Thursday, February 23, 2017

नजरिया: महत्वपूूर्ण यह है कि अगली पीढ़ी को हम क्या दे जाएंगे

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
स्टोरी 1: डीयेल्लामांदा रेड्डी आंध्रप्रदेश के प्रकासम जिले के संथानुथालापाडु गांव के बड़े किसान हैं। अकेले वे इस इलाके के अमीर किसान नहीं है, यहां अधिकतर किसान उनकी तरह अमीर हैं, क्योंकि सभी तंबाकू उगाते
हैं। उपज लेने के लिए फर्टिलाइजर का भरपूर उपयोग होता है। इन किसानों की इस उपज ने सिर्फ कैंसर के कारण कई लोगों की जान ली, बल्कि केमिकल के ज्यादा उपयोग से ईको सिस्टम तथा खाद्य शृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा कई उपयोगी कीट, चूहे, मेंढक और सांप भी इससे मारे गए। एक शाम नुक्कड़ की मुलाकात में सभी किसानों को गहराई से दो बातें महसूस हुई - तो हम उन ग्राहकों के साथ अच्छा कर रहे हैं जो हमारा प्रोडक्ट खरीद रहे हैं और ही धरती मां के साथ अच्छा कर रहे हैं, जिसके दिए संसाधनों से हम अच्छा जीवन जी रहे हैं। फिर किसानों के एक छोटे समूह ने रातों-रात एक बड़ा फैसला कर लिया, जिसे अधिकतर लोग पागलपन ही कहेंगे। इन किसानों ने तंबाकू की खेती बंद कर ऑर्गेनिक फल और सब्जियों की उपज लेने का फैसला किया। यह कोई आसान निर्णय नहीं था। आने वाले तीन साल उनके लिए बहुत बुरे थे। इस दौरान उन्हें लगातार लोगों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ाे। बार-बार केमिकल फर्टिलाइजर के उपयोग से भूमि भी खराब हो गई थी और इसे ठीक करने में तीन साल का समय लगा। उन्होंने भूमि विशेषज्ञों के साथ इसके लिए रणनीति बनाई और गाय का गोबर, गौमूत्र और नीम और अन्य पेड़ों के पत्तों से बने बायो पेस्टीसाइड का उपयोग किया। इस तरह जमीन के भीतर तक समाया जहर का केमिकल दूर किया गया। उन्होंने ऑर्गेनिक सब्जियां और फलों की उपज लेना शुरू किया। इसमें पत्ता गोभी, फूल गोभी, मिर्च, बैंगन और टमाटर शामिल थे। 
आज जब स्वास्थ के प्रति जागरूक लोग उनके पास ऑर्गेनिक फूड लेने आते हैं तो इन किसानों को संतोष मिलता है। यह तंबाकू से होने वाली कमाई से कई गुना ज्यादा थी। इस दौरान किसी किसान ने इस सकारात्मक बिजनेस से कदम पीछे नहीं खींचे, इसके बावजूद कि ऑर्गेनिक उत्पाद बेचने की राह अभी इतनी आसान नहीं है और कई तरह की चुनौतियां हैं। सबसे ज्यादा संतोष की बात उनके लिए यह है कि अब वे कैंसर की वजह तंबाकू की उपज नहीं ले रहे हैं। 
स्टोरी 2: तमिलनाडु में जल्लीकट्‌टू को लेकर मचे हो-हल्ले से राज्य और केंद्र में तूफान मचने के पहले ही मीडिया आंत्रप्रेन्योर एमआर हरी चेरूवेली गाय पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाना शुरू कर चुके थे। यह केरल की देशी ब्रीड है। वे इस बात से चकित थे कि गाय क्या कर सकती है और फिर उन्होंने तुरंत कुछ देशी पशु खरीदने का फैसला किया। वेकूर जैसी देशी गाय को पालना मुश्किल काम है। इस गाय की कीमत 1.5 लाख रुपए से ऊपर होती है। सूपर काउ की तुलना में देशी ब्रीड को पालना आसान है। उसे चाहिए होते हैं- हरी घास, ताजा पानी और सूरज की रोशनी। यह पशु बहुत मजबूत होता है और हमारे हर तरह के वातावरण के साथ सहज रहता है और यह गाय कम बीमार पड़ती है। हालांकि, जहां तक दूध की बात है यह कमाऊ गाय नहीं है। रोजाना सिर्फ करीब दो लीटर दूध ही इससे मिलता है, है, जबकि विदेशी गाय से बीस लीटर तक दूध मिल जाता है। लेकिन देशी गाय जीरो बजट खेती में उपयोगी है। पथरीली और बंजर भूमि को प्राकृतिक जंगल में बदलना हरी का पैशन है। इसके लिए उन्हें चाहिए थी देशी गाय, बकरी, मुर्गी और अन्य पशु। उनके लिए ये पशु ऑर्गेनिक प्रोसेसिंग की छोटी यूनिट्स हैं। झाड़ियां, पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां जो ये पशु खाते हैं उनके पोषक तत्व फिर धरती तक पहुंचते हैं। 
फंडा यह है कि परिपक्व आबादी यह नहीं देखती कि उसके पास क्या है, बल्कि यह देखती है कि वह अगली पीढ़ी को क्या दे सकती हैं। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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