
मां पूरी उम्र बच्चे के साथ चलती है। बच्चों पर कोई परेशानी आए इसलिए हर बोझ को सहती है। ऐसा ही एक उदाहरण गांव भाड़ावास मे देखने को मिला। यहां रहने वाली 52 साल की बनारसी देवी 35 सालों से पति
के साथ कंधे से कंधा मिलकार मजदूरी कर रही हैं। यह मजदूरी उन्होंने अपने तीन बेटों की पढ़ाई के लिए की। केवल पति की मेहनत से बच्चों शिक्षा नहीं मिल पाती, इसलिए खुद फावड़ा उठाकर शौचालयों के गड्ढों की खुदाई में लग गई। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। आज बड़ा बेटा नेकीराम डॉक्टर बन गया है, दूसरा प्रीतम रेलवे में कांस्टेबल, जबकि तीसरा अरुण अभी बीए की पढ़ाई कर रहा है। पर बनारसी देवी की मेहनत अभी जारी है। उनका कहना है कि बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज मैंने लिया था, उन पर बोझ नहीं होने दूंगी, जब तक पूरा कर्ज उतार नहीं देती मेहनत करती रहूंगी। अगस्त 2016 में बेटे की एमबीबीएस पूरी हो गई है। अब वह रोहतक में प्रैक्टिस करता है। आगेकी कहानी डॉक्टर बेटे की जुबानी... हम गांव की अंबेडकर कालोनी में एक छोटे से कमरे में रहते हैं। पिता रामेश्वर की जब शादी हुई तो वह मजदूरी करते थे। जैसे-तैसे परिवार चल रहा था। घर में हम तीन भाई थे। पिता की कमाई से घर ठीक से नहीं चल पाता था। दो वक्त का खाना ही जैसे-तैसे मिल पाता था। पिता शौचालय का गड्ढा खोदने का काम करते थे। घर की जरूरतों को देखते हुए मां भी पिता के साथ काम पर जाने लगी। लेकिन मां ने तय किया कि वह अपनी मेहनत के पैसे हमारी पढ़ाई पर ही खर्च करेगी। उसने हम तीनों भाइयों का सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया। जब मैं 10 वीं में गया तो मां की रसौली का ऑप्रशेन होना था। सरकारी अस्पताल लेकर गए तो डॉक्टरों ने मना कर दिया। हमारी सिफारिश नहीं थी। किसी तरह कर्ज लेकर प्राइवेट में ऑप्रेशन कराया। उसी समय तय कर लिया था कि डॉक्टर बनना है। इसलिए 11 वीं में मेडिकल में दाखिला लिया। मां ने शिक्षा का कर्ज लेकर हमें डॉक्टर बनाने की ठानी। 2010 में मेरा चयन एमबीबीएस के लिए चयन हो गया। रोहतक पीजीआई में मुझे प्रवेश मिल गया। अब शौचालय का गड्ढा खोदने के काम से जो लोग हमारे परिवार से दूरी बनाते थे, वह भी बधाई देने के लिए आने लगे। दूसरी खुशी हमारे परिवार में अगस्त 2014 में आई जब छोटे भाई प्रीतम को रेलवे में कांस्टेबल की नौकरी मिल गई। अगस्त 2016 में मेरी भी एमबीबीएस पूरी हो गई। अब एमएस करना बाकी है। अभी मैं प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहा हूं। मां पिता और छोटे भाई अरुण के साथ उसी छोट से कमरे में रहती है। हम उसे काम करने मना करते हैं लकिन वह नहीं मानती। वह कहती है कि बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज मैंने लिया था, जब तक पूरा अदा नहीं हो जाता मैं मजदूरी करती रहूंगी। अब मेरा रिश्ता भी एक महिला डॉक्टर से हो गया है। लेकिन पहले कर्जा उतारेंगे, फिर घर बनाएंगे। मां यह काम छोड़ देगी उसके बाद शादी होगी।
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साभार: भास्कर समाचार
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