उद्योगसंगठन एसोचैम ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर चिंता जताई है। उसका कहना है कि सरकार को वेतन में सिफारिश से कम बढ़ोतरी करनी चाहिए क्योंकि इसे पूरी तरह लागू कर देने पर सरकारी कोष संकटपूर्ण स्थिति में जाएगा। उसके मुताबिक सिर्फ टैक्स से मिलने वाले राजस्व और विनिवेश से मिलने वाली रकम से सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को अधिक वेतन देना अच्छी आर्थिक नीति नहीं होगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वेतन बिल में भारी बढ़ोतरी से इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास में सरकार की ओर से किया जाने वाला खर्च प्रभावित हो सकता है। एसोचैम ने एक बयान में कहा कि सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए 9.20 लाख करोड़ रुपए के टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य रखा है। वेतन आयोग की सिफारिशें ज्यों की त्यों लागू कर देने से 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 52 लाख पेंशनधारकों के वेतन तथा पेंशन पर सरकार का खर्च 1.02 लाख करोड़ बढ़कर 5.27 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच जाएगा। यह कुल कर राजस्व का 57 फीसदी होगा।
सरकार सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट का पहले अध्ययन करेगी। इसके बाद ही इस पर आगे बढ़ेगी। -जितेंद्र सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय
यदि राजस्व का हिस्सा वेतन में गया तो वित्तीय ढांचा चरमरा जाएगा : डीएस रावत संगठनके सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत ने कहा, यदि राजस्व का आधे से ज्यादा हिस्सा वेतन में चला जाए तो कोई भी वित्तीय ढांचा चरमरा जाएगा। हमें ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं करनी चाहिए जिससे वेतन भुगतान के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़े।' बयान में कहा गया है कि हालांकि वित्त मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि वेतन भुगतान की मद में बढ़े हुए खर्च के बावजूद सरकार चालू वित्त वर्ष के लिए वित्तीय घाटे को 3.9 फीसदी की सीमा में रखने और अगले वित्त वर्ष के लिए 3.5 फीसदी के दायरे में रखने में सफल रहेगी। लेकिन फिर भी सवाल यह उठता है कि सरकार यह सब करेगी कैसे? एसोचैम ने कहा, वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति और डिमांड में मंदी को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू करने से पहले बचे हुए चार महीने में अर्थव्यवस्था में कोई बड़ा सुधार जाएगा।'
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साभार: भास्कर समाचार
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