मुसलमानों में प्रचलित एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत), निकाह हलाला और बहुविवाह को संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षण मिलेगा या नहीं? ये सवाल केंद्र सरकार ने तीन तलाक
मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने विचार के लिए रखे हैं। हालांकि, कोर्ट ने अभी तय नहीं किया है कि किन-किन कानूनी सवालों पर विचार किया जाएगा, लेकिन कोर्ट ने मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजे जाने का संकेत जरूर दिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह मामले पर कोर्ट ने शुरुआत में स्वयं संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की थी। बाद में कई प्रभावित महिलाओं ने भी याचिकाएं दाखिल कर इन प्रचलनों पर रोक लगाने की मांग कर दी। कोर्ट आजकल उन्हीं पर विचार कर रहा है। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने पक्षकारों से मिल बैठकर विचार के बिंदु तय करने को कहा था। वीरवार को वकील माधवी दीवान ने कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से विचार के लिए तय किए गए चार सवाल पेश किए। उन्होंने कहा कि विभिन्न पक्षकारों के विभिन्न बिन्दु हैं, लेकिन सरकार ने चार मुख्य प्रश्न तैयार किए हैं। इनमें व्यापक तौर पर सभी संभावित प्रश्न आ जाते हैं। केंद्र ने जो चार सवाल कोर्ट के विचारार्थ रखे हैं उनमें पर्सनल लॉ को संविधान के अनुच्छेद 13 में दी गई कानून की परिभाषा में माने जाने के साथ अंतरराष्ट्रीय संधियों में सरकार के दायित्व का मसला भी शामिल है। अनुच्छेद 13 कहता है कि जो कानून संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ होगा वह रद हो जाएगा। मामले की सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार के सवालों को देखकर कहा कि इसमें संवैधानिक प्रश्न उठाया गया है। सवाल महत्वपूर्ण हैं और सभी मुद्दों पर विचार किया जाएगा। कोर्ट ने बाकी मौजूदा पक्षकारों से भी अपनी तरफ से विचार के बिंदु व लिखित दलीलें देने को कहा, जो 15 पेज से ज्यादा की न हों। उनमें संक्षिप्त ब्योरा दिया गया हो। इन्हें अटॉर्नी जनरल को देना होगा। इनके साथ ही उन पूर्व फैसलों की सूची भी देनी होगी जिनका वे मामले में बहस के दौरान हवाला देना चाहते हैं। अटॉर्नी जनरल उन सबको संकलित कर कोर्ट में पेश करेंगे। मामले पर 30 मार्च को फिर विचार होगा। इस मामले में कोर्ट गर्मी की छुट्टियों में 11 मई से नियमित सुनवाई करेगा।
ये हैं चार सवाल:
- क्या तलाक ए बिद्दत (एक बार में तीन तलाक), निकाह हलाला और बहुविवाह को संविधान के अनुच्छेद 25 (1) (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) में संरक्षण प्राप्त है।
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार क्या मौलिक अधिकारों के आधीन है, विशेष तौर पर समानता और गरिमा से जीवन जीने के अधिकार के।
- क्या पर्सनल लॉ को संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जाएगा।
- क्या तलाक ए बिद्दत, निकाह हलाला और बहु विवाह उन अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौते के तहत सही हैं जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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