रीक्षा का तंत्र पंगु बन गया है। संचालन में ईमानदारी नहीं बरती जाती जिससे नकल रहित परीक्षा एक सपना सा हो गया है। व्यवस्था में सुधार लाकर ही हम आदर्श परीक्षा व्यवस्था की उम्मीद संजो सकते हैं।परीक्षा प्रणाली वार्षिक तौर पर निभाई जाने वाली रस्म व औपचारिकता की पूर्ति मात्र बन कर रह गई। परीक्षा संचालित करना व डिग्री बांटना ही प्रचलित शिक्षा पद्धति का एकमात्र लक्ष्य है। आदर्श परीक्षा प्रणाली वह है जिसमें भाग्य तत्व,
धांधली व हथकंडों के अवसरों को न्यूनतम किया जा सके। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। जो विभिन्न परीक्षार्थियों के लिए निरपेक्ष व सापेक्ष दोनों दृष्टियों से न्यायपूर्ण हो। नकल के चलते ही ऊंचे अंक हासिल कर विद्यार्थी ज्ञान के खोखले नजर आते हैं। परीक्षा प्रणाली का आरंभ प्रश्नपत्र के निर्माण से होता है। पेपर सेटर इसे गंभीरता से नहीं लेते। प्रश्नपत्रों में कोई नयापन देखने को नहीं मिलता है। परीक्षा संचालन के समय ईमानदारी नहीं बरती जाती। नकल की प्रवृति आम देखी जाती है। शिक्षण कार्य में जुटे कुछ व्यक्तियों को छोड़ दें तो अधिकतर लोग नकल करने को बुरा नहीं मानते। जीवन के हर क्षेत्र में कुछ ले देकर कुछ भी कार्य कराया जा सकता है का दर्शन व्याप्त है। हमारी व्यवस्था में परमात्विक मूल्यांकन प्रणाली (स्टैंडर्ड इवैल्यूएशन सिस्टम) का घोर अभाव है। विभिन्न परीक्षकों के अंकों में अंतर पाया जाता है। सेमेस्टर सिस्टम में परीक्षा पद्धति की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। परीक्षा प्रणाली को शिक्षा प्रणाली व कुल देश की व्यवस्था से अलग कर नहीं देखा जा सकता। इसे आंका या आदर्श स्थिति तक नहीं सुधारा जा सकता है।
डॉ. अशोक दिवाकर (पूर्व प्राचार्य, राजकीय महिला महाविद्यालय, गुडगाँव) के अनुसार: सिस्टम में सुधार के लिए परीक्षा संचालन से लेकर उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन व परिणाम की घोषणा तक में बदलाव करने होंगे। प्रश्नपत्र सही समय पर केंद्र पर पहुंचाए जाएं। परीक्षा के मूल्यांकन के लिए योग्य प्राध्यापकों को लगाया जाए, जो दिन-रात लगकर पेपर की मार्किग करें। इन व्यवस्थाओं में बदलाव करके विद्यार्थियों के मन से परीक्षा का हौवा निकाला जा सकेगा और नकल की प्रवृत्ति कम हो जाएगी। इसके अलावा नकल को रोकने के लिए परीक्षा केंद्र के भीतर व बाहर नजर रखी जाए। परीक्षा के पहले विद्यार्थियों की जांच करें।
मोबाइल और तकनीक के दुरुपयोग से बिगड़े हालात: एम एल कॉलेज यमुनानगर के प्राचार्य डॉ. शैलेश कपूर कहते हैं कि नकल के जो केस आए दिन सामने आ रहे हैं उसके लिए सिर्फ विद्यार्थी ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता भी बराबर के जिम्मेदार हैं। वह महंगी मोटरसाइकिलों व कारों में उन्हें कॉलेज भेजते हैं जिससे उनकी आदतें खराब हो रही हैं। रही सही कसर मोबाइल व तकनीक के दुरुपयोग ने पूरी कर दी है। इसके अलावा स्कूल-कॉलेजों में स्थाई कर्मियों की जगह कांट्रेक्ट पर स्टाफ नियुक्त किया जा रहा है जिसे बहुत कम वेतन मिलता है। वे भी नकल कराने का कारण हो सकते हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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