Monday, November 30, 2015

प्रबंधन के वैज्ञानिक सिद्धांतों से सुलझ सकती हैं समस्याएं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा) 
एक त्रासदीपूर्ण घटना में मिठाई की दुकान के 23 वर्षीय मालिक श्रवण चौधरी पिता बनने के दो हफ्ते बाद ही दुर्घटना में जान गंवा बैठे। 26 नवंबर को पुणे की एक सड़क पर सुबह 5 बचे मैनहोल के खुले ढक्कन से टकराकर उनकी बाइक संतुलित खो बैठी थी और तेज रफ्तार बाइक से गिरने से उन्हें सिर में गंभीर चोट आई थी। देर शाम पुलिस ने सिविक कॉन्ट्रेक्टर के खिलाफ लापरवाही से मौत का जिम्मेदार ठहराते हुए प्रकरण दर्ज
किया। और अगले दिन शहर में हर कोई उस दुर्घटना को भूल गया, क्योंकि पुणे की सड़कों पर सड़क दुर्घटना उतनी ही आम है, जितना रात के भोजन के लिए सब्जी या अन्य उपयोगी वस्तुएं खरीदना और यातायात का सिपाही। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पुलिस महानगर पालिका को दोष देती है, पालिका बिजली, टेलीफोन या अपने खुद के जल आपूर्ति विभाग को दोष देती है और ये विभाग किसी अज्ञात कारण से राज्य के परिवहन विभाग को दोषी ठहराते हैं। आखिरकार बरसों एक विभाग से दूसरे विभाग की यात्रा करते हुए फाइल खुद ही ऊब जाती है और फाइल जर्जर होने के बाद मामला बंद कर दिया जाता है। और फिर कोई नई फाइल वैसे ही चक्कर लगाने और उसी हश्र को प्राप्त होने के लिए खुलती है। 
किंतु अब ऐसा और नहीं होगा। चौधरी की मौत के बाद हुई कड़ी आलोचना के बाद पुणे महानगर पालिका सिर्फ शहरभर में मौजूद मैनहोल की समीक्षा करने पर मजबूर हुई बल्कि सभी संबंधित अधिकािरयों से उन्होंने एेसी घटनाओं से निपटने के लिए समन्वित रवैया अपनाने को कहा है। अब पुणे ट्रैफिक पुलिस की पहल पर पुणे महानगर पालिका के साथ मिलकर 'दुर्घटना रोकथाम प्रकोष्ठ' बनाया जा रहा है। इससे वे अन्य लोग विभाग भी जुड़े हैं, जो सड़क के साथ छेड़छाड़ करते रहते हैं। यह प्रकोष्ठ ऐसी प्रक्रिया अपना रहा है ताकि आधारभूत ढांचे की खामियों से होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सके।
यातायात पुलिस के अधिकारियों ने महसूस किया कि दुर्घटना का उनका वर्गीकरण घातक और जख्मी करने वाले से आगे जाकर कारणों तक पहुंचना चाहिए। फिलहाल किसी शहर में सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं का विस्तृत वर्गीकरण नहीं होता। अब नए प्रकोष्ठ का काम ऐसी हर दुर्घटना की ओर ध्यान देना है। वह पालिका इंजीनियरों को साथ लेकर कारणों के आधार पर श्रेणियों में बांटेगी। ठीक कारण का पता लगाने के लिए यातायात पुलिस के उपाधीक्षक और पालिका के अतिरिक्त आयुक्त समन्वय करेंगे। प्रकोष्ठ खामी का पता लगाने वाली संस्था के रूप में काम नहीं करेगा बल्कि कारण पता लगाकर भविष्य में मौतें रोकने का प्रयत्न करेगा। इससे कहीं पर भी आधारभूत ढांचे से संबंधित खामी लंबे वक्त तक अनदेखी नहीं रहेगी।
देश में ज्यादातर दुर्घटनाएं आधारभूत ढांचे से जुड़ी होती हैं। हालांकि उचित प्रक्रिया के अभाव में कोई ठीक-ठीक डैटा उपलब्ध नहीं है। बिजली का खुला तार सड़क पर पड़ा होना, डिवाइडर का क्षतिग्रस्त होना, मैनहोल पर ढक्कन होना या उनका सड़क की सतह से ऊपर होने से लेकर स्ट्रीट लाइट होने तक कई कारण हो सकते हैं। कभी-कभी तो स्पीड ब्रेकर को पेंट करने से भी दुर्घटनाएं हुई हैं। अब दुर्घटना के बाद एक-दूसरे को दोष देने की जगह प्रकोष्ठ से जुड़े अधिकारी जहां पर कोई खामी है वहां जाकर निरीक्षण कर संबंधित विभाग को तत्काल उस खामी को दूर करने का निर्देश देंगे। अभी होता यह है कि कोई देख भी लें कि मैनहोल खुला है तो वह सोचता है पालिका का काम है। पालिका इसे जल-मल निकास विभाग तो यह विभाग जलापूर्ति विभाग और अंतत: लोकनिर्माण विभाग की समस्या मानता है। इस तरह की समस्या के लिए समर्पित प्रकोष्ठ शहर में नागरिक सुरक्षा के लिए काम करने वाले संगठन 'पेडेस्ट्रीयन फर्स्ट' की अवधारणा है। अजीब बात है कि आपसी तालमेल के अभाव में सरकारी विभाग लोगों की हिफाजत की अनदेखी करते हैं। कभी सुना नहीं कि किसी समस्या का तत्काल समाधान कर दिया गया हो। इस तरह हर दुर्घटना के कारण का पता लगाकर उसे श्रेणी में बांटने के ऐसे वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांतों को अपनाने से सड़क सुरक्षा में प्रत्यक्ष और परोक्ष फायदे मिलेंगे और बेशकीमती मानव जीवन बचाया जा सकेगा।
फंडायह है कि किसीभी सुलझ सकने वाली समस्या पर वैज्ञानिक प्रबंधन पद्धतियां लागू करने से सिर्फ कॉर्पोरेट बल्कि सरकारी विभागों को भी फायदा मिलेगा। अब सवाल सिर्फ यही है कि क्या वे इसका पालन करेंगे?
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साभारभास्कर समाचार 
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