Monday, January 4, 2016

जज्बा: बेटी के लिए पिता बने स्टूडेंट, साथ कर रहे हैं ग्रेजुएशन

'स्कूली पढ़ाई के बाद बेटी ने कहा कि मैं पढ़ना चाहती हूं, लाइफ में कुछ करना चाहती हूं। लोगों ने विरोध किया पर मैंने बेटी का साथ दिया। जिन्होंने विरोध किया, उन्हें जवाब दिया कि मैं बेटी के साथ पढूंगा। कॉलेज से घर पहुंचाने सहित पूरा काम करूंगा। देश तो मेरीकॉम, साइना जैसी बेटियों पर गर्व करता है। मुझे मेरी बेटी पर भी गर्व है। मैं उसके अरमानों को गला घोटकर पाप नहीं करना चाहता।' यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे
हैं। ये शख्स हैं जैसलमेर के पारावेर गांव के चंदन सिंह भाटी, जो अपनी बेटी पुष्पा कंवर की पढ़ाई के लिए उदयपुर चले आए। बेटी के साथ ही ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू की, फर्स्ट और सेंकेंड ईयर सफलता के साथ पूरा किया और अब दोनों फाइनल ईयर में हैं। दरअसल 12वीं पास करने के बाद जब कॉलेज की पढ़ाई की बात आई तो लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए। तब बारहवीं पास चंदन ने बेटी के साथ अपनी भी पढ़ाई फिर शुरू करने का फैसला लिया। पुष्पा प्रशासनिक सेवा के लिए तैयारी कर रही हैं और पिता हर कदम पर उसका साथ दे रहे हैं। 

चंदन सिंह बताते हैं कि 'जब तीनों बेटों की पढ़ाई के लिए मैंने हर कोशिश की तो बेटी के साथ सौतेला व्यवहार कैसे करता? इसलिए प्राइवेट स्टूडेंट के रूप में उसी के साथ पढ़ाई शुरू कर दी। इस बीच पुष्पा के लिए रिश्ता भी आया लेकिन वर पक्ष ने दहेज की मांग की तो रिश्ता ठुकरा दिया। बेटियां तो किस्मत वालों को मिलती हैं। मुझे गर्व है कि मैं बेटी का पिता हूं। उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं तो समाज से लड़ना कौन सी बड़ी बात थी? 
वहीं पुष्पा बताती है कि 'मैं गांव ही रहती तो शायद ही कभी कॉलेज देख पाती और अब तक शादी भी हो चुकी होती। लेकिन पापा ने मेरे दिल की बात सुनी। मेरे सपनों को पूरा करने के लिए वे मुझे गांव से उदयपुर ले आए। गांव में तो बेटियों को कहा जाता है कि घर का काम सीखो, वही काम आएगा। पेरेंट्स अपनी लड़कियों को नरेगा में मजदूरी के लिए तो भेज देते हैं लेकिन स्कूल नहीं भेजते। हमारे पिता ने तो हमें कभी घर का काम भी नहीं करने दिया। पूरा काम मां संभालती हैं। मैं बीए करने बाद आरएएस की तैयारी करूंगी। बीए में पापा और मेरे सब्जेक्ट भी एक ही हैं। हम साथ-साथ पढ़ाई करते हैं और एक-दूसरे की मदद भी करते हैं। पिता के साथ मुझे एक गुरू, सहपाठी भी मिल गए हैं। पापा ने इतना त्याग किया, अब मेरी बारी है, मुझे सफल होकर दिखाना है।' 

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साभारभास्कर समाचार 
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