शिक्षा विभाग का सौतेला व्यवहार सामने आया है। अपने ही महकमे में शिक्षकों को पदोन्नति के मामले में विभाजित कर दिया गया है। नए नियम हजारों शिक्षकों को हजम नहीं हो रहे तो साथ ही बरसों बाद जगी पदोन्नति की आस भी धूमिल होने लगी है। नए नियम में बीएड की अनिवार्यता पदोन्नति में बाधा बनी है, जबकि लेक्चरार को पदोन्नति में बीएड की अनिवार्यता से मुक्त रखा गया है। यह दोहरे मापदंड हजम होने वाले
नहीं है। शिक्षा विभाग ने अप्रैल 2012 में नए सर्विस रूल लागू किए। करीब सात साल बाद विभाग शिक्षकों की पदोन्नति करने जा रहा है। इसे लेकर जिला स्तर से केस आमंत्रित कर लिए गए हैं। पदोन्नति की बात सामने आते ही शिक्षकों ने नई सर्विस रूल पर नजर दौड़ाई तो वह सकते में आ गए। नए नियम कहते हैं कि लेक्चरार को प्रिंसिपल पद पर पदोन्नति लेनी है तो उसे बीएड करनी होगी। लेकिन इस नियम 2012 से पहले लगे प्राध्यापकों को सर्विस रूल 2012 में बीएड से छूट दी गई है। यह छूट 2012 से पहले लगे हिंदी, संस्कृत, पंजाबी, कला, शारीरिक शिक्षा, संगीत, गृह विज्ञान व उर्दू के शिक्षकों को नहीं दी गई है। यह नियम ही शिक्षा विभाग के दोहरे चरित्र को सामने रखता है। एक ही विभाग के शिक्षक व प्राध्यापक को पदोन्नति देने के मामले में दोहरे मापदंड स्थापित होना सवालिया निशान खड़ा करता है। अचंभे की बात यह है कि 2012 में नए नियम बनने के बाद हजारों शिक्षकों की भर्ती की गई और उन्हें बीएड की अनिवार्यता से दूर रखा गया। यह शर्त लगा दी गई कि उन्हें तय समय सीमा 2018 तक बीएड करना जरूरी है।
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