दुनिया के शीर्ष सौ इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों की सूची में पहली बार भारत को स्थान मिला है। बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आइआइएससी) ने भारत की खराब रैंकिंग के क्रम को तोड़ा है। उसे टाइम्स हायर एजुकेशन (टीएचई) द्वारा जारी इस सूची में 99वें स्थान पर रखा गया है। सूची में अमेरिकी संस्थानों का
दबदबा कायम रहा। स्टैनफोर्ड, कैलटेक और मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। टीएचई वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के संपादक फिल बैटी के मुताबिक, यह साल भारत की सफलता के लिए जाना जाएगा। इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी की रैंकिंग में पहली बार उसे प्रवेश मिला। हालांकि इन विषयों में दुनिया के विश्वविद्यालयों में शीर्ष के कुछ फीसद में भारत का प्रतिनिधित्व रहता है। उन्होंने कहा कि आइटी जैसे हाईटेक क्षेत्रों या स्टील निर्माण जैसे पारंपरिक क्षेत्र में भारत की इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी का कौशल दिखता है। यह गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, इंफोसिस, विप्रो, टाटा और मित्तल जैसी भारतीय या भारतीय द्वारा चलाई जाने वाली कंपनियों के रूप में सामने है। टीएचई की सूची में इस साल एशियाई देशों ने जोरदार प्रगति की है। सूची में अमेरिका के 31 विश्वविद्यालयों को स्थान मिला। यह पिछले साल के 34 स्थानों से कम हुआ। शीर्ष सौ में एशिया के 25 विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया। पिछले साल यह संख्या 18 थी। शीर्ष 30 में एशिया के छह विश्वविद्यालयों ने स्थान बनाया। इस साल जापान, चीन, कोरिया, ताइवान और भारत ने अपना प्रतिनिधित्व सुधारा है। जबकि सिंगापुर और हांगकांग ने अपना स्थान बनाए रखा है। सूची में ऊपर के स्थानों पर अमेरिका और इंग्लैंड अब भी वर्चस्व रहा। लेकिन इस मामले में शक्ति संतुलन एशिया की तरफ झुक रहा है। एशिया ने यह साबित किया है कि इन विषयों में उसके संस्थान विश्व स्तर के हैं। बैटी ने कहा कि एशियाई देशों की सफलता ने उत्तरी अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालयों पर दबाव बढ़ा दिया है। उन्हें अब सूची में शामिल रहने के लिए तेजी से बढ़ना होगा।
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साभार: जागरण समाचार
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