हरियाणा में जाट सहित 6 जातियों (जाट, रोड, बिश्नोई, त्यागी, जट सिख, मुल्ला जाट) को दिए गए आरक्षण से जुड़े दो मामलों पर मंगलवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। पहले मामले में प्रदेश में कुल आरक्षण 70% होने को चुनौती दी गई है। जींद के सफीदों निवासी एडवोकेट शक्ति सिंह की ओर से याचिका
दाखिल कर कहा गया कि आरक्षण की सीमा बढ़ जाने से सामान्य श्रेणी के लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ है। साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना भी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा में अब आरक्षण 70% हो गया है। इससे सामान्य श्रेणी के आवेदकों के लिए केवल 30% पद बचे हैं। यह उनके साथ अन्याय है। याची ने कहा कि राज्य सरकार ने एक समुदाय विशेष के दबाव में आकर नियमों को ताक पर रख जाट सहित अन्य जातियों को लाभ पहुंचाने के लिए कानून बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी के केस में स्पष्ट किया था कि नौकरियों में आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं हो सकता। इससे पहले केवल जाट आरक्षण को चुनौती दी गई थी] जबकि इस याचिका में पूरे एक्ट को चुनौती दी गई है। एक्ट के चलते ही आरक्षण 70% हो गया है। इस पर जस्टिस एसएस सारों जस्टिस लीजा गिल की बेंच ने याचिका पर राज्य सरकार सहित सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
उधर, दूसरे मामले में हाईकोर्ट की इसी बेंच में जाट सहित 6 जातियों के आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान याची की दलीलों पर पक्ष रखते हुए सरकार की ओर से कहा गया कि विधायिका की मंजूरी से आरक्षण दिया जा सकता है। इसके लिए आंकड़े जरूरी नहीं है। विधायिका ने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए एक्ट बनाया। इस एक्ट में एक कमीशन भी रखा गया, जिसे सिविल कोर्ट की पावर दी गई है। याची को शिकायत है तो उसके पास कमीशन में जाने का विकल्प है। इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसे खारिज किया जाए। गौरतलब है कि शुक्रवार को याची पक्ष की तरफ से जिरह जारी रखते हुए कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट मान चुका है कि जाट पिछड़े नहीं है। सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।
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साभार: भास्कर समाचार
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