हरियाणा के प्राइवेट स्कूलों में नियम 134 ए के तहत गरीब बच्चों को दाखिला
देने और स्कूलों को इसके लिए सरकार द्वारा भुगतान किए जाने के आदेशों का
पालन नहीं किए जाने पर हाईकोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि
मौलिक शिक्षा निदेशक सीधे तौर पर अवमानना के दोषी हैं। हाईकोर्ट ने हरियाणा
सरकार को आखिरी मौका देते हुए 13 अगस्त तक पालना संबंधी रिपोर्ट दाखिल
करने के निर्देश दिए। शुक्रवार को
मामले की सुनवाई आरंभ होते ही हाईकोर्ट
ने सरकार से पूछा कि क्या आदेशों की पालना की गई है? सरकार की ओर से मौजूद
वकील अमर विवेक ने बताया कि सरकार द्वारा अभी सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू
दाखिल करने की तैयारी की जा रही है। इस दौरान किसी भी बच्चे को कोई
प्राइवेट स्कूल प्रवेश देने से इनकार नहीं कर सकेगा। सभी जिला मौलिक शिक्षा
अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि यदि कोई बच्चा यह शिकायत लेकर आता है
कि उसे स्कूल में एडमिशन नहीं दिया जा रहा है तो वे सुनिश्चत करें कि
बच्चे को एडमिशन मिले। सरकार की इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए
हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू दाखिल करना सरकार का अधिकार
है लेकिन इसके चलते आदेशों की अवमानना नहीं की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट
द्वारा किसी आदेश के माध्यम से सरकार को कोई राहत नहीं दी गई है ऐसे में
आदेशों के अनुरूप बच्चों के प्रवेश का इंतजाम न करना हाईकोर्ट के आदेशों की
अवमानना है और डायरेक्टर एलिमेंट्री एजुकेशन इसके लिए दोषी हैं। वकील अमर
विवेक ने कहा कि किसी भी बच्चे को दाखिले से वंचित नहीं रखा जाएगा परंतु
अभी सरकार को कुछ समय दिया जाए। हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि
अगली सुनवाई के दौरान आदेशों की पालना करते हुए नियम 134ए के तहत बच्चों को
एडमिशन का लाभ दिया जाए। विवेक ने कहा कि इस प्रकार यदि उन्हें फीस के बोझ
में दबाया गया तो 5 हजार करोड़ रुपये सालाना हरियाणा सरकार को प्राइवेट
स्कूलों को देने होंगे। स्कूलों को जमीन दी जाती है और स्कूलों का यह फर्ज
है कि वे समाज में आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों का दाखिला देकर अपनी
जिम्मेदारी निभाएं। राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों का दाखिला
134ए के तहत सुनिश्चित किया जाए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी स्टे नहीं
दिया है।
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साभार: जागरण
समाचार
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