स्टोरी 1: देशका हर गांव और शहर कोलकाता की तरह सौभाग्यशाली नहीं हो सकता, जहां जर्मनी के बर्लिन स्थित इनटेक माइक्रो पावडर एजी ने पिछले हफ्ते कचरे से स्वच्छ बिजली पैदा करने का संयंत्र लगाने के करार पर गुरुवार को हस्ताक्षर किए हैं। 3,400 करोड़ के इस संयंत्र के लिए हावड़ा महानगर पालिका के साथ करार हुआ है, जो दोमजुर में लगाया जाएगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यदि कचरे से ऊर्जा का यह संयंत्र हकीकत में बदलता है, तो यह भारत में पहला होगा और स्वच्छ भारत अभियान को नई दिशा मिलेगी। इस प्रोजेक्ट से सिर्फ हावड़ा को अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत मिलेगा बल्कि कचरे के बढ़ते ढेरों की समस्या से छुटकारा भी मिलेगा।
स्टोरी 2: कर्नाटककी राजधानी बेंगलुरू से 250 किमी दूर जगालुरू एक छोटी-सी पंचायत है। जब बेंगलुरू जैसे शहर का दम बढ़ते कचरे के ढेर से घुट रहा है तो कॉलेज के एक छात्र ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्लास्टिक कचरे के बढ़ते ढेर का रोना रोने की बजाय 'कचरे' से पैसा कमाने का फैसला किया। अपने पुश्तैनी गांव में चलाए एक पायलट प्रोजेक्ट से उसने लोगों का मार्गदर्शन किया और उन्हें कचरे से पैसा कमाना सिखाया। चार माह बाद गुरुवार को कचरे से अलग किए प्लास्टिक अन्य चीजों से वे 50 हजार रुपए कमाने में कामयाब रहे। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जगालुर की आबादी 17,257 है। यहां के 15 वार्ड में 3,566 परिवार रहते हैं। हर घर से रोज करीब 350 ग्राम कचरा निकलता है। इस प्रकार पूरे गांव से करीब आठ टन कचरा निकलता है। कालाबुरागी स्थित कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय से भूगर्भशास्त्र में एमएससी के विद्यार्थी 22 वर्षीय वी प्रवीणा कुमारा छुटि्टयों में अपने गांव जाते थे और प्राय: सोचते थे कि वे कैसे इस गांव की तस्वीर बदल सकते हैं। गांव के होने के कारण वे जानते थे कि लोग अपने आसपास की परिस्थितियों और जो कचरा वे फेंक देते हैं, उसके बारे में ज्यादा शिक्षित नहीं हैं। उन्होंने सोचा कि यदि रोजगार खोजने के साथ ही गांव छोड़ने के प्रति उदासीन लोगों के लिए कचरे की प्रोसेंसिंग से पैसा कमाने की राह खोज ली जाए तो काफी बदलाव अा जाएगा। उन्होंने इसी पर काम करने का फैसला किया और सफल हुए। पहले चार माह में गांव की छोटी इकाई ने 45,560 रुपए की पहली आमदनी कमाई। इससे लोग कचरे को अलग दृष्टिकोण से देखने को प्रेरित हुए। अब वे जैविक रूप से प्रसंस्करित किए जा सकने वाले कचरे से अपने लिए खाद भी बना रहे हैं।
स्टोरी 3: इस हफ्ते बुधवार को कर्नाटक के परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी की बेटी का विवाह हुआ। 20 हजार से ज्यादा मेहमान आए थे, लेकिन मेरी जानकारी में यह पहला विवाह समारोह था, जिसमें बिल्कुल कचरा पैदा नहीं हुआ और अनाज का एक दाना कूड़े में गया। यह सब विवाह जैसे समारोह का किसी भी शहर पर पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को खत्म करने के दृष्टिकोण से किया गया था। कचरा उठाने वाले प्रशिक्षित कर्मियों के संगठन 'हासिरू डाला' के कम से कम 150 कर्मचारियों ने विवाह समारोह में पैदा हुए सूखे और गीले कचरे को अलग-अलग इकट्ठा किया। आर्गनिक कचरा बॉयो गैस प्लांट में भेजा गया, जबकि सूखा कचरा रिसाइकलिंग उद्योग को भेजा गया। भोजन का मैनू भी पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखकर बड़ी सावधानी से तय किया गया था। परंपरागत विवाह होकर भी 'अग्नि' में घी नहीं डाला गया। मेहमानों को दिया गया कोई भी तोहफा रेशन, चमड़े या ऊनी उत्पाद नहीं थे। मेकअप का सामान भी क्रूरतारहित सौंदर्य प्रसाधनों का था और तोहफे में की-चेन दिया गया, जिसमें प्राणियों को अपनाने का संदेश था। रिसाइकिल किए कागज पर आमंत्रण-पत्र छापे गए थे। पौधे वितरीत किए गए।
फंडा यह है कि अकेलाव्यक्ति भी वह काम करता है, जो कोई स्थानीय स्वायत्त संस्था करती है और पर्यावरण सिर्फ नगर निगम संस्थाओं का ही काम नहीं है, यह हमारा भी है। यदि हम इस और ध्यान दें तो हम सिर्फ पैसा कमा सकते हैं बल्कि अपने बच्चों के लिए स्वच्छ धरती भी छोड़ जाएंगे।
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साभार: भास्कर समाचार
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