाब से बहुत दुर्लभ है, फिर चाहे वह इजरायल और ईरान का पक्ष हो, या इराक युद्ध के दौरान अमेरिकी अधिकारियों के भाषण और बयान सुनाना हो। इसके अलावा कतर को तेल और गैस के मामले में समृद्ध और राजनयिक मामलों में अहम स्थान हासिल करने में अलजजीरा का बड़ा योगदान है। हालांकि चैनल अपनी कवरेज को लेकर विवादों में भी रहा है। अमेरिका के 9/11 के आतंकी हमले के बाद चैनल ने आतंकी ओसामा बिन लादेन और सुलेमान अबु गैथ का इंटरव्यू प्रसारित किया था। इसमें दोनों आतंकियों ने हमले का बचाव किया था और हमले को सही ठहराया था। आतंकियों का महिमामंडन करने पर चैनल का विरोध हुआ था। 
अलजजीरा ने खुद को पश्चिमी मीडिया के सामने खड़ा किया। 2003 में अमेरिका द्वारा ईरान युद्ध का विरोध किया। इराक युद्ध के दौरान अमेरिकी सैन्य अधिकारियों के भाष और बयान सुनाए। आज भारत समेत 40 देशों में अलजजीरा देखा जाता है और 2.5 करोड़ घरों तक इसकी पहुंच है। दुनियाभर में 80 ब्यूरो हैं। अरबी और इंग्लिश भाषा में है। अलजजीरा में काम करने वाले अधिकतर लोग बीबीसी, ईएसपीएन, सीएनएन और सीएनबीसी में नौकरी कर चुके हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.