केंद्र की देखा देखी लोकलुभावन घोषणा कर वेतन आयोग गठित करने वाले राज्यों को सातवें वेतन आयोग ने एक जरूरी सलाह दी है। सातवें वेतन आयोग का कहना है कि राज्य अपने खजाने की स्थिति देखकर ही कर्मचारियों का वेतन बढ़ाएं। आयोग का यह भी कहना है कि जिन राज्यों की वित्तीय स्थिति बीते वर्षो में अच्छी
नहीं रही है वे अपने यहां वेतन आयोग गठित करने के साथ-साथ जरूरी राजकोषीय सुधार भी करें।यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। जस्टिस एके माथुर की अध्यक्षता वाले सातवें वेतन आयोग ने केंद्रीय कर्मियों के वेतन, भत्ते और पेंशन में 23.55 फीसद वृद्धि की सिफारिश की है। इससे केंद्र के खजाने पर 1,02,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान है। सातवें वेतन आयोग ने उसकी सिफारिशों का राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण भी किया है। आयोग का कहना है कि जिन राज्यों की राजकोषीय स्थिति मजबूत है उन पर इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, कई ऐसे राज्य हैं जिनके खजाने पर बीते वर्षो में दवाब रहा है। लिहाजा, उनके लिए इन सिफारिशों पर अमल करना कठिन होगा। इस तरह के सामान्य श्रेणी के राज्यों को तत्काल ही राजकोषीय सुधार करने की जरूरत है। राजकोषीय सुधारों के तहत ऐसे राज्यों को अवांछित व्यय में कटौती करनी होगी। साथ ही राजस्व बढ़ाने वाले उपाय भी करने होंगे।
फिलहाल करीब आधा दर्जन राज्य हैं जिनकी राजकोषीय स्थिति सामान्य या उससे भी कमजोर है। इनमें सबसे ऊपर पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब हैं। 14वें वित्त आयोग ने इन राज्यों को राजस्व अनुदान भी दिया है। इसके अलावा बिहार की स्थिति भी कुछ खास बेहतर नहीं है। चालू वित्त वर्ष में बिहार का राजस्व घाटा 2.6 फीसद, हरियाणा का 1.8 फीसद, पंजाब का 1.6 फीसद और केरल का 1.4 फीसद रहने का अनुमान है। वहीं पश्चिम बंगाल का राजस्व घाटा शून्य रहने का अनुमान है। हालांकि, बीते आठ साल पश्चिम बंगाल का राजस्व घाटा 1.3 फीसद से 5.4 फीसद के बीच रहा है। आयोग का कहना है कि केंद्र ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू कर केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 फीसद से बढ़ाकर 42 फीसद कर दी है। ऐसे में काफी हद तक राज्यों पर इसका अधिक दवाब नहीं होना चाहिए।
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साभार: जागरण समाचार
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