2005 में धनतेरस के दिन राजधानी के सरोजनी नगर, पहाड़गंज और गोविंदपुरी में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के 11 साल बाद पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को एक दोषी को 10 साल कैद की सजा
सुनाई। अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में दो आरोपियों को बरी कर दिया। न्यायाधीश रितेश सिंह ने 140 पेज के आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष सभी आरोपियों पर दोष साबित करने में नाकाम रहा। तारिक अहमद डार आतंकी संगठनों से जुड़ा हुआ था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) की धारा 38 व 39 में उसे दोषी करार दिया गया है। इसके तहत अधिकतम सजा 10 साल कैद और जुर्माने का प्रावधान है और वह इतनी अवधि पहले ही जेल में काट चुका है। उसे अब इस मामले में छोड़ा जा सकता है। अभियोजन पक्ष की मानें तो तारिक ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के साथ सीरियल बम ब्लास्ट की साजिश रची थी।
तारिक पर मनी लां¨ड्रग का एक अन्य मामला लंबित है, जिसके चलते उसे अभी जेल में ही रहना पड़ेगा। वहीं मोहम्मद हुसैन फजली व मोहम्मद रफीक शाह कागजी कार्यवाही पूरी होते ही तिहाड़ जेल से बाहर आ जाएंगे।
इससे पूर्व मामले में फारुख अहमद बटलू व गुलाम अहमद खान को राजधानी में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए फंड जुटाने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। इसमें सजा की अधिकतम अवधि जेल में काटने के चलते दोनों को छोड़ दिया गया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, तारिक ने अबू उजेफा, अबू अल कामा, राशिद, शाजिद अली व जाहिद के साथ मिलकर भारत के खिलाफ युद्ध करने, दिल्ली में सीरियल बम ब्लास्ट करने की साजिश रची थी। तारिक को छोड़कर अन्य आरोपियों को दिल्ली पुलिस पकड़ नहीं पाई। पुलिस को आशंका है कि ये सभी गुलाम कश्मीर में छिपे हैं।
छलक पड़े आंसू: नई दिल्ली में वर्ष 2005 में हुए सीरियल ब्लास्ट में अपने बेटे व पुत्रवधु को खो चुकीं सलीना दास गुरुवार को पटियाला हाउस कोर्ट के बाहर फैसला आने के बाद अपने आंसू नहीं रोक सकीं।
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साभार: जागरण समाचार
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