साभार: जागरण समाचार
चुनावी घमासान में एक-एक वोटर पर निगाह जमाए सियासी दलों ने अब कर्मचारियों पर डोरे डालने शुरू किए हैं। प्रदेश में कच्चे-पक्के करीब छह लाख कर्मचारी हैं जिनसे सीधे 30 लाख वोट जुड़े हैं। सत्तारूढ़ भाजपा जहां
पिछले साढ़े चार साल में कर्मचारियों को दी ‘सौगातों’ से इस तबके को साधने की कोशिश में है, वहीं कांग्रेस-इनेलो के साथ ही जजपा-आप गठबंधन ने कर्मचारियों की नाराजगी को भुनाने की रणनीति बनाई है।
हालांकि कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़कर अधिकतर दलों के चुनावी घोषणापत्र में कर्मचारियों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली है। चूक पकड़ में आई तो बड़े वोट बैंक के लिए अधिकतर दलों ने कर्मचारी यूनियनों के प्रतिनिधियों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। प्रदेश के सरकारी विभागों, बोर्ड-निगमों, विश्वविद्यालयों, नगर निगमों, पालिकाओं व परिषदों में ढाई लाख से अधिक नियमित कर्मचारी हैं, जबकि अनुबंधित कर्मियों की संख्या भी इतनी ही है। इसके अलावा करीब एक लाख आशा, आंगनबाड़ी व मिड डे मील योजना के तहत लगे वर्कर हैं।
पिछले साल छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में सीटें ऐसी थी जिन पर मामूली अंतर से हुई हार-जीत में कर्मचारियों ने निर्णायक भूमिका निभाई। यही वजह है कि लोकसभा के चुनावी रण में कर्मचारियों को अपने पाले में लाने के लिए सभी दल पर्दे के पीछे पार्टी के लिए काम कर रहे कर्मियों का सहारा लेकर उनसे जुड़े परिवारों को लुभाने में लगे हैं।
सभी सरकारों में चले कर्मचारी आंदोलन: हरियाणा में चाहे किसी भी दल की सरकार रही, विभिन्न मुद्दों पर कर्मचारी असंतुष्ट ही रहे। कई मौके आए जब कर्मचारी संगठनों ने आंदोलन के जरिये विभिन्न मांगों को पूरा कराया, लेकिन ज्यादातर आज भी अधूरी हैं। पंजाब के समान वेतनमान व पेंशन, ठेका प्रथा की समाप्ति, 15 हजार रुपये न्यूनतम वेतन, गेस्ट टीचरों, सफाई कर्मियों सहित सभी कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने, शिशु शिक्षा भत्तों में दोगुनी बढ़ोतरी और छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर नहीं किए जाने से कर्मचारी खफा हैं। बढ़े मकान किराया भत्ते की अदायगी, पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली, समान काम के लिए समान वेतन का मुद्दा भी जब-तब उठता रहा है।
- कई दलों ने प्रदेश के सबसे बड़े कर्मचारी संगठन से संपर्क कर समर्थन मांगा है। सर्व कर्मचारी संघ ने साफ किया है कि पहले सियासी दल कर्मचारियों की मांगों पर अपना स्टैंड स्पष्ट करें। कर्मचारियों पर आचरण सेवा नियम लागू होने के कारण वह किसी दल को समर्थन देने या विरोध करने का सार्वजनिक तौर पर निर्णय नहीं ले सकते। इसलिए सर्व कर्मचारी संघ घोषित रूप से किसी का समर्थन नहीं कर सकता। सभी कर्मचारी व्यक्तिगत तौर पर प्रत्याशियों के समर्थन या खिलाफत का निर्णय लेंगे। चुनाव ड्यूटी में लगे सभी कर्मचारियों को निष्पक्ष होकर काम करते हुए खुद का वोट जरूर डालना चाहिए। - सुभाष लांबा, महासचिव, सर्व कर्मचारी संघ।