Saturday, May 6, 2017

तिहाड़ जेल में जल्लाद नहीं, निर्भया के दोषियों को कौन देगा फांसी की सजा?

सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप केस के चारों दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने दोषी अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश को सजा सुनाते कहा कि निर्भया कांड सदमे की सुनामी है। जिस बर्बरता के साथ अपराध हुआ, उसे माफ नहीं किया जा सकता।" इस फैसले का सभी ने स्वागत किया है। इस सजा के बाद तिहाड़ के अफसरों के सामने एक सवाल यह है कि इस फैसले को अमल में कैसे लाया जाएगा, क्योंकि दिल्ली की जेलों में एक भी जल्लाद नहीं है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बता दें कि 16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में 6 आरोपियों ने चलती बस में निर्भया के साथ गैंगरेप किया था। 
अफजल गुरु को फांसी देने महाराष्ट्र से आया था जल्लाद: इससे पहले 2013 में जब संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दी गई थी, तब भी दिल्ली की जेलों में कोई जल्लाद नहीं था। उस वक्त महाराष्ट्र से जल्लाद को बुलाया गया था। जानकारों का कहना है कि दिल्ली की तुलना में महाराष्ट्र में जल्लादों की तादाद ज्यादा है।
फांसी से पहले ऐसे होती है तैयारी: 
  • पुलिस के सीनियर अफसरों के मुताबिक, जल्लाद को फांसी देने से पहले काफी प्रैक्टिस करनी पड़ती है। जैसे फांसी के तख्ते को ठीक करना, फांसी की रस्सी जांचना। फंदा बनाने की प्रैक्टिस करना, क्योंकि कोई भी जल्लाद ऐसे ही जाकर फांसी नहीं दे सकता। अगर अपराधी का वजन 75 किलो है, तो इसी वजन की रेत की बोरी को लटकाकर प्रैक्टिस करनी पड़ती है।
  • दरअसल, किसी की जान लेने का मानसिक और मनोवैज्ञानिक दबाव जल्लाद के अलावा जेल के दूसरे स्टाफ पर भी होता है। जेल एडमिनिस्ट्रेशन को लीवर से लेकर रस्सी को लटकाने वाली फिरकी की मरम्मत करवानी पड़ती है, जिसका इस्तेमाल फांसी में होता है। फांसी के वक्त इन सभी का ठीक से काम करना बेहद जरूरी है।
फांसी की सजा के वक्त इनका रहना जरूरी:
  • फांसी देते समय मौके पर जेल सुपरिंटेंडेंट, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट और जल्लाद मौजूद रहते हैं। इनके बिना फांसी नहीं दी जा सकती।
  • फांसी के दस मिनट बाद डॉक्टर का पैनल फांसी के फंदे में ही चेकअप करके बताता है कि जिस शख्स को फांसी दी गई है, उसकी मौत हुई है या नहीं। जब मौत कन्फर्म हो जाती है, तभी शख्स को फंदे से नीचे उतारा जाता है।
जल्लाद पवन के परदादा ने भगत सिंह को भी फांसी दी थी: जल्लाद पवन की फैमिली कई पीढ़ियों से इस काम से जुड़ी है। पवन के परदादा से लेकर पोते तक ने इस पेशे को अब तक कायम रखा है। रंगा-बिल्ला को फांसी पवन के दादा कल्लू जल्लाद ने ही दी थी। तब कल्लू जल्लाद को मेरठ से दिल्ली की सेंट्रल जेल बुलाया गया था। इंदिरा गांधी के हत्यारों को भी कल्लू सिंह ने ही फांसी का फंदा पहनाया था। पवन के परदादा ने अंग्रेजी हुकूमत में सरदार भगत सिंह को भी फांसी पर लटकाया था, जिसकी टीस अब तक उनके परिवार को है।
पवन के पिता ने भी दी थी 12 अपराधियों को फांसी: पवन के पिता मम्मू सिंह जल्लाद ने अपने जीवन में 12 अपराधियों को देश की दूसरी जेलों में जाकर फांसी दी थी। पवन का दावा है कि दादा की तरह उसके पिता मम्मू सिंह का भी फांसी का फंदा तैयार करने में नाम था। उसने फांसी का फंदा बनाना और प्लैटफॉर्म तैयार करना अपने दादा कल्लू सिंह से सीखा था। उनको ही पवन अपना गुरु मानते हैं।
खानदानी पेशे को नहीं चाहता छोड़ना: पवन ने अपने खानदानी पेशे को स्वेच्छा से अपनाया है। पवन बचपन से ही अपने दादा के साथ जेल में आता-जाता था। पवन को यह काम उसके दादा ने सिखाया था। दादा ने उसे बताया था कि कैसे फांसी देने के लिए फंदा बनाया जाता है।
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साभार: भास्कर समाचार 
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