नगमा नासिर, 19 (जेके कॉलेज, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा)
उच्चतम न्यायालय ने गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू जैसे सर्च इंजन को भ्रूण लिंग जांच संबंधी सभी कंटेंट हटाने के निर्देश दिए हैं ताकि इससे संबंधित जानकारी लोगों तक पहुंच सके। सवाल है कि अपने ही लोगों की
संकीर्ण मानसिकता को कैसे बदला जाए? एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रति वर्ष एक लाख से भी ज्यादा बेटियां जन्म से पहले ही मार दी जाती हैं। देश का शिशु लिंगानुपात 1991 के 945 के मुकाबले 2011 में 919 ही हो गया था। यह उस देश की हालत है, जिसे अहिंसा एवं आध्यात्मिकता प्रेमी और नारी-गौरव-गरिमा पर गर्व करने वाला देश माना जाता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। विडंबना है कि लोगों को सुंदर और पढ़ी लिखी बहुएं चाहिए लेकिन, बेटी नहीं चाहिए। यह विरोधाभासी और संकीर्ण मानसिकता की निशानी है।
गौरतलब है कि 'लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994' के तहत प्रसव पूर्व लिंग जांच करने वालों के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन यह एक्ट पूर्णतया कारगर सिद्ध नहीं हो रहा है। एनसीआरबी की मानें तो 2016 तक भ्रूण हत्या के 2,296 मामले दर्ज किए गए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे कई गुना मामले दर्ज नहीं होते, इसलिए सजा के प्रावधानों को और कठोर बनाने की जरूरत है। इसके अलावा 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के समानांतर लड़कियों के लिए मुफ्त-उच्च शिक्षा तक का प्रावधान भारत सरकार को करना चाहिए, क्योंकि, देश में व्याप्त गरीबी भी इसका मुख्य कारण है, जिसमें बिटिया पर खर्च की बजाय बेटों से आय की उम्मीद संजोयी जाती है। सरकार द्वारा पूरे खर्च वहन करने से गरीब पिता की फिक्र खत्म हो जाएगी। रूढ़िवादी सोच बदलने के लिए धर्म गुरुओं और धार्मिक चैनलों का योगदान मील का पत्थर साबित हो सकता है। सभी धर्म समान रूप से इस घटिया मानसिकता के विरोधी हंै। लिहाजा इस धर्म प्रधान देश में धार्मिक गुरुओं द्वारा इस अपराध को धर्म के लिहाज से पाप बताने से भी इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके लिए युद्ध स्तर पर पहल किए जाने की जरूरत है। साथ ही सानिया मिर्जा और सायना नेहवाल जैसी बेटियों की बेमिसाल कहानी भी आमजन तक पहुंचाने की जरूरत है कि हमारी बिटिया बेटों से कम नहीं।
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साभार: भास्कर समाचार
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