एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
परिचय 1: वह7 साल की थी और रक्त में हिमोग्लोबिन की कमी से उसकी त्वचा पर सफेद चट्टे पड़ गए थे। माटुंगा के रुइया कॉलेज रोड के सिग्नल पर रास्ते के बीच में खड़ी वह भीख मांग रही थी। माटुंगा उच्च मध्यवर्ग का क्षेत्र है, जहां महंगे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान हैं। चूंकि यह मुंबई के मध्य में हैं, पूरे शहर के धनी लोग यहां आते रहते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।यही वजह है कि
यहां सड़कों पर कारों की संख्या बहुत ज्यादा है और उसी तुलना में ट्रैफिक सिग्नल भी, जो भिखारियों के लिए कारों की बंद खिड़कियां खटखटाकर भीख मांगने का सबसे सही ठिकाना होता है। इस 7 वर्षीय बालिका को यह जगह उसकी मां ने दिखाई थी, क्योंकि वह बच्ची होने के साथ कमजोर दिखाई देती थी, जिससे कार मालिकों के मन में सहानुभूति पैदा हो सकती थी और ज्यादा पैसा कमाया जा सकता था। इस पैसे का उपयोग उसके पिता की रोज पीने की जरूरत और मां का आलस्य बढ़ाने में होता था।
परिचय 2: वर्ष 2009- महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के छोटे से गांव से वैभव कांबले जीविका कमाने सपनों की महानगरी मुंबई आए। उनमें पढ़ने का जुनून था और वे डॉ. भीमराव आंबेडकर के प्रशंसक अनुयायी थे। उनका पक्का विश्वास था कि सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी माध्यम है। यह बदलाव उन्होंने खुद में और अपने गांव में आस-पास होते देखा था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हालांकि, उन्हें यह समझ में नहीं आता था कि नियत समय पर कैसे वही भिखारी उसी सिग्नल पर आता है और वे ही कार मालिक बिना चूके एक-दो सिक्के उन्हें दे देते हैं। ये भिखारी 2 से लेकर 16 साल की उम्र के होते हैं। किंतु कांबले इनके लिए ऐसा कुछ करना चाहते थे, जो उन तक प्रभावी ढंग से पहुंचे। उन्हें अहसास हुआ कि यदि इन्हें शिक्षा दी जा सके तो पूरी पीढ़ी कमाने योग्य हो जाएगी और ये गरीबी के दुष्चक्र से मुक्त हो जाएंगे। कांबेल अभी होस्टल में हैं और लोनावला के अपने कॉलेज में वे सप्ताह में दो बार जाते हैं। वहां मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीई की पढ़ाई के अलावा वे यशवंतराव चव्हाण यूनिवर्सिटी के सुदूर शिक्षा कार्यक्रम के तहत राजनीति विज्ञान में बीए की पढ़ाई भी कर रहे हैं। चूंकि उनसे उस छोटी बच्ची की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी, उन्होंने चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 पर फोन किया, जहां से बच्ची को रहने का ठिकाना मिला। हालांकि, उनका काम वही खत्म नहीं हो गया। बच्ची के पास ऐसे कोई दस्तावेज नहीं थे कि उसे स्कूल में प्रवेश मिल जाए। उन्होंने कानूनी, वित्तीय अन्य सहायता के ब्योरो सहित उसकी पूरी कहानी फेस बुक पर टाइप कर दी और यह बहुत मूल्यवान साबित हुआ। पूरे शहर से वकीलों के फोन उन्हें आने लगे और अगले कुछ दिनों में लड़की को स्कूल में प्रवेश मिल गया।
परिचय 3: शुरुआतीसफलता के बाद कांबले जब सड़कों पर रहने वाले कुछ और बच्चों से बात कर रहे थे तो 14 साल की एक बच्ची उन तक रोती हुई आई और कहने लगी कि उसकी मां ने 2011 में घरेलू हिंसा की वजह से खुद को आग लगा ली थी और वह यह घटना बेबस होकर देखती रही। उसकी गवाही पर पिता को गिरफ्तार तो किया गया पर कुछ माह बाद वह जमानत पर रिहा हो गया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। चूंकि जेल से बाहर आने के बाद पिता उसे परेशान करने लगा था, इसलिए उसने अपनी कहानी कांबले को इस उम्मीद से सुनाई कि वे कुछ मदद करेंगे। वादे के मुताबिक एक हफ्ते में उसे उस नर्क से निकाल लिया गया और अब वह मुंबई के प्रतिष्ठित कॉलेज से बीए कर रही है और उसकी हरसत है कि वह आईपीएस अधिकारी बने। आमतौर पर अनाथालय लड़कियों को 18 वर्ष की उम्र तक रखते हैं, लेकिन उसके बाद वे वहां से चली जाती हैं। फिर ज्यादातर लड़कियां घरों या छोटी फैक्ट्रियों में काम करने लगती है और उनकी पढ़ाई वहीं छूट जाती है। यही वजह है कि काम्बले उन्हें कॉलेज में दाखिला दिलाने पर ध्यान दे रहे हैं और उन्हें होस्टल मुहैया करा रहे हैं, जहां वे स्टाइपेंड भी कमा सकती हैं।
फंडा यह है कि मानवअपने आसपास के परिवेश के कारण खास तरह से व्यवहार करता है। आप उनका परिवेश बदलिए और देखिए कि वे कैसे जीवन में बेहतर करके दिखाते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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