Wednesday, November 25, 2015

लाइफ मैनेजमेंट: तकनीक के जरिये लाइए सामाजिक बदलाव

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा )
हम ऐसे देश में रहते हैं जहां अधिकांश लोग टिप के रूप में होटलों में 200 रुपए तक दे देते हैं, लेकिन जब भी सड़क के किनारे किसी सब्जी वाले से कुछ खरीदना हो तो भाव-ताव करना नहीं भूलते। दूसरी तरफ देशभर में फैले ग्राहकों तक सीधी पहुंच होने से कारीगरों और शिल्पियों को दलालों और मध्यस्थों से संपर्क करना पड़ता है,
जो उनकी कमाई में से बड़ा हिस्सा रख लेते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसका सीधा असर यह होता है कि हाथों में हुनर होने के बावजूद रचनात्मक लोगों के लिए जीवन हर तरह से मुश्किल हो जाता है। 
नए बने राज्य तेलंगाना के नलगोंडा जिले के कोयलागुडम गांव के इकत साड़ी बुनने वाले भी इससे अलग नहीं हैं। वे भी इसी समस्या से रू-ब-रू थे, लेकिन अब नहीं। उनके संगठन कोयलागुडम हैंडलूम वीवर्स कॉर्पोरेशन सोसायटी ने सोशल ऑन लाइन मार्केट से अनुबंध कर लिया है और उनकी सभी समस्याओं को दूर करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि हर उत्पाद पर उन्हें किसी भी हालत में 12 प्रतिशत से कम मुनाफा हो। शुक्र है 2012 में बनी गोकॉप कंपनी का। करीब 4,377 सहकारी संस्थाओं और उनके 17,239 उत्पाद सीधे रजिस्टर्ड खरीददारों से जुड़े हैं। और इससे 60 हजार से ज्यादा बुनकर और कारीगर जुड़े हैं। जो शख्स इसके पीछे है उनका उद्‌देश्य तकनीक के जरिये टिकाऊ रोजगार उपलब्ध कराना है। उनका पक्का भरोसा है कि तकनीकी खोजों के माध्यम से ही देश में सामाजिक बदलाव लाए जा सकते हैं। 
कॉपरेटिव और जमीनी संगठनों से जुड़कर चार साल तक काम करने के बाद सिवा देवीरेड्‌डी ने कारीगरों और बुनकरों के लिए कम्यूनिटी आधारित ऑन लाइन प्लेटफॉर्म विकसित करने का निर्णय किया। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों खरीददारों की जरूरतों को ध्यान में रखकर रणनीति तैयार की। ग्राहकों को प्रामाणिक भारतीय हस्त शिल्प उत्पादों की तलाश रहती है, जबकि बुनकर और शिल्पी हमेशा उचित मूल्य चाहता है, इसलिए गोकॉप का जन्म हुआ, जिसने कारीगरों, कॉपरेटिव सोसायटी और खरीददारों के बीच सेतू बनने का काम किया, वैसे ही जैसे कई साइट्स सामान की खुदरा बिक्री करती हैं। गोकॉप मार्केटिंग के बदले शुल्क लेती है जो सामान की कीमत में ही जुड़ा होता है। 
फर्म राज्य सरकारों से समर्थित कॉपरेटिव्स और कई संस्थाओं के साथ मिलकर काम करती है। फर्म झारखंड, असम, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र सहित कई दक्षिण भारतीय राज्यों में काम कर रही है और इसका लक्ष्य आगामी पांच वर्षों में राजस्व को 1000 करोड़ रुपए तक ले जाने का है। इंडियन एंजल्स नेटवर्क ने इस साइट में निवेश किया है, जिसका मानना है कि गोकॉप में भारतीय अलीबाबा बनने की क्षमता है। सिवा देवीरेड्‌डी ने 23 साल की उम्र में एरिजोना यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के बाद वर्ष 2000 में सिलिकॉन वैली में अपना पहला स्टार्टअप शुरू किया था, लेकिन पिता के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्होंने बिजनेस छोड़ ऐक्सेन्चूऐट में नौकरी कर ली। यहां वे सात साल रहे। इसके बाद आंत्रप्रेन्योरशिप का जुनून फिर जागने लगा। उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था। उनके सभी नातेदार गुंटुर और आसपास के गांवों में रहते थे, जहां वे उनसे मिलने अक्सर जाया करते थे। इन गांवों से उन्हें बुनकरों और कारीगरों द्वारा किए गए कई काम मिले। उन्होंने महसूस किया कि ये कारीगर बहुत ज्यादा गरीब हैं, क्योंकि वे नहीं जानते कि अपने बनाए सामान को कैसे बेचा जाए। अगले साल तक गोकॉप एक मोबाइल एप भी लॉन्च करने वाला है। देवीरेड्‌डी का मानना है कि यह माध्यम अगले वित्तीय वर्ष तक कंपनी के कारोबार को 200 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। 
फंडा यह है कि तकनीककी पहुंच सिर्फ आधुनिक और युवा दुनिया तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, अगर इसे ठीक से इस्तेमाल किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाखों प्रशिक्षित लोगों के जीवन को सुधार सकती है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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