Monday, May 1, 2017

फोकस से तब भी सफलता तय होती थी और अब भी इसी से तय होती है

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
बीते दिनों की कहानी: श्रीगंगानगर जिले की रायसिंहनगर तहसील में सरहद का एक गांव है भादुवांवाला। भादू जाटों का एक गोत्र होता है और यह गांव उन्हीं का बसाया हुआ है। गांव में आम तौर पर बच्चे पढ़ते नहीं थे और
फेल हो जाते थे। गांव में वातावरण ही ऐसा होता है कि बच्चे अपना वक्त खेतों और पेड़ों के आसपास गुजार देते हैं। घर में बैठकर पढ़ना उनके स्वभाव में ही नहीं पाता इस गांव के एक चौधरी थे हरिराम भाद जो सुधारवादी किस्म के इनसान थे और चाहते थे कि उनके बच्चे बहुत कामयाब हों और पढ़ें। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसके लिए उन्होंने बहुत ही नायाब तरकीब खोज निकाली। हर साल जैसे ही परीक्षा का समय आता तो वे दो महीने पहले ही नाई को बुलवाते और सभी पांच बच्चों का सिर रुंडमुंड घुटवा देते। घर में काफी विरोध होता, क्योंकि धार्मिक रूप से इसे अच्छा नहीं माना जाता लेकिन, वे इस फॉर्मूले को हर साल आजमाते। इससे होता यह कि बच्चे घर से बाहर नहीं निकलते और घर में बैठकर पढ़ते। उन दिनों टेलीविजन आदि जैसे मनोरंजन के इलेक्ट्रॉनिक साधन तो थे नहीं। मोबाइल फोन की तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। गंजा सिर लिए लड़के अगर घर से बाहर जाते तो दोस्त उनके सिर में उंगली को उल्टा करके ज़ोर से मारते। इसे गंगानगर की भाषा में ठोला मारना कहते हैं। यह शरारत इन बच्चों को बहुत महंगी पड़ती। इसका सामना करना आसान नहीं था। 
समय बीता। बच्चों ने बेहतरीन अंकों से परीक्षाएं पास कीं। उनके सबसे बड़े पुत्र सुलतानाराम कृभको में बहुत ऊंचे पद पर पहुंचे। दूसरे नंबर के जगदीश एडिशनल डिविजनल कमिश्नर बने। तीसरे प्रो एमएल भादू बीकानेर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे, चौथे ओपी भादू कृभको में रहे और पांचवें पुत्र राजेंद्र यूनियन बैंक के मैनेजर बने। ये पद आजकल लोगों को ज्यादा बड़े पद शायद लगें, लेकिन उस वक्त में जब पूरे जिले में बमुश्किल दो-चार लोगों को नौकरी मिलती थी या किसी परिवार का एक ही बच्चा पढ़ पाता था, वहां एक ही किसान परिवार के पांच बच्चों का बेहतरीन कामयाब होना वाकई अचरज भरा रहा। उदयपुर दैनिक भास्कर के संपादक और मेेरे सहयोगी तथा उसी जगह के मूल निवासी त्रिभुवन ने कहा, 'ऐसा उन्होंने अपने बच्चों का ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित करने के लिए किया।' 

आधुनिक कहानी: शनिवार को उदयपुर से लौटने के बाद मैंने अपने टैक्सी ड्राइवर को बाएं हाथ से कार का दरवाजा खोलते देखा! वरना वह तो आमतौर पर कार का दरवाजा खोलने के लिए दाएं हाथ का ही इस्तेमाल करता है। मैंने उससे इसका कारण पूछा तो उसने अपनी दाई कोहनी दिखाई, जो बुरी तरह जख्मी थी। इसकी पहली वाली ट्रिप में जब वह कार का दरवाजा खोल रहा था तो पीछे से आए वाहन ने उसकी कोहनी और कार के दरवाजे को टक्कर मार दी। दरवाजा तो ठीक कर लिया गया लेकिन, कोहनी ठीक होने में वक्त लग रहा था। जाहिर है कार का नुकसान तो हुआ लेकिन, ड्राइवर को कोहनी की चोट का दर्द भी सहना पड़ रहा था। 
मोटे अनुमान के मुताबिक दस में से एक सड़क दुर्घटना कार का दरवाजा खोलते हुए होती है, क्योंकि कार में सवार कई लोग अपनी तरफ का कार का दरवाजा खोलते समय आसपास का जायजा नहीं लेते। कई देशों के ड्राइविंग नियमों में यह अनिवार्य है कि दरवाजा खोलने के पहले यह देख लिया जाए कि पीछे से कोई तो नहीं रहा है। कुछ देशों में तो ड्राइविंग लाइसेंस जारी करते समय यदि आप उस कार का दरवाजा खोलते हुए दूर के हाथ का प्रयोग नहीं करते, जिस पर आपका टेस्ट लिया जा रहा है तो वे आपको लाइसेंस नहीं देते या टेस्ट में फेल कर देते हैं। इस तकनीक को 'डच रीच' कहते हैं। 
'डच रीच' सुरक्षा की आदत है, जिसे नीदरलैंड्स के ड्राइविंग स्कूलों में खासतौर पर सिखाते हैं। इसीलिए वहां के नाम पर इसे डच रीच कहते हैं। इस विधि में बताया जाता है कि कार के डोर हैंडल को आपको हमेशा दूर वाले हाथ से पकड़ना चाहिए। मसलन, यदि आप ड्राइवर सीट पर बैठे हैं (याद रहे कि भारत में हम दाई तरफ से कार चलाते हैं) और बाहर आना चाहते हैं तो डोर हैंडल को धक्का देने के लिए बाएं हाथ का प्रयोग करें। इस तकनीक का इस्तेमाल करने से अपनेआप यह निश्चित हो जाएगा कि आपका सिर दरवाजे की तरह मुड़ जाए और आपकी आंखें अपने आप पीछे की ओर देखने लगेंगी। इस तरह पीछे से यद कोई वाहन, साइकिल सवार, दोपहिया चालक अथवा पैदल चलने वाला भी हो तो आप उसे देख लेंगे। यानी आदतन ही वह दरवाजा खोलते वक्त पीछे का जायजा ले लेगा। 
फंडा यह है कि किसी भी क्षेत्र या काम में चाहे पढ़ाई हो अथवा दुर्घटना-मुक्त जीवन फोकस ही मुख्य कुंजी है। अगर फोकस सही हो जिंदगी में कामयाबी मिलना कोई मुश्किल बात नहीं है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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