एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: प्रत्येक वर्ष नई ट्रेनों को समायोजित करने के लिए जब रेलवे टाइम टेबल बदला जाता है, तो रेल अधिकारियों को नया विस्तृत टाइम टेबल बनाने में हफ्तों लग जाते थे। पिछले हफ्ते आईआईटी बॉम्बे ने सेंट्रल
रेलवे के साथ सहयोग कर एक ऐसा एल्गोरिदम लिखा है, जिससे रेलवे टाइम टेबल बनाने की प्रक्रिया बहुत सरल हो जाएगी और अत्यधिक फेरे लगाने वाली उपनगरीय ट्रेनों का टाइम टेबल भी पांच मिनट में बनाया जा सकेगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह सॉफ्टवेयर टाइम टेबल के अलावा कई अन्य प्रक्रियाओं को एक साथ लाएगा, जिन्हें रेल स्टाफ को लागू करना होता है। यह प्रक्रिया सिर्फ सारी रेल प्रणालियों की तुलना में एक कदम आगे है बल्कि रेलवे के सामने आने वाली कई कठिनाइयों को खत्म कर देती है जैसे ट्रेन बनाने के लिए डिब्बों की बदलती संख्या, प्लेटफॉर्म की उपलब्धता और ऐसे ही अभाव जिनसे रेलवे को रोज लड़ना होता है। यह सॉफ्टवेयर देश के अन्य रेलवे सेक्शन भी अपनाने वाले हैंै। इस प्रोजेक्ट को अप्रैल के पहले हफ्ते में फ्रांस में इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ रेलवे ऑपरेशन्स रिसर्च द्वारा आयोजित ग्लोबल सेमीनार में पेश किया जाएगा। यह संगठन अकादमिक और पेशेवर रेलवे शोध को प्रोत्साहित करना है और विज्ञान के कई क्षेत्रों को एकीकृत कर रेलवे ट्रैफिक मैनेजमेंट के नए मानदंडों के विकास में योगदान देता है। फिर कोई भी सदस्य इसका उपयोग कर सकता है।
स्टोरी 2: बदले परिदृश्य में खासतौर पर आईटी आउटसोर्सिंग को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के रुख को देखते हुए 65 फीसदी मध्यम से वरिष्ठ स्तर के टेक्नोलॉजीकर्मियों को अपना जॉब बनाए रखने में दिक्कत हो रही है तो इस यंत्रीकृत दुनिया में हथकरघा बुनकरों के अस्तित्व बचाए रखने के संघर्ष को समझा जा सकता है। इस हफ्ते तिरुचिरापल्ली में एक प्रोजेक्ट 'मुसिरी' शहर के 42 किलोमीटर क्षेत्र में फैले सारे गांवों के 5000 से ज्यादा बुनकरों की टिकाऊ आजीविका सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया है। आर्थिक आंकड़ों के मुताबिक हथकरघा क्षेत्र देश में खेती के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देता है, इसलिए यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया है।
डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन और आईटी सेवा देने वाली कंपनी एम्फेसिस के संयुक्त उपक्रम के तहत हथकरथा बुनकरों के मौजूदा आधारभूत ढांचे को रूपांतरित करने का लक्ष्य है, जिसे विभिन्न गांवों में स्थापित डिजिटल क्लस्टर के माध्यम से लागू किया जाएगा। इन केंद्रों ने फैशन मार्केट को संतुष्ट करने के लिए सामने आने वाले ट्रेंड के मुताबिक प्रोडक्ट डिजाइन टैक्सटाइल प्रोसेसिंग के लिए आवश्यक आईटी कौशल सिखाकर गांव के बुनकरों का सशक्तीकरण शुरू कर दिया है। 'मुसिरी' ने एक ई-कॉमर्स पोर्टल भी मुहैया कराया है ताकि बुनकर सीधे अपने उत्पाद बेच सकें।
डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन और आईटी सेवा देने वाली कंपनी एम्फेसिस के संयुक्त उपक्रम के तहत हथकरथा बुनकरों के मौजूदा आधारभूत ढांचे को रूपांतरित करने का लक्ष्य है, जिसे विभिन्न गांवों में स्थापित डिजिटल क्लस्टर के माध्यम से लागू किया जाएगा। इन केंद्रों ने फैशन मार्केट को संतुष्ट करने के लिए सामने आने वाले ट्रेंड के मुताबिक प्रोडक्ट डिजाइन टैक्सटाइल प्रोसेसिंग के लिए आवश्यक आईटी कौशल सिखाकर गांव के बुनकरों का सशक्तीकरण शुरू कर दिया है। 'मुसिरी' ने एक ई-कॉमर्स पोर्टल भी मुहैया कराया है ताकि बुनकर सीधे अपने उत्पाद बेच सकें।
स्टोरी 3: कॉलेज के छात्र अपनी पीढ़ी की बदलती मांग के मुताबिक कुछ नया करने के लिए जाने जाते हैं। वे मैराथन जैसे कई कार्यक्रम पैसा इकट्ठा करने के लिए करते हैं। किंतु एक समूह 'मत्तरम', तमिल में जिसका मतलब होता है बदलाव, असाधारण हुनर वाले लेकिन, आर्थिक रूप से कमजोर खिलाड़ियों की मदद के लिए कोयम्बटूर में मैराथन आयोिजत करता है ताकि ये खिलाड़ी अपनी पूरी क्षमता को जाहिर कर सकें। इसके अलावा ये लोग समूह के रूप में सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी लड़ते हैं, जिनके कारण युवाओं का ध्यान भटकता है। 2015 में स्थापित 'मत्तरम' ने अब तक दर्जनभर से ज्यादा आर्थिक रूप से कमजोर खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में मदद की है।
फंडा यह है कि अपनेप्रोजेक्ट को आकर्षण का केंद्र बनाना हो तो सामाजिक लक्ष्य हाथ में लेने चाहिए, जो समाज की चिंता के कारण हैं।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
फंडा यह है कि अपनेप्रोजेक्ट को आकर्षण का केंद्र बनाना हो तो सामाजिक लक्ष्य हाथ में लेने चाहिए, जो समाज की चिंता के कारण हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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