मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
इसके पीछे बड़ा नज़रिया यह है कि हर कोई जिसके पास 200 स्क्वैयर फीट से अधिक का प्लॉट है उसे ओजीएफ का हिस्सा होना चाहिए। साथ ही अन्य फ्लैट के मालिकों की मदद भी बालकनी में छोटा गार्डन बनाने में करनी चाहिए। स्कूलों में इस अच्छी आदत को सिखाना इसका रूट है। स्कूल किसी मेंबर के यहां बच्चों को दो घंटे के टूर पर जू पिकनिक की तरह गार्डन दिखाने ले जाएंगे। इससे बच्चों में अपने घर में गार्डन लगाने के प्रति दिलचस्पी पैदा होगी। दो साल पहले तक गुजरात की राधिका कोठारी अपने किचन गार्डन के पौधों के प्रति इतनी पजेसिव थीं कि कुछ भी साझा नहीं करती थीं। लेकिन जब से वे ग्रुप की सदस्य बनीं हैं उनका रवैया बदल गया है। उन्होंने बीज और पौधे लोगों से साझा करना शुरू कर दिए हैं, क्योंकि कई बार लोग इंसुलिन प्लांट लेने आते हैं जो उन परिवारों के लिए जरूरी होता है, जिनमें डाइबीटिज का कोई मरीज हो। वे एक अन्य ग्रुप ऑर्गेनिक गार्डन टेरेस (ओजीटी) की सदस्य हैं, जो बेंगलुरू के डॉ. विश्वनाथ कदूर ने स्थापित किया है। इसके बारे में इस कॉलम में नवंबर 2014 में जिक्र किया गया था। ओजीटी इसी तरह की गतिविधियां गार्डन सिटी में अपने 30,000 सदस्यों के साथ करता है। इस तरह की कम्यूनिटी के लिए शेयरिंग खास फीचर होता है।
क्या आप जानते हैं कि मोटे अनुमान के अनुसार आपके और मेरे जैसे आम भारतीय रोजमर्रा में जब भी 200 ग्राम सब्जी अपनी प्लेट में लेते हैं तो उसमें करीब 40 से ज्यादा खतरनाक रसायन या पेस्टिसाइड होते हैं? जब
हम पास के नियमित बाजार या सब्जीवाले से सब्जी खरीदते हैं तो ऐसा ही होता है। क्या आप यह जानना चाहते हैं कि ऐसी स्थिति में हम क्या कर सकते हैं? तो पढ़िए कि कैसे दो अलग समूहों से ताल्लुक रखने वाले करीब 50,000 लोगों ने इस अदृश्य जहरीले हमले का हल निकाला है! अगर किसी दिन आप दो साल पुराने ऑर्गेनिक गार्डन फाउंडेशन (ओजीएफ) की कोर कमेटी के सदस्य अंजू अग्रवाल को मिल रहे वॉट्सएप मैसेज देखेंगे तो लगेगा कि उनके फोन पर स्पैम मैसेज रहे हैं। लेकिन, वे इन्हें लेकर गंभीर रहती हैं और धैर्य से इनमें से अधिकतर का जवाब देती हैं। 22,000 सदस्यों वाले ओजीएफ में सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वॉकर्स, लाफर्स, सीनियर सिटीजन या साड़ी ग्रुप, फूड ग्रुप या ट्रेकर ग्रुप की तरह इस ग्रुप के सदस्यों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इसने नए बिज़नेस का रूप ले लिया है। यह इतना बड़ा हो गया है कि इसके फाउंडर रघु कुमार ने अपना अच्छा कॉर्पोरेट जॉब छोड़ दिया है और इसे अपना मुख्य व्यवसाय बना लिया है। इस रविवार को ओजीएफ उत्सव का तीसरा आयोजन चैन्नई के फाइव स्टार होटल में हुआ, जिसमें 1500 से ज्यादा लोग शामिल हुए। अगर मैं यह कहूं कि इस सेमिनार में लगे गार्डन के इक्विपमेंट और असेसरी मैन्यूफैक्चरर्स के स्टॉल भी एक अलग बिज़नेस के रूप में सामने आए हैं तो इसे अतिश्योक्ति नहीं माना जाए। 2015 में कुमार की छोटी पहल को सही आकार देने की शुरुआत से पहले ऑर्गेनिक गार्डनिंग का बिज़नेस के रूप में कोई अस्तित्व नहीं था। इसकी शुरुआत किचन गार्डन वर्कशॉप के साप्ताहिक आयोजन से हुई। धीरे-धीरे यह स्थापित हो गया और इसने एक ब्रैंड का रुतबा हासिल कर लिया। रहवासी संघ इन्हें साप्ताहिक डेमोस्ट्रेशन के लिए बुलाने लगे। वर्तमान में वे सिर्फ चैन्नई के उपनगरों के बड़े रहवासी कल्याण संघों को मदद कर रहे हैं, बल्कि इस जून से वे बड़े निजी स्कूलों के साथ भी काम शुरू करेंगे। इसमें बच्चों को ऑर्गेनिक किचन गार्डन के महत्व के बारे में बताया जाएगा और डेमोस्ट्रेशन भी होगा। इसके पीछे बड़ा नज़रिया यह है कि हर कोई जिसके पास 200 स्क्वैयर फीट से अधिक का प्लॉट है उसे ओजीएफ का हिस्सा होना चाहिए। साथ ही अन्य फ्लैट के मालिकों की मदद भी बालकनी में छोटा गार्डन बनाने में करनी चाहिए। स्कूलों में इस अच्छी आदत को सिखाना इसका रूट है। स्कूल किसी मेंबर के यहां बच्चों को दो घंटे के टूर पर जू पिकनिक की तरह गार्डन दिखाने ले जाएंगे। इससे बच्चों में अपने घर में गार्डन लगाने के प्रति दिलचस्पी पैदा होगी। दो साल पहले तक गुजरात की राधिका कोठारी अपने किचन गार्डन के पौधों के प्रति इतनी पजेसिव थीं कि कुछ भी साझा नहीं करती थीं। लेकिन जब से वे ग्रुप की सदस्य बनीं हैं उनका रवैया बदल गया है। उन्होंने बीज और पौधे लोगों से साझा करना शुरू कर दिए हैं, क्योंकि कई बार लोग इंसुलिन प्लांट लेने आते हैं जो उन परिवारों के लिए जरूरी होता है, जिनमें डाइबीटिज का कोई मरीज हो। वे एक अन्य ग्रुप ऑर्गेनिक गार्डन टेरेस (ओजीटी) की सदस्य हैं, जो बेंगलुरू के डॉ. विश्वनाथ कदूर ने स्थापित किया है। इसके बारे में इस कॉलम में नवंबर 2014 में जिक्र किया गया था। ओजीटी इसी तरह की गतिविधियां गार्डन सिटी में अपने 30,000 सदस्यों के साथ करता है। इस तरह की कम्यूनिटी के लिए शेयरिंग खास फीचर होता है।
फंडा यह है कि अगर कोई कॉमन समस्या देखें तो तुरंत शेयरिंग के जरिये समाधान के लिए कम्यूनिटी बनाएं। इसे बिज़नेस भी बना सकते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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